जामडोली के बाद अब अजमेर का जेएलएन अस्पताल!

vimleshसंवेदनहीनता चरम पर है, नवजात लगातार दम तोड़ रहें हैं और उस पर यह बयानबाज़ी कि, ‘ बच्चे तो हमेशा मरेंगे, मृत्यु प्रकृति का नियम है’.. चरम पर पसरी अव्यवस्थाओं और यमदूत बन बैठे चिकित्सकों को देख अस्पताल आमजन में डर पैदा कर रहे हैं… अब बीमार होने से ज़्यादा अस्पताल जाने से डर लगने लगा है…
अजमेर के सरकारी अस्पताल की व्यवस्थाओं पर यहाँ की पूर्व कलेक्टर आरूषि मलिक ने भी सवाल उठाए थे.. निरीक्षण होते हैं.. खामियां पायी जाती है.. कार्यवाहियों के पुलिंदे बंधते हैं पर अव्यवस्थाओं की सुरसा अपना कद बढ़ाती ही जाती है.. फटे बदहाल बैड और गंदगी का बेमाप प्रसार किसी एक सरकारी अस्पताल की तस्वीर नहीं है बल्कि राज्य भर के सरकारी अस्पताल इस दृष्टि से अपनी विशेष पहचान रखते हैं..
अजमेर के ही े टी. बी. अस्पताल में मरीज़ जिंदा जल जाता है..यहां का जनाना अस्पताल प्रसूताओं की ठीक देखभाल नहीं कर पाता.. वरिष्ठ चिकित्सक और फर्स्ट ग्रेड स्टाफ अस्पताल से नदारद रहता है ओर रेजिडेंट्स के सहारे अस्पतालों की रातें गुज़रती हैं… डॉक्टरों की ह्रदयहीन टिप्पणियां और संवेदनहीनता अब आम बात है..
ठीक है.. हम और आप यूँ ही गरियाते रहेंगे और सरकारी महकमें मौतों का नित नया कीर्तिमान यूंही खड़ा करते रहेंगे..
ऐसे में हम बेबसी में या तो शब्दों के माध्यम से अपना आक्रोश व्यक्त कर सकते हैं या प्रार्थना कि किसी को भी इन अव्यवस्थाओं के आगारों का मुँह ही नहीं देखना पड़े…

vimlesh sharma

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