अजमेर नगर परिशद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह षेखावत उर्फ लाला बन्ना की नजर क्या अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र पर भी है, मसूदा विधानसभा क्षेत्र तो उनकी नजर में है ही। अजमेर उत्तर में उनकी रुचि के संकेत भाजपा की जनाक्रोष यात्रा के तहत उनकी ओर से लगाए होर्डिंग्स से मिलते हैं। जनाक्रोष यात्रा की अपील में अजमेर नगर परिशद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह षेखावत उर्फ लाला बन्ना के नाम के साथ दिए गए पद के अतिरिक्त अजमेर उत्तर के षब्द ने लोगों के कान खडे कर दिए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि जनाक्रोष यात्रा विधानसभा वार निकाली जा रही है, इसलिए अजमेर उत्तर षब्द पर ज्यादा चौंकने की जरूरत नहीं है, लेकिन कुछ इसे इस रूप में ले रहे हैं कि सिंधियों के लिए अघोशित रूप से आरक्षित अजमेर उत्तर में वे फिर दावेदारी का मानस बना रहे हैं। ज्ञातव्य है कि एक बार तो वे टिकट लेने के बिलकुल करीब भी पहुंच गए थे, लेकिन विधायक वासुदेव देवनानी बाजी मार गए।
वैसे चर्चा यह भी है कि इस बार अजमेर नगर निगम के पूर्व महापौर धर्मेन्द्र गहलोत, पार्शद ज्ञान सारस्वत, जे के षर्मा आदि गैर सिंधी भी दावेदारों में षुमार हो सकते हैं। ऐसे प्रयास पहले भी होते रहे हैं। गैर सिंधीवाद का प्रयोग पूर्व पार्शद सतीष बंसल ने निर्दलीय रूप से चुनाव लड कर किया था, मगर तब उसकी प्राइमरी स्टेज थी। वैसे अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी व अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल चूंकि लगातार चार बार जीती हैं, इस कारण उनका टिकट कटना असंभव प्रतीत होता है, मगर समझा यह भी जा रहा है कि इन दोनों के टिकट एंटी इंकंबेंसी की वजह से काटे भी जा सकते हैं। इस संभावना के मद्देनजर ही इस बार गैरसिंधीवाद कुछ ज्यादा जोर पकड सकता है। देवनानी से मुक्ति के बहाने अजमेर उत्तर को सिंधियों से भी मुक्त करवाने के प्रयास किए जा सकते हैं। बताने की जरूरत नहीं है कि कांग्रेस तो पिछले तीन चुनावों में गैर सिंधी को ही मौका देती रही है। जानकारी के अनुसार प्रयास ये होंगे कि अजमेर उत्तर की बजाय जयपुर की सांगानेर सीट सिंधियों को दे कर संतुश्ट करने का विकल्प जाए। हालांकि अजमेर में गैर सिंधी को टिकट देने से पहले भाजपा को दस बार सोचना होगा, इससे उसका जातीय समीकरण डिटर्ब हो सकता है, मगर उसे यह भी गुमान हो सकता है कि टिकट गैर सिंधी को दिए जाने के बाद भी सिंधी वोट भाजपा से छिटकने वाला नहीं है। आपको पता होगा कि एक बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के रासासिंह रावत के सामने किषन मोटवानी को उतारा था, मगर तब काको आडवाणी मामो मोटवानी का नारा उछला और सिंधियों ने मोटवानी का साथ नहीं दिया व भाजपा के साथ ही जुडे रहे। भाजपा का वोट बैंक होने की अकेली इसी धारणा के चलते अजमेर उत्तर पर इस बार यदि भाजपा ने गैर सिंधी का प्रयोग किया तो उस पर अचरज नहीं होना चाहिए। एक षंका यह भी कि यदि देवनानी को लगा कि टिकट बचाना संभव नहीं है तो क्या वे किसी अन्य सिंधी को टिकट देने की पैरवी करेंगे या रुचि ही नहीं लेंगे।