अधिसंख्य रिटायर्ड पत्रकार कर रहे हैं ब्लॉगिंग
पिछले कुछ समय से अजमेर में पत्रकारिता का नया दौर चल रहा है। वे सभी पत्रकार जो, अखबारों में नौकरी किया करते थे, अब रिटायर होने के बाद घर नहीं बैठ गए, बल्कि पत्रकारिता की मषाल को जिंदा रखे हुए हैं। इस नए दौर की सबसे खास और सुखद बात यह है कि अब पत्रकारिता वह पहलु उभर कर आने लगा है, जो अखबारों की मर्यादाओं में दबा हुआ था। वह सब कुछ उजागर होने लगा है, जो अनकहा रह जाता था। कानाफूसियां भी मुखर होने लगी हैं। कभी कभी अफवाहों की अबाबीलें भी पंख फडफडाती हैं। हां, अच्छी बात यह है कि अखबारों में काम करते वक्त दबी-छुपी हुई प्रतिभाओं को प्रस्फुटित होने का मौका मिल रहा है। मजेदार बात यह है कि पहली बार भाशा षैली ने नई अंगडाई ली है। नए नए प्रयोग हो रहे हैं। नए आयाम विस्तीर्ण हो रहे हैं। पहले वे अखबारों में जो कुछ लिखा करते थे, उस पर प्रतिक्रिया करने का कोई मंच नहीं था। अब फ्री स्टाइल में स्वव्छंदता की कलम कुछ बहक जाए तो सोषल मीडिया में उसकी प्रतिध्वनि भी सुनाई देती है। दूसरा ही नहीं, तीसरा, चौथा पहलु भी मुंह उघाडता है। सब कुछ पारदर्षी हो गया है। बहस कभी पटरी से उतर कर भाशा की गरिमा खोने लगती है, मगर संतोशजनक बात यह है कि इस बहाने पाठक-दर्षक के सामने सब कुछ परोसा जाने लगा है, अब वही तय करे कि सही क्या है और गलत क्या है। हालांकि ताजिंदगी पक्की पत्रकारिता करने वाले ब्लॉगरों की भाशा अब भी कसी हुई है, मगर व्यंग्य, तंज, त्वरित टिप्पणी, मन्तव्य, समाचार आदि गड्ड मड्ड होने से स्तरीय पत्रकारिता एक पायदान नीचे आ गई है। वजह यह कि संपादक का बेरियर समाप्त हो गया है। बिना कांट छांट के हुबहु प्रकाषित हो रहा है।
एक बात और, मन मसोस कर रह जाने वाले बुद्धिजीवियों को भी सोषल मीडिया प्लेटफार्म पर खुल कर भडास निकालने का मजा आ रहा है। वे भी ब्लॉगरों को टक्कर देने लगे हैं। अफसोसनाक बात यह है कि वे भी अपने आप को पत्रकारों के समकक्ष जता रहे हैं।