कैसा हो आपके सपनो का शहर ब्यावर

कैसे होगा ब्यावर का विकास?

हेमेन्द्र सोनी
हेमेन्द्र सोनी

क्या हमने शहर के राजनेताओ से ऐसे ब्यावर शहर की कल्पना की थी?
आओ विचार करे:- ?
आज ब्यावर के हालात किसी से छुपे हुए नहीं हे, चारो तरफ फेली गंदगी, हाइवे से लेकर गली मोहल्ले तक आवारा जानवरो की भरमार, बरसो से टूटी सड़के, गंदे पानी की निकासी के लिए नालियो का अभाव, छोटी छोटी गलियो में चारो और मार्केट और कॉम्पलेक्स के कारण बढ़ता ट्रैफिक दबाव और आवागमन की समस्या । मुख्य बाजारों में बढ़ते ट्रैफिक दबाव को कम करने के लिए कोई सोच या रणनीति नहीं हे किसी के पास । नए मार्गो के लिए कोई योजना नहीं हे । नियमो को धत्ता बताते बेहिसाब अवैध निर्माण, और अतिक्रमण की भरमार, बिगड़ती ट्रैफिक व्यवस्था, घटते रोजगार आज यही रह गई हे ब्यावर की पहचान ।
इस सब के लिए मुख्य रूप से दोनों बड़ी पार्टिया जिम्मेदार हे जिन्होंने ही आजादी से लेकर अब तक शहर में अपना एक छत्र राज किया । एक दुसरो पे आरोप लगा कर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते । शहर की इस हालात के लिये उन्हें जवाबदारी लेनी होगी ।
किसी भी पार्टीने आज तक ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया जिसे उंगलियो पे गिनाया जा सके, इससे तो अच्छे कई छोटे गाँव हे जहा दोनों पार्टियो के नेता मिल कर गाँव का विकास करते हे ।
? ब्यावर शहर के हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हे की वार्ड वासियो और कालोनी वासियो को साफ़ सफाई के लिए, खस्ता हाल सड़के ठीक कराने के लिए और गंदे पानी की निकासी के लिए, नाली के टूटे हुए फेरो ब्लॉक को ठीक करवाने के लिए आये दिन ज्ञापन देकर प्रशासन को अपनी समस्या पे ध्यान दिलाना पड़ता हे और आंदोलन कर अपनी बात अखबारो और सोशियल मीडिया के माध्यम से पहुचानी पड़ती हे । यह भी किसी पीड़ा से कम नहीं हे और ऐसा लगता हे की ब्यावर ज्ञापनों का शहर बन गया हे और बात बात पर ज्ञापन देना दिनचर्या का हिस्सा हो गया हे ।
? एक ही जगह बरसो से जमे अधिकारी और कर्मचारी भी कोढ़ में खाज का काम करते हे, चाहे नगर परिषद हो, तहसील हो या अन्य कोई विभाग हो ।
? शहर में जो उद्योग धंधे चल रहे वह केवल व्यापारी की जिंदादिली के कारण ही चल रहे उनको भी सरकारी मदद के नाम पे केवल शोषण किया जाता हे ।
नेताओ की उदासीनता के कारण उद्योग और कुटिर उद्योग धंधो को नुकसान पंहुचा हे ।
? शहर के विकास के लिए सरकारी प्रयासों की कमी के कारण पूर्व के कई छोटे बड़े उद्योग धंधे बंद हो गए जिस कारण भी जनता अपना जीवन ज्ञापन करने के लिए हाँथ पाँव मारती फिर रही हे ।
? राजनीति की ढीली पकड़ के कारण शहर के कई सरकारी विभागों का पलायन हो गया जिसके लिए शहर की कमजोर राजनीति ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हे ।
? शहर के लिए आवागमन के रूप में यहाँ से गुजरने वाली प्रत्येक सवारी और माल गाडी का ठहराव होना जरुरी हे इसके अभाव में भी विकास में रुकावट आएगी ।
? रानीखेत ट्रेन को रुकवाने के लिए जनता ने अपने सभी एडी चोटी का जोर लगा लिया लेकिन सफलता नहीं मिली, असफलता का मुख्य कारण राजनीति इच्छा शक्ति की कमी और प्रशासन पे पकड़ का अभाव और बिना उचित तरीके के अपनी मांगे उठाना ।
? जनता के मनोरंजन के लिए पिछले 50 वर्षो में शहर में ना तो कोई उद्यान और ना ही कोई प्राकृतिक स्थान और नाही कोई पिकनिक स्पॉट का चयन किया गया और ना ही उसका विकास किया गया, शहर आज भी 50 वर्षो पूर्व जहा खड़ा था वही खड़ा हे ।
? शहर का एक मात्र सुभाष उद्यान और उसका तालाब बदहाली के आंसू रो रहा हे ।
? पूर्व विधायक देवी शंकर भूतड़ा ने जरूर ब्यावर और मगरे की जनता के लिए नीलकंठ महादेव को विकसित किया आज केवल वही ऐसा रमणीक क्षेत्र हे जहा परिवार के साथ जा कर प्राकृतिक छंटा का आनन्द उठाया जा सकता हे और भागदौड़ भरी जिंदगी में शुकुन के पल व्यतीत कर सकते हे ।
? जबकि दूसरी तरफ शहर के उद्यानों की दशा हम से छुपी नहीं हे । शहर के नेताओ की यह केसी सोच हे की शहर के नन्हे मुन्हे बच्चों को शहर के सुभाष उद्यान में एक बच्चा ट्रैन की सौगात तक नहीं दे सके जबकि इसके लिए 25 लाख रूपये खर्च भी हो चुके हे इतना पैसा खर्च होने के बाद भी ट्रेन को मोहताज हे ब्यावर के बाशिंदे ।
ऐसी हे शहर ब्यावर की गन्दी राजनीति ।
किसी के पास भी आने वाले भविष्य के लिए सड़को पे बढ़ने वाले ट्रैफिक के दबाव को कम करने की कोई भी सोच नही हे जिसकी वजह से भविष्य में शहर की ट्रैफिक व्यवस्था और पार्किंग के हालात और खराब हो सकते हे ।
? आने वाले समय में बढ़ते ट्रैफिक के कारण बाजार की स्थिति गलियो से भी ज्यादा खराब हो सकती हे तथा इस कारण शहर की शान्ति भी भंग होने का डर हमेशा बना रहेगा ।
? प्रशासन के नाम पे अफसर केवल खाना पूर्ति कर समय पूरा करने में लगे हुए हे, आम जनता के जायज कार्य को किसी ने किसी बहाने अटकाना और नाजायज कार्यो के लिए सुविधा शुल्क लेकर आसान बनाया जाना आज की मनोव्रति हो गई हे ।
? क्या हे उपाय शहर को विकास के मार्ग पे लाने का :- आज शहर को आवश्यकता हे राजनीति सोच से परे एक ऐसे संगठन की जिसमे शहर के विकास की सोच हो और जिसके पास शहर और आस पास की कालोनियो के विकास का आगामी 20 वर्षो का मास्टर प्लान हो तथा उस प्लान को जो भी राजनेतिक पार्टी सत्ता में आये उसपे उस प्लान को लागू करने का दबाव हो । तभी शहर का विकास होगा अन्यथा राजनेतिक पार्टिया और उसके स्वार्थी नेता अपने स्वार्थो के चलते शहर के विकास की तरफ ध्यान दे यह जरुरी नहीं ।
? या फिर शहर को मिले ऐसे प्रशासनिक अधिकारी, तहसीलदार और उपखण्ड अधिकारी जो केवल और केवल बिना राजनेतिक दबाव के शहर के विकास का जीम्मा उठा सके और वो भी पूरी ताकत के साथ बिना राजनेताओ की और उनके नाजायज दबाव की परवाह किये केवल शहर विकास के अपने मकसद पे चल सके । ना की अपने प्रभाव का नाजायज इस्तेमाल कर उलटे सुलटे तुगलकी फरमान जारी कर अपना रूतबा दिखाए ।
? सरकारी कर्मचारियों को अपने कार्यो के प्रति जवाबदारी पूरी ईमानदारी से निभाने की आवश्यकता हे तभी शहर के हर नागरिक तक प्रशासन की और सरकारी योजनाओ की पहुच होगी ।
? आज जरुरत हे शहर में कुटिर उद्योग और व्यापार के लिए नई सोच की इन्हें पनपने के लिए उचित संरक्षण और मार्गदर्शन की जिस कारण रोजगार में वृद्धि हो और शहर विकास के पथ पे आगे बढ़ सके ।
सभी को शहर विकास की एक सोच ले कर उस पे कार्य करने की जरुरत हे ।
? राजनेताओ को केवल वोट के समय जनता और कार्यकर्ताओ की याद आती हे, चुनाव के बाद कार्यकर्ताओ को और आम जनता को अपने कार्यो के लिए चप्पले घिसते देखा जा सकता हे ।
? जनता अगर सच्चे मायने में अपने शहर से प्यार करती हे और उसके विकास के लिए कुर्बानी देने को तैयार हे तो ही शहर का विकास संभव हे नहीं तो हमेशा की तरह विकास के लिए हम मुंह ताकते रह जाएंगे ।
? जिले का सपना पिछले 3 दशको से जिले का झुनझुना बज रहा हे लेकिन वो भी दूर के अंगूर खट्टे की तरह दूर की कोडी साबित हुई हे ।

? किसी की लिखी ये चार लाइने :-
कुछ तो खासियत है,
इस प्रजातंत्र में,

वोट देता हूँ फकीरों को,
कमबख्त शहंशाह बन जाते है !!

हेमेन्द्र सोनी @ BDN

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