हालांकि अनुसूचित जाति महिला के लिए रिजर्व मेयर पद के लिए चर्चाओं में स्थापित या चर्चित चेहरे आ रहे हैं, लेकिन अंदरखाने से यह जानकारी छन कर आ रही है कि भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस किसी फ्रेश चेहरे को सामने ला सकता है। ठीक वैसे ही जैसे पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री व मौजूदा अजमेर दक्षिण विधायक श्रीमती अनिता भदेल को लेकर आई थी। उस वक्त श्रीमती भदेल हालांकि आरएसएस के प्रकल्प संस्कार भारती से जुड़ी हुई थीं, लेकिन भाजपा में उनकी कोई सक्रियता नहीं थी। न ही उनकी कोई महत्वाकांक्षा थी। संघ की मंशा के अनुरूप ही भाजपा ने उन्हें पार्षद का टिकट दिया और जीतने पर तत्कालीन नगर परिषद का सभापति बनवा दिया था।
जानकारी ये भी है कि केवल अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित वार्डों में ही नहीं, अपितु कुछ सामान्य वार्डों से भी अनुसूचित जाति की महिलाओं पर दाव खेला जा सकता है। यद्यपि आरएसएस ने अपना मन तो बना लिया है, लेकिन फिलवक्त किसी को कानों-कान खबर नहीं है कि वह करने क्या जा रहा है? भाजपा के नेताओं तक को नहीं।
चूंकि अधिसंख्य सुरक्षित वार्ड अजमेर दक्षिण में हैं, अजमेर उत्तर में केवल दो वार्ड ही सुरक्षित हैं, इसलिए मेयर पद की दावेदार स्वाभाविक रूप से अजमेर दक्षिण से ही होगी। संगठन लाख कहे कि पार्षदों के टिकट चयन समिति करेगी, मगर यह भी तय है कि दक्षिण के अधिकतर टिकट श्रीमती भदेल ही फाइनल करने वाली हैं। उसमें गलत कुछ भी नहीं है। लगातार चार बार विधायक चुने जाने के कारण जितनी पकड़ उनकी है, उतनी भाजपा के किसी और नेता की हो भी नहीं सकती। श्रीमती भदेल चाहेंगी कि उनके क्षेत्र से एकाधिक दावेदार जीत कर आएं, मेयर किसे बनाया जाए, यह बाद में तय हो जाएगा।
महत्वपूर्ण बात ये है कि अजमेर उत्तर में केवल दो वार्ड ही आरक्षित हैं, वो भी अनुसूचित जाति के पुरुष के लिए, लेकिन समझा जाता है कि उनमें से एक पर महिला को भी चुनाव लड़ाया जा सकता है। इतना ही नहीं आरएसएस जो वर्क आउट कर रही है, उसमें यदि अनुसूचित जाति की कोई महिला सामान्य वार्ड में निवास कर रही है तो उसे वहां से ही लड़ाया जा सकता है। अर्थात यह पक्का नहीं है कि अजमेर दक्षिण से जीती हुई पार्षद ही मेयर बनाई जाएगी। ज्ञातव्य है कि नियम के मुताबिक सामान्य वार्ड में भी अनुसूचित जाति का पुरुष या महिला को चुनाव लड़वाने में कोई अड़चन नहीं है।
मुद्दे की एक बात ये भी है कि राजनीतिक जानकार ये मानते हैं कि भाजपा अजमेर दक्षिण की तुलना में अजमेर उत्तर से अधिक पार्षद जितवा कर लाएगी, हालांकि दक्षिण में 42 व उत्तर में 38 वार्ड हैं। विधानसभा चुनाव के लिहाज से अजमेर दक्षिण भी भाजपा का गढ़ है, इस कारण श्रीमती भदेल चार बार जीत कर आई हैं। उसमें मूल रूप से सिंधी व माली जाति के वोट बैंक उनकी जीत का आधार बनते हैं। लेकिन नगर परिषद चुनाव में ऐसा नहीं है, क्योंकि कई वार्डों में कांग्रेस का वर्चस्व है।
जहां तक प्रमुख दावेदारों का सवाल है, समझा जाता है कि पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती वंदना नरवाल केवल उसी सूरत में चुनाव लड़ेंगी, जबकि उन्हें पक्के तौर पर आश्वस्त किया जाएगा कि भाजपा का बहुमत आने पर उन्हें ही मेयर बनाया जाएगा। वे प्रबल दावेदार हैं ही इसलिए एक तो वे गैर कोली जाति से हैं और दूसरा ये कि उन पर पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त है, लेकिन ताजा हालत में भी वह बना रहेगा, इस बारे में सुनिश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता था। ज्ञातव्य है कि जिला प्रमुख चुनाव में देवनानी ने उन्हें शतरंज की गहरी चाल से पदारूढ़ करवाया था। बात अगर पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा की पुत्र वधु की करें तो वे हैं तो प्रबल दावेदार, मगर बड़ा सवाल ये है कि क्या वे राजनीति का जुआ खेलने के लिए सरकारी नौकरी छोडऩे की दुस्साहस करेंगी।
इन सब समीकरणों के अतिरिक्त हाइब्रिड फार्मूला रिजर्व में पड़ा है। अगर भाजपा के अधिक पार्षद जीत कर आए और कोई ढ़ंग की अनुसूचित जाति महिला जीत कर नहीं आई तो संभव है किसी सशक्त महिला को मेयर बनवा दिया जाए। तब किसी की भी लॉटरी लग सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
[email protected]