स्थानीय मीडिया व स्तम्भ लेखको ने लिखा कि देश का वातावरण ऐसा नही है कि पाकिस्तानियों को मंच दिया जाये।उन्होंने साहित्यिक,सांस्कृतिक,बौद्धिक स्तर पर दोनो देशो के बीच मैत्री की वकालत करने वालों को भी कटघरे में रखा।
कल उर्स के मौके पर पाकिस्तान से बड़ा यात्री दल अजमेर आया है।प्रशासन उनकी मेहमाननवाज़ी में लगा है। वही मीडिया और स्तंभकार अब अजमेर के सौहार्द का गुणगान करने में लगे हैं।
दो माह में क्या बदल गया?कथित राष्ट्रवादियों का आत्मबोध कहाँ सो गया।?क्या पाकिस्तान बदल गया?
दरअसल बदला कुछ नही है।सिर्फ गिरगिटों ने रंग बदले हैं। सियासी लोगो की तो यह प्रवृत्ति जानी पहचानी है।मीडिया भी इस गिरगिट गति को प्राप्त हो रहा है,यह कुछ नया है।
पाकिस्तानी दल का हार्दिक स्वागत है।दोनों देशो को करीब दोनों देशो की जनता ही ला सकती हो।बशर्ते वह सियासतदानों के जाल में न फंसे और उनके मंसूबो से लड़ने का साहस पैदा करे।
