पिछले कुछ दिनो में आवारा पशुओं के कारण दुर्घटनाएँ घटित होते देखी। सब्ज़ी घर ले जाते हुए किसी माताजी पर गौ-माता टूट पड़ी। बाइक पर नौकरी पर जाते युवक से अनियंत्रित जवान साँड़ टकरा गया और युवक हड्डियाँ तुड़वा बैठा। गली में खेलते कुछ बच्चे भी इन आवारा पशुओं के खेल का शिकार होते देखे। इसका ज़िम्मेदार कौन??
हम अजमेर के स्मार्ट सिटिज़न!!!
कई बुज़ुर्ग और प्रौढ़ लोग कहते है कि गौ माता समान पूजनीय है, तो वो कौन महानुभाव है जो माता तुल्य को सड़कों पर भटकने और आवारा पशु कहलाने का अवसर देते है??
मुझे महसूस हुआ कि काफ़ी नागरिक इन पशुओं के कारण परेशान है, इसलिए नगर निगम के आवारा पशु दस्ते को फ़ोन लगाया और उनसे निवेदन किया कि मेरे क्षेत्र से समस्या का निदान करने में मदद करे। वे सुबह आए और कहा कि वे सिर्फ़ नर पशु उठा सकते है, मादा नहीं, क्योंकि उनको नागरिकों और पशु पालको के रोष का सामना करना पड़ता है और कुछ पालक तो उनकी गाड़ियों को भी नुक़सान पहुँचते है। उन्होंने हमसे यह भी कहा कि आपको हमारे साथ चलना होगा और उन पशु पालको से बात करनी होगी, हालाँकि यह जोखिम भरा हो सकता है।
मैं तब से सोच रहा हूँ कि अगर इन पशुओं के पालक है तो फिर ये आवारा क्यों? दिमाग़ पर सामान्य ज़ोर देने पर इसके पीछे के अर्थशास्त्र का अंदाज़ा हुआ। कितना बढ़िया तरीका है धन-अर्जन का।
गायो को सुबह किसी भी अच्छे क्षेत्र में छोड़ दो, जहाँ कई बुज़ुर्ग रहते हो। वे इन पशुओं को दिन भर धर्म और कर्म के नाम पर खिलाएँगे और शाम को उनको ले जाकर उनका दुग्ध दोहन करेंगे। वाह क्या business idea है !!!
अजमेर के स्मार्ट सिटी नहीं बनने की वजह हम नागरिक ही है।
अगर हम आवारा पशुओं को अपने घर के बाहर रोटी और चारा डालना बंद कर दे तो अपने घर के बाहर की गंदगी भी कम होगी और दुर्घटनाये भी।
गौ प्रेमियों को पता है इस दान-धर्म का बेहतर विकल्प क्या है।
शहर स्मार्ट बने या ना बने, हम तो स्मार्ट बन सकते है।
अगर आप लोग मेरी बात से सहमत है तो यह पोस्ट share करे।
-रमेश टेहलानी
जहॉ आपके अनुसार बताये गये स्मार्ट नागरिक रहते है । स्मार्ट नगर निगम रहनुमा हो, स्मार्ट पुलिस व कानून व्यव्स्था संभालने वाले हो , वह स्मार्ट सिटी पहले से ही है । फिर स्मार्ट सिटी की लिस्ट में अजमेर का नाम “बन गया” वाली सूची में लिखा जायेगा ।