खबरों के मुताबिक़ अब नगर परिषद फिर अपनी मनमानी पर उतारू हे। *उसने अमृतकौर अस्पताल सरकारी मार्ग पर अपने किसी पसंदीदा व्यक्ति को एक केबिन लगाने की इजाजत दे दी। चेयरमेन ने भी क्या खूब जवाब दिया हे। कह रही हे कि केबिन की आड़ में अतिक्रमण की अगर कोई शिकायते आई तो उसे हटा लिया जाएगा।* यह बयान देने से पहले वो जरा शहर का दौरा भी कर लेती तो अच्छा होता। कांग्रेस के राज में शहर के कुछ प्रमुख मार्गो पर गुमटियों की स्वीकृतियां दी गई थी। उनका क्या हश्र हुआ? उन गुमटियो के आगे उतना ही और कही कही उससे दुगुना तक अतिक्रमण हो गया। सोचने वाली बात हे कि लाभान्वित वे गुमटी वाले लोग क्या उसी में बेठ कर अपना व्योपार कर सकते हे? ब्यावर कोई मुम्बई तो हे नही…! फिर सरकार क्यों इन गरीबो के सपनों के साथ खिलवाड़ करती रहती हे? तब भी सरकार ने कहा था कि शिकायते आने पर केबिन को उठा लिया जाएगा। आज तक हुआ क्या? *क्या हम किसी गरीब के मुंह में निवाला देकर वापस निकाल सकते हे? जन प्रतिनिधि क्यों इन गरीबो की गरीबी का मखौल उठाने पर आमादा रहते हे?*
उल्लेखनीय हे कि पूर्व में भी नगर परिषद की मिली भगत से ही इसी मार्ग पर रातोरात अवैध रूप से दुकानों की श्रंखलाए खड़ी हो गई। उनका भी कुछ नही हुआ। अब नगर परिषद खुद ही कुकृत्य करने पर तुली हे। *यह भी गौर करने वाली बात हे कि नगर परिषद ने केवल एक केबिन ही रखाने का निर्णय क्यों लिया?* क्या उसकी भगोनी का एक चावल देखने की मंशा हे। एक केबिन के बाद और अधिक मोल-भाव रखने का इरादा हे…? या फिर जिस किसी के लिए भी केबिन रखने का निर्णय लिया गया हे। *उससे कही यह “समझौता” तो नही किया गया हे कि वह अपनी मोनोपोली से वहां अपना धंधा चलाने को स्वतन्त्र हे…!* खेर…! जो भी हो। ऐसे तुगलकी निर्णयों से बू का तो आनी लाजिमी ही हे।
*सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राजस्थान)*
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