युवा सर्जन ने गुरु चिकित्सकों को दिया “गीता ज्ञान”

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
अकर्म, कर्म, सुकर्म और विकर्म के गीता का उपदेश एक चिकित्सक पर भी लागू होता है. ये बात समझाते हुए नए मित्तल अस्पताल के सभागार में आयोजित सेमीनार में एक युवा सर्जन ने वहाँ उपस्थित अपने ही गुरुओं को ये सोचने पर मजबूर कर दिया की वे कितने पानी में हैं?
बन्दर से आदमी, आदमी से मरीज, पीड़ा के अहसास से डॉक्टर बनाने का ख़याल, डॉक्टर से सर्जन और फिर कैंसर सर्जन का विकास किस तरह हुआ इस विषय पर डॉ. प्रशांत शर्मा ने कई ऐसी बातों का जिक्र किया जिनसे एक चिकित्सक को परहेज करना चाहिए. डॉक्टर होने के साथ ही उसे मृदु भाषी, संवेदनशील व दयावान होना भी जरूरी है. सिर्फ हाय पैसा, हाय पैसा के चक्कर में कुछ डॉक्टर जल्दी जल्दी ऑपरेशन ख़त्म करके दूसरे ऑपरेशन हेतु अन्य अस्पताल जाने की फिराक में रहते हैं. इससे गलती होने की संभावनाएं होती है, जिसका खामियाजा मरीज को भुगतना पड़ता है. प्रशांत ने कहा की भले ही एक-आध घंटा ज्यादा लगे परन्तु मरीज के अवयवों और उसकी कोशिकाओं का पूरे आदर, प्यार और सावधानी से ऑपरेशन करना जरूरी है.
प्रश्न काल में जब मैनें पूछा की “Operating Surgeons v/s Non Operating Surgeons” के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं? तो पूरा हाल ठहाकों से गूँज उठा. डॉ. जे सी झवर ने इसका जवाब कुछ-कुछ इस अंदाज़ में दिया –
“Non Operating Surgeon ऑपरेशन थिएटर का वो सर्जन होता है जो एक OUT standing Surgeon होता है” याने ओटी के बाहर खड़े रहने वाला सर्जन होता है. तो इस जोक से और अधिक हंसी के फव्वारे छूटने लगे.
इससे पूर्व Rajeev Gandhi Cancer Institute, Delhi से पधारे डॉ. नरेन्द्र अगरवाल ने ब्लड कैंसर, मल्टीपल मायलोमा, अमाईलोईडोसिस व कैंसर में प्रचलित वर्तमान चिकित्सा पध्यती पर प्रकाश डाला. बोन मेरो ट्रांसप्लांट की अहमियत व इससे होने वाले लाभ हानि पर भी विस्तार से चर्चा हुई.
सेमीनार के चेयरपर्सन जेएलएल एच. के रेडियोथेरेपी विभाग के हेड डॉ. माथुर थे. डॉ. जीएस झाला, डॉ. पीएल गुप्ता, डॉ. एसके अरोरा, डॉ. विनोद विजयवर्गीय, डॉ. कुमकुम सिंह, डॉ. दिलीप मित्तल सहित शहर के कई गणमान्य चिकित्सकों ने इसमें भाग लेकर लाभ उठाया.
डॉ.अशोक मित्तल. मेडिकल जर्नलिस्ट एंड ओर्थपेडीक सर्जन

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