अजमेर में कांटे का मुकाबला

अजमेर संसदीय क्षेत्र में पिछली बार चार लाख से अधिक वोटों से जीतने के कारण इस बार भी भाजपा के भागीरथ चौधरी को बेहतर स्थिति में माना जाता है। वह स्वाभाविक भी है। समझ में आता है कि कांग्रेस के लिए चार लाख वोटों के अंतर को पाटना बहुत मुश्किल है। बावजूद इसके बारीक समीक्षा करने वालों का मानना है कि आसन्न चुनाव पिछली बार की तरह एक तरफा नहीं है। मुकाबला कांटे का भी हो सकता है। वजह यह कि कांग्रेस उम्मीदवार रामचंद्र चौधरी पिछली बार तुलना में अनुकूल हालात में चुनाव लड रहे हैं। संयोग से भाजपा उम्मीदवार रिपीट किए गए हैं, इस कारण समीक्षा करना कुछ आसान है। रामचंद्र चौधरी के लिए अनुकूलता का बडा कारण यह माना जाता है कि जिले के सभी कांग्रेसी नेता एक जुट हैं। पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती व वाजिद चीता कांग्रेस में लौट चुके हैं। जाट जाति से होने के कारण जाट वोट बैंक में सेंध लगाने में सक्षम हैं। इसके अतिरिक्त विशेष रूप से किशनगढ के कांग्रेस विधायक डॉ विकास चौधरी की पकड भी उनके काम आएगी। दूसरी ओर पूर्व निर्दलीय विधायक सुरेश टाक, जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाडा व युवा नेता भंवर सिंह पलाडा की भाजपा में वापसी का लाभ भागीरथ चौधरी को मिलेगा। जहां तक संगठनात्मक ढांचे का सवाल है, भाजपा निश्चित तौर पर मजबूत है, जबकि कांग्रेस निवर्तमान कार्यकारिणियों के भरोसे है। जैसे पिछली बार जाट वोट बैंक व मोदी लहर के दम पर भागीरथ चौधरी ने शानदार जीत हासिल की थी, इस बार भी उसी फैक्टर के काम करने की उम्मीद में हैं। उनके पास उपलब्धियां गिनाने के नाम पर कुछ खास नहीं है। इस बार फर्क इतना है कि कांग्रेस ने भी जाट उम्मीदवार मैदान में उतारा है और मोदी लहर की प्रचंडता पहले जैसी नजर नहीं आती। अंडर करंट का आकलन करना तनिक कठिन है।
एक तथ्य ये है कि पैंतीस साल से अजमेर डेयरी का सदर होने के कारण रामचंद्र चौधरी की पूरे क्षेत्र की गांव ढाणी तक गहरी पकड है। जाट ही नहीं, दूध का व्यवसाय करने वाली जातियों का भी समर्थन हासिल करने में सक्षम हैं। कुशल रणनीतिकार आरटीडीसी के पूर्व चेयरमैन धर्मेन्द्र सिंह राठौड उनके सारथी बने हुए हैं। पूर्व सांसद व दिग्गज नेता डॉ रघु शर्मा भी खुल कर साथ दे रहे हैं। गणितीय आंकडे भी उनके अनुकूल हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा के भागीरथ चौधरी ने कांग्रेस के रिजू झुंझुनवाला को चार लाख से अधिक वोटों से हराया था, मगर अब मोदी लहर शिथिल पड चुकी है। यही वजह है कि मात्र चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस को मिले वोटों का अंतर घट कर तकरीबन 94 हजार रह गया। कहने को जरूर आठ में से सात विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विधायक हैं, मगर मतांतर में भारी कमी रामचंद्र चौधरी के लिए अनुकूल है। साधन संपन्नता की भी कोई कमी नहीं है। सब जानते हैं कि रामचंद्र चौधरी भीड जुटाने में सिद्धहस्त हैं, मगर वह वोट में कितना तब्दील होगी, इसका आकलन कठिन हो सकता है। इस बार भाजपा उम्मीदवार भागीरथ चौधरी को दो बार विधायक रहने और एक बार सांसद होने की एंटी इन्कंबेंसी का सामना कर पड सकता है, जबकि रामचंद्र चौधरी फ्रेश हैं, उनके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं। मोटे तौर पर भले ही भागीरथ चौधरी को अपर हैंड माना जाए, मगर हाल ही विधानसभा चुनाव में किशनगढ में तीसरे स्थान पर रहने के कारण उनके मनोबल में कमी आंकी जा रही है। मतदान होने में कुछ दिन बाकी हैं, तब तक समीकरणों में क्या बदलाव होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।

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