क्या गैर सिंधीवाद ने खो दिया एक दमदार दावेदार?

IMG_20170213_225012अजमेर नगर निगम की साधारण सभा के दौरान मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के पूर्व नगर परिषद सभापति व भाजपा से निष्कासित मौजूदा पार्षद सुरेन्द्र सिंह शेखावत को अपने हाथों से रोटी खिलाने की फोटो वायरल हुई तो एक बार फिर राजनीतिक अफवाहों की अबाबीलें उडऩे लगीं। मौलिक सवाल सिर्फ एक ये कि आखिर किस समझौते के तहत गहलोत व शेखावत एक हो गए?
कुछ ऐसे ही सवाल ये कि क्या समझौते से पहले गहलोत ने अपने आका शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी से सहमति ली थी? क्या देवनानी ने सुलह से पहले गहलोत के जरिए शेखावत ये वचन तो नहीं ले लिया कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट का रुख नहीं करेंगे? अव्वल तो वे अभी भाजपा में लौटे नहीं हैं, मगर वापसी हुई भी तो क्या अजमेर उत्तर से चुनाव लडऩे की जिद नहीं करेंगे? और अगर इतना बड़ा करार हुआ है तो क्या यह गैर सिंधीवाद की मुहिम को एक तगड़ा झटका नहीं कहलाएगा?
ज्ञातव्य है कि गैर सिंधीवाद की मुहिम के तहत पिछली बार भाजपा टिकट के करीब पहुंच गए थे, वो तो ऐन वक्त पर देवनानी ने संघ की तुरप का पत्ता खेल कर टिकट हथिया ली, वरना कांग्रेस की तरह भाजपा में भी पहली बार गैर सिंधी को टिकट देने का प्रयोग हो गया होता। कहने की जरूरत नहीं है कि शेखावत गैर सिंधीवाद के एक आइकन के रूप में स्थापित हो गए थे। विशेष रूप से मेयर चुनाव में हारने के बाद देवनानी के विरोधी हों या गैर सिंधीवाद की मुहिम को हवा देने के वाले, शेखावत के इर्द गिर्द जमा हो गए थे। उन्हें शेखावत से बड़ी उम्मीदें थीं। माना यही जा रहा था कि अगर कांग्रेस व भाजपा, दोनों ने सिंधी प्रत्याशी ही उतारे तो वे गैर सिंधीवाद के नाम पर निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतर जाएंगे। मगर अब जब कि पिछले दिनों मसाणिया भैरवधाम में चंपालाल जी महाराज के सामने शेखावत व गहलोत ने राजनीतिक दुश्मनी समाप्त कर ली तो उस संभावना पर धुंधलका छा गया है। हालांकि अभी ये पता नहीं है कि शेखावत की भाजपा में वापसी कब होगी, होगी भी या नहीं, मगर बदले हालात यही संकेत दे रहे हैं कि शेखावत देवनानी के खिलाफ दावेदारी नहीं करेंगे। निश्चित ही देवनानी ने गहलोत को शेखावत से दोस्ती करने से पहले दावेदारी न करने का वचन देने को कहा होगा। हालांकि राजनीति में सब कुछ संभव है, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि गैर सिंधीवाद ने एक तगड़ा दावेदार खो दिया है। ऐसे ही एक उभरते दावेदार पार्षद ज्ञानचंद सारस्वत भी थे, मगर वे पिछले निगम चुनाव में देवनानी से सुलह कर भाजपा में लौट गए थे। हां, इन दोनों का स्थान अब अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेडा लेते दिखाई दे रहे हैं। वे अंडरग्राउंड तैयारी कर रहे बताए। देखते हैं क्या होता है?
-तेजवानी गिरधर
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1 thought on “क्या गैर सिंधीवाद ने खो दिया एक दमदार दावेदार?”

  1. Kabhi kabhi rajneeti positive bhi honi chahiye,jiska massage filhal geahlot/shekawat ki mitrata ne diya hai,VA rahi bat election me ticket ki to jab devnani ji ko pahali bar ticket Mila thaa tab se pahle unka bhi kahi Nam nahi thaa

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