बीते वर्ष को मेरा सलाम,पुष्कर की पावन धरा से , बीत रही हर सुबह शाम, पुष्कर की पावन धरा से,
वो सुबह जल्दी पुष्कर स्नान पुजा पाठ और ईश्वर ध्यान,
पुष्कर की पावन धरा से
हर मन्दिर की घंटी करें पुकार, स्वच्छ रहे पुष्कर ब्रह्मा धाम, पोलीथीन मुक्त हो मेरा देश , पुष्कर की पावन धरा से,
प्रदुषण मुक्त यहां दिवाली हो और होली पर हो सिर्फ गुलाल,
बालू के टिलो का हुआ श्रंगार,
पुष्कर की पावन धरा से ,
पशु मेला देखे जग संसार जहाँ हर रंग दुनिया का फिका पड़ जाता है ,
एक बार जो आया यहां तो समझो हर बार आता है ,क्योंकि यहां से सिर्फ अपना ही नहीं स्वयं ब्रह्मा का गहरा नाता है,
करण अर्जुन मे ठाकुर की हवेली घोड़ों का तबेला अनूठा था,
दिया बाती से बना हनुमान गली का नाम,
बीते वर्ष को मेरा सलाम,
पुष्कर की पावन धरा से,
नये वर्ष की खुशबू है सर्दी की ठंडी मुस्कान मे ऐसा ही संदेश है पूरे हिन्दुस्तान मे,
जम गया हर सुबह ठिठुर गया है शाम,
बीते वर्ष को मेरा पुष्कर,
पुष्कर की पावन धरा से,
गौरव तीर्थ है गौरवशाली कला यहाँ
नगाड़ा वादन,सैण्ड आर्ट, ऊंट श्रृंगार,
फैला राजस्थान मे,
पुष्कर की पावन धरा से।
बीते वर्ष को मेरा सलाम,
पुष्कर की पावन धरा से।
लेखक -अजय रावत पुष्कर सैण्ड आर्टिस्ट ऑफ राजस्थान