दोस्तों, अजमेर की पेयजल समस्या से आप सभी परिचित है, पीडित भी हैं। पिछले दिनों जब बारिष के कारण बीसलपुर बांध लबालब हो गया तो जाहिर तौर पर उसके गेट खोल कर पानी निकालना पडा। ऐसे में यह यक्ष प्रष्न स्पश्ट रूप से उभर कर आया कि बीसलपुर में जब इतना पानी आ गया है तो उसे फालतू क्यों बजाया जा रहा? उसकी बजाय अजमेर वासियों को सप्लाई क्यों नहीं किया जा रहा? हर एक की जुबान पर यह सवाल था। जिन्हें पता था वे भी अनभिज्ञ बन कर यह सवाल कर रहे थे। केवल यह जताने के लिए कि वे जनता के हमदर्द हैं। जवाब इसलिए छिपा रहे थे, क्योंकि उसके लिए वे भी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं।
असल में इसी सवाल में उत्तर छिपा था। सीधा सीधा जवाब था वो यह कि जो पानी व्यर्थ बहाया जा रहा है, उसे हमें सप्लाई नहीं किया जा रहा, यानि उसे हमारे पास भेजने का इंतजाम नहीं है। उसका इन्फ्रास्टक्चर है ही नहीं। बांध से लिफ्ट करके हमारे यहां स्टोर करने की व्यवस्था है ही नहीं। हमको तो उतना ही पानी सप्लाई किया जा पाता है, जितना वहां से ला कर यहां स्टोर कर फिल्टर कर पाते हैं। पानी तो बहुत है, बारिष के कारण नहीं, बल्कि पहले से ही, जयपुर को बांटने के बाद भी, लेकिन उसे यहां स्टोर कर जरूरत के मुताबिक वितरित करने की पूरी व्यवस्था नहीं है। इस पर कभी ठीक से ध्यान दिया ही नहीं गया। और हर बार गर्मी में, सर्दी के भी हम पेयजल संकट भोगते रहे, जलदाय महकमे को कोसते रहे, प्रषासन के सामने गुहार लगाते रहे, आंदोलन की चेतावनी देते रहे। चूंकि मूल समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कार्य योजना बनाई ही नहीं गई, इस कारण समाधान नहीं हो पाया और न ही हो पाएगा। बेषक पेयजल समस्या में मिसमैनेमेंट का रोल भी है, भेदभाव भी होता है, मगर प्रतिदिन होने वाले लीकेज को दुरूस्त करने के र्प्याप्त संसाधन तक नहीं हैं। इस कारण जितना पानी बांध से लाया जाता है, उसमें भी कमी हो जाती है और समस्या बढ जाती है। दूसरी अहम बात यह कि पिछले बीस साल में जितनी जनसंख्या बढी है, उसके अनुरूप व्यवस्थाएं नहीं हो पाईं।
आप जरा सोचिये कि इस बार भी जन आंदोलन की चेतावनी दी गई, लोगों का गुस्सा साफ नजर आ रहा था, फिर भी समाधान नहीं हुआ तो आखिर कोई खास कारण होगा। वरना जलदाय महकमे अधिकारियों को क्या गालियां खाने, मटकियां फूटने से होने वाली जलालत होने और चेतावनियां सुनने में मजा आता है। इतने नकारा तो हो नहीं सकते कि पानी होने पर भी देने की व्यवस्था नहीं कर पाते। इतने निश्ठुर भी नहीं हो सकते कि जनता त्राहि त्राहि करती रहे और वे हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें। यदि इन्फ्रास्टक्चर है तो पूरा पानी देने में उनके घर से क्या जाता है?
समझ में नहीं आता कि हर बार सियापा करने की बजाय कब हमारी राजनीतिक इच्छाषक्ति समस्या के संपूर्ण समाधान के लिए जागृत होगी।