अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल श्रृंखला के तहत आयोजन” शायरी-सरहद से परे” का निरस्त होना महज एक कार्यक्रम का निरस्त होना नहीं था। संकल्पना का बिखरना,पहल का अस्वीकार या भाषाई मुहावरे का राजनैतिक नकार था।
कार्यक्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता शायर शीन काफ निजाम स्व. निदा फाजली की प्रासंगिकता ,लेखन और विस्थापन के दर्द को बताते हुए श्रंद्धांजलि देते। उसके बाद पाकिस्तान के शायर अब्बास ताबिश और वजीर ,बाजीराव् मस्तानी के गीतकार ए एम् तुराज के साथ ये खाकसार शायरी और सरहद पर गुफ्तगूं करते हुए ये सिद्ध करते कि शायरी या कविता ही सरहदों पर जमी नफरतो की बर्फ को पिघला सकती है। ततपश्चात् सभी शायरों की चुनिंदा शायरी सुनी जाती। संभवतः ये वाचिक परम्परा में विमर्श की एक अनूठी पहल होती।
साथ ही स्थानीय स्तर पर सुधि श्रोताओं के एक समूह “लिटरेचर क्लब” के विधिवत गठन भी होना नियत था।
लेकिन हमारे अपने मित्रो(भाजपा,बिश्व हिन्दू परिषद के साथी) की आशंका कि किसी पाकिस्तानी शायर की उपस्थिति के चलते समाज की समरसता प्रभावित हो सकती है,को सम्मान देते हुए कार्यक्रम निरस्त करना पड़ा। हमे लगा साहित्य और समाज के पावन सम्बन्ध पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाना चाहिए।
बहरहाल, फिर कभी सही।
हम मित्रो की उन आशंकाओं को दूर करने में सफल होंगे कि कविता हो या शायरी तोड़ती नहीं, जोड़ती हैं। वे सचमुच सरहदों से परे ही होती है।
हमारे कारण जिन श्रोताओं या कवियों को असुविधा या कष्ट हुआ , क्षमा प्रार्थी हैं। दुआ करें कि हम और आप सरहदों से परे सोचकर शायरी,संवेदना और साहित्य को जीवित रख सके।
रास बिहारी गौड