वस्तुत: यह उस एक सैयद अतहर अब्बास काजमी का विचार नहीं है, बल्कि यह पूरे एक समुदाय के भीतर ही भीतर सुलग रहा है, यह बात दीगर है कि प्रत्यक्षत: उभर कर नहीं आया, जिसके अनेकानेक कारण हैं, मगर यदि एक व्यक्ति इसका उपयोग किसी को फंसाने के लिए कर सकता है तो किसी और को कुछ और घातक करने को भी प्रेरित कर सकता है। इसी संदर्भ में मैंने लिखा है कि यह मामला दो विचारधाराओं के मुकाबले का लगता है। ऐसे में पुलिस को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
यह पोस्ट लिखी ही इसलिए गई थी कि अजमेर की पृष्ठभूमि कुछ संवेदनशील है और उसमें दरगाह बम ब्लास्ट का भी जिक्र किया गया था। संयोग से इन्हीं दिनों उस मामले में कोर्ट ने संघ के ही तीन स्वयंसेवकों को दोषी माना है, जिस एक समुदाय विशेष संतुष्ट नहीं कि अभियोजन ने ठीक से पैरवी नहीं की, इस कारण कई और बरी हो गए। इस प्रकरण में संघ का सीधा सीधा सांगठनिक हाथ नहीं, मगर संघ से जुड़े स्वयंसेवकों से संलिप्तता सामने आई है, तो अजमेर इतिहास में इस रूप में दर्ज हो गया है, जहां के एक वाशिंदे व उसके सहयोगियों की वजह से भगवा आतंकवाद के आरोप को नकारने की दृढ़ता कमजोर हुई है। इस लिहाज से अजमेर और अधिक संवेदनशील हो गया है। हो सकता है कि यह डर अभी प्री मैच्योर लगे, मगर अब और अधिक सतर्क होने की जरूरत है।
-तेजवानी गिरधर
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