ब्यावर में ही क्यों अमूमन पूरे प्रदेश के शहरों-गाँवों में नप नपा व पंचायतो में दिन-ब-दिन ऐसे ही हालात बन रहे हे। ब्यावर में हालात तेजी से बिगड़ रहे हे। जन-जन के बीच यह सब चर्चा का आम विषय हो रहा हे। न तो इस पर नेताओं की नकेल हे और न ही अधिकारियो के हाथो में इसकी लगाम हे। वे सब भी बहती गंगा में गोते लगा लेने को आतुर सिर के बल खड़े हे। वो 0.1प्रतिशत तबका साम-दाम-भेद ( दण्ड नही, नेताओ के मामले में यह इनके बस की बात नही होती ) हर सम्भव तरीके से उनको “नाथ” लेने में पारंगत हो गया हे। इस प्रकार 0.1%+नेता+अधिकारी+कुछ अन्य मिल कर ब्यावर के हितो के साथ लगातार बेखोफ बलात्कार कर रहे हे।
अधिकारी-नेताओ की मनमानी, बे-लगाम मिलीभगत व भ्रष्टाचार का उदाहरण देखिये। ब्यावर के बहुचर्चित “जेसीटी” काम्प्लेक्स प्रकरण में…! पिछले दिनों यहाँ नेताओं का अभिनन्दन समारोह होना था। इस भवन में अनाधिकृत निर्माण था अथवा नही, विषय यह नहीं हे। विषय यह हे कि आयुक्त लम्बी छुट्टियों पर थे। मामला समझोता समिति के पाले में गया हुआ था। फिर ऐसी क्या आफत आ गई कि आयुक्त दोड़े चले आये। नप हाजरी रजिस्टर में उनकी “एल” दर्ज थी। फिर भी वे इसे सीज़ कर गये। फिर डीएलबी के उच्चाधिकारी ने सीज़ को अवेध मानते हुए आयुक्त से इसे खोलने के आदेश दिए। आश्चर्य देखिये। आयुक्त चार दिनों तक अपने हेड बोस के आदेशो पर “कुंडली” मारे बेठे रहे। आखिरकार भवन मालिक को अपने ही हाथो से सरकारी सीज़ को खोलना पड़ा। सम्भवतया राजस्थान में अपने आप में यह पहला ही अनूठा मामला सामने आया होगा। अब सवाल यह उठता हे कि डीएलबी के उस उच्चाधिकारी बोस से भी आयुक्त का दूसरा और कौन सा “सुपर बोस” रहा होगा…? जिसके आदेश पर सिर के बल चल कर आयुक्त ने (छुट्टी में होने के बावजूद) भवन को सीज कर दिया। और फिर ड्युटी पर होने के बावजूद भी उसी “सुपर बोस” के डर से अपने आका का आदेश मानने में भी कोताही बरतने में कोई हर्ज नही किया। हाल ही इस सार्वजनिक हुए मामले ने नप की जबरदस्त किरकिरी कराई हे। इतना होने के बावजूद भी आयुक्त अपने पद पर यथावत हे…! यह आश्चर्य का सबब हे।
नप का यह एक ही मामला नही हे। जिसमे भ्रष्टाचार की बू नही आती हो। शहर की गली-गली में नप के ऐसे नासूर भरे हे। जिनसे “भ्रष्टाचार की सड़ांध” आ रही हे। उस सड़ांध ने शहर वासियों का जीना दूभर कर दिया हे। शहर में इन दिनों निर्माणाधीन व्यवसायिक व आवासीय काम्प्लेक्सो में पार्किंग स्थल-ओपन लेंड आदि केवल उन नक्शों में ही दिखाई देते हे जो नप से पास कराए गये हे। मौके पर स्थिति उलट हे। इसकी किसी को कोई परवाह नही हे। लोग शिकायते कर कर थक जाते हे। कही कोई सुनवाई नही होती। इससे पूरे शहर में गलियों व मुख्य बाजारों में पार्किग की जबरदस्त परेशानी हो गई हे। नप के भ्रष्टाचार का नमूना देखिये। चांग गेट पर सरकारी जमीन को पार्किंग के नाम पर कोड़ियो में किराए पर दे दी गई। जबकि वहाँ उस ठेकेदार ने ठेलो को खड़ा कर दुकानदारिया सजवा ली। उससे वह कई गुना रुपय्या उगा रहा हे। नप की खुले आम इस लूट से आम आदमी हतप्रभ हे।
हाईकोर्ट के आदेश पर नप के रुके हुए चुनाव फिर से 1990 में होने पर पूर्व IAS अधिकारी डॉ. बी. शेखर की बात मुझे आज भी याद आती हे। उनकी प्रतिक्रिया थी कि इससे अब ब्यावर के विकास कार्यो को ब्रेक लग जायेंगे।उनकी पीड़ा युक्त आशंका थी कि विकास कार्यो में राजनीति जमकर आड़े आएगी।नप के सभी पैतालीस पार्षदों को मै ब्यावर का धणी-धोरी मानता हू। आम मतदाताओ ने उनको अनेको अरमानो के साथ चुना हे। यह भी कटु सत्य हे कि इनमे से अधिसंख्य पार्षद फिर से चुनकर नही आयेंगे। मेरा आग्रह हे वे प्रण कर ले कि “न खायेंगे और न ही खाने देंगे।” फिर देखिएगा ब्यावर के विकास को कैसे “पंख” लगते हे।
सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राज.)