
तभी बाहर एक ठेलेवाला जामुन बेचता हुआ निकला. वह ‘कालें कालें पुष्करवालें’ की आवाजें लगाता रहा था. संयोग की बात है कि वकील साहब का रंग एकदम साफ है, उन्हें यह बात नागवार गुजरी और वह बाहर निकले और उस ठेलेवालें से बहस करने लगे कि तुम पुष्करवालों को काला कैसे कह रहे हो ? वकीलसाहब की बात ठीक भी है. इसी काले-गोरे को लेकर एक कवि की उडान देखिये वह दुनियां के मालिक को क्या उलाहना देरहा है:-
‘भगवान म्है भी कोनी,
अकल को भोंरों.
किन्नै ही बणा दियो कालो,
अर किन्नै ही गोरों.’