हर जगह बरसात लिखने वाला कहां चला गया?

जिन लोगों की शहर की हर गतिविधि पर नजर रहती है, उन्हें ख्याल में होगा कि कोई पंद्रह साल पहले शहर में हर खंभे व दीवारों पर चॉक से बरसात लिखा होता था। कहीं-कहीं रेन भी लिखा हुआ पाया गया। ऐसा करने वाला वह कौन था, इसका कभी पता नहीं लगा। यह हरकत हर जगह जयगुरुदेव लिखे होने से मिलती जुलती थी। जयगुरुदेव तो लिखना समझ में भी आता है कि उनके शिष्य अपने गुरू का प्रचार करते थे, मगर बरसात लिखने का प्रयोजन समझ में नहीं आया। वह कोई कोड वर्ड था या यूं ही वाहियात हरकत, कुछ पता नहीं लगा।
बरसात लिखने वाला बुद्धिमान था या पागल, इसका का भी अंदाजा नहीं लगाया जा सका। वह एक था या कोई गिरोह, ये भी पता नहीं। चूंकि इस शब्द की टाइपोग्राफी हर जगह एक जैसी थी, इससे लगता था कि वह गिरोह की नहीं, बल्कि किसी एक ही व्यक्ति की करतूत है। लेकिन साथ ही ये सवाल भी कौंधता था कि एक व्यक्ति भला पूरे शहर में हजारों जगह कैसे लिख सकता है? वह किसी सिरफिरे की हरकत थी या किसी तांत्रिक की, इसका भी आकलन नहीं हो पाया। हो सकता है कोई सिरफिरा हो, जिसके जीवन में बरसात ने कोई अनिष्ट किया हो और वह विक्षिप्त हो गया हो। तांत्रिक इसलिए हो सकता था, कहीं वह हर जगह बरसात लिख कर बारिश को आमंत्रण तो नहीं देता था? बारिश का अभाव तो अजमेर में आम तौर पर रहा ही है। चूंकि बरसात शब्द में लाइन नहीं होती थी, इस कारण समझा गया कि कदाचित वह गुजराती रहा होगा। ज्ञातव्य है कि गुजराती भाषा में शब्दों के ऊपर लाइन नहीं होती है।
चूंकि हर जगह बरसात लिखने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था, इस कारण किसी ने सवाल भी नहीं उठाया। देख कर भी सभी अनदेखी कर देते थे। मेरी तब सीआईडी के कुछ कार्मिकों से बात हुई तो उनका कहना था कि हमारे भी नोटिस में है, मगर उसकी जांच करने का औचित्य नजर नहीं आता। लंबे समय से हम भी देख रहे हैं, मगर उसकी वजह से शहर में कोई घटना नहीं हुई, इसलिए हमें ये किसी खुफिया एजेंसी का काम भी नहीं लगता। इसी कारण पुलिस ने कभी जांच करने की जरूरत ही नहीं समझी।
कुल मिला कर यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि हर जगह बरसात कौन लिखता था और वह कहां चला गया?

-तेजवानी गिरधर
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