रजनीश रोहिल्ला। अजमेर
भारतीय जनता पार्टी के युवा चेहरा संपत सांखला का नाम परिचय का मोहताज नहीं रहा है। आज उनका जन्म दिन है। शुभकामना से ज्यादा बधाई ।
बड़ा संघर्ष कर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने वाले सांखला ने बड़ा मुकाम हासिल किया है। उत्तर और दक्षिण के बीच चलने वाली राजनैतिक रस्सा कस्सी से कौन नहीं वाकिफ है।
संपत्त सांखला उत्तर विधानसभा क्षेत्र का एक मात्र ऐसा नाम है। जिसे ओंकारसिंह लखावत के निकटतम लोगों में जाना जाता है। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि देवनानी के क्षत्र में रहकर किसी और नेता के नाम के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहना बड़ी ही दिलेरी का काम है।
पिछले चुनाव में तो नौबत यहां तक आ गई कि सांखला को उत्तर विधानसभा क्षेत्र के किसी भी वार्ड से टिकट नहीं मिला। उन्होंने अनिता भदेल के कोटे के वार्ड से चुनाव लड़ा। चन्दर वरदाई सांखला के लिए बिल्कुल अनजाना वार्ड था। लेकिन चुनाव लडऩे और जीतने की रणनीति में माहिर सांपत ने ऐसी जगह से जीत हासिल कर ली जहां उनकी कोई राजनैतिक जमीन नहीं थी।
वहीं दख्ज्ञिण के आए रिजल्ट ने सबको चौंकाया। विशलेषकों ने तो इन परिणामों को भदेल का हासिए पर होने से जोडक़र देखा। लेकिन संपत सांखला की जीत और फिर उपमहापौर बनना। दोनों की भदेल के लिए सांस में सांस आना जैसा रहा।
इन चुनावों में भदेल को चुनाव मैनेजमेंट के लिए जाने जाने वाले सुरेंद्रसिंह शेखावत और संपत का सांथ नहीं मिल पाया। क्योंकि दोनों ही चुनाव लड़ रहे थे। बाकि जो भदेल के रणनीति कारों के रूप में जुटे थे उन्होंने भदेल को झूठे आंकडृे पेश कर सारी लुटिया ही डुबो दी।
असल में भदेल के साथ ऐसे लोग लगे हैं जो खुद चुनाव लडनें से डरते हैं। सीधा कोई बड़ा चुनाव लडक़र बड़ा आदमी बनने के सपने देख रहे हैं। इन नेताओं की जमीनी हकीकत यह है कि उनके पास चुनाव लडऩे की कोई बारीक नॉलेज ही नहीं है।
बारीक नॉलेज उसी के पास होती है जो खुद चुनाव लड़ चुका हो। जैसे धर्मेद्र गहलोत वैसे ही संपत सांखला। जन्मदिन की खुशी के बीच दक्षिण विधानसभा की खराब हुई स्थिति को सुधारने की जिम्मेदारी भी संपत के कंधों पर है।
