ब्यावर का इससे बड़ा दुर्भाग्य और भला क्या होगा…..?

सिद्धार्थ जैन
सिद्धार्थ जैन
ब्यावर वासियों पर क्या करारा तमाचा हे…! हमारा कोई धणी-धोरी ही नही दिखता। हम सब भगवान भरोसे हे क्या? अब तो सबका यह विश्वास भी डगमगाने लगा हे। मेरा प्यारा यह शहर लावारिस हो गया हे। राजस्थान को कई सौगाते देने वाला यह शहर लगता हे कि अब खुद अपने लिए सौगात पाने के लिए कइयों की चौखट पर माथा पटकते रहने को बेबस हे। फिर भी देखिएगा। क्या त्रासदी हे…! कोई भी तो इसकी खेर-खबर लेने को तत्पर ही नही दिखता।

रानीखेत एक्सप्रेस ट्रेन…! इसको ब्यावर में महज दो मिनिट के लिए रुकवाने के लिए पूरा शहर एक जुट खड़ा हो गया। बाईस साल पहले हुए ब्यावर के ऐतिहासिक पानी आन्दोलन के बाद सम्भवतया अब फिर समूचा मिडिया भी ब्यावर के साथ खड़ा दिखा। फिर भी हुआ क्या? ब्यावर की आवाज को पैनी धार नही मिली। सरकार को अलग से करना भी कुछ नही था। बस इतना सा करना था कि जोधपुर, जयपुर या फिर दिल्ली में कही भी एक स्टोपेज कम कर देते। उन जगहों पर यो भी दो से तीन-तीन स्टोपेज हो रहे थे। ब्यावर की सुनवाई हो जाती। हमारा दुर्भाग्य कि नेताओं ने भी अपनी ओपचारिकता मात्र पूरी कर खामोशी धारण कर ली।

ब्यावरवासी अमूमन शान्त चित्त व सहनशीलता धारण किये रहने वाले अमनचैन पसन्द लोग हे। जागते हे तब सब तौबा कर लेते हे। मुझे हैरत होती हे। एक ट्रेन के लिए इन्होने अपना इतना वक्त जाया कर दिया…महज दो मिनिट के लिए 86400 मिनिट…!!! और वो भी ऐसा काम जो किसी भी पावर फुल नेता के लिए दो मिनिट का काम हे! ब्यावर से पन्द्रह स्टेशन छोटे ऐसे हे जहा इसी पावर से यह रेल रुक रही हे। जावल-किशनगढ़ ऐसे ही सटीक उदाहरण गिनाये जा सकते हे।

ब्यावर के सामने विकास क्षेत्र में अनेको काम खड़े हे। अस्पताल में स्टाफ की कमी हो। जर्जर रोड़वेज व प्राइवेट बस स्टेण्ड हो। शहर की उधड़ी सड़के हो। आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी नगर परिषद हो। ब्यावर का “कोढ़” शहर के मेन बाजार के बीच बना टू व्हीलर पार्किंग डिवाइडर ही हो। बाहरी कोलोनियो के नारकीय हालत रुला रहे हो…आदि आदि। अनेकानेक आम लोगो की आम समस्याए हे। जिनसे रोजाना ही लोगो को रु ब रु होना पड़ रहा हे।

मेरा आम जनता से आग्रह हे। वे आम जनजीवन की समस्याओं के निराकरण के लिए ऐसे ही सजगता दिखाने का मार्ग अपनावे। रेल तो नही रुकी। जनता के सतत सजग रहने की दशा में शायद किसी मुख्य आम समस्या से राहत मिल जावे। ब्यावर जिला बने या नही बने। कम से कम जिलास्तरीय सुविधाए ही हमे नसीब हो जाए। जनता जनार्दन जब सड़क पर आ जाती हे तो उसके सामने कोई ताकत टिक नही सकती। राजनेताओं-प्रशासन को यह कटु सत्य दिलो-दिमाग में रख कर ही आवश्यक निर्णय लेने के लिए पग उठाने चाहिए। कदम जनहित में ही उठते हे या नही। इस पर ठेठ देहाती की भी नजर होती हे। यह भी उनको भूलना नही चाहिए।
सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राज.)

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