-एक बार घर छोड़कर जाने और घर फूंक कर तमाशा देखने वालों को फिर से घर में क्यों बुलाया जाए?
क्या गारंटी है कि जिन लोगों ने पहले अपने घर को जलते हुए देखा, वे अब उसी घर को संवार लेंगे
-विधानसभा और लोकसभा चुनावों में ऐसे नेताओं का रवैया देख लिया, अब क्या देखना बाकी रह गया
प्रेम आनंदकर👉विधानसभा चुनाव में अपने-अपने घर फूंक कर तमाशा देखने वाले भाजपाइयों और कांग्रेसियों की भले ही घर वापसी हो गई हो या अब और हो जाए, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब उन्हें वापस अपने घर में ही आना था, तो फिर उन्होंने अपना ही घर फूंक कर तमाशा क्यों देखा। नवंबर-दिसंबर, 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में अनेक भाजपाइयों और कांग्रेसियों ने अपनी-अपनी पार्टियों के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ ताल ठोकी थी और जीत के सपने देखे थे। लेकिन उन्हें हासिल कुछ भी नहीं हुआ। जिन नेताओं ने अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थामा, उनमें से कुछ जीत गए और कुछ जीत का जश्न मनाने को लेकर मनमसोस कर रह गए। अब अपने ही पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती और वाजिद चीता को देख लीजिए। डॉ. बाहेती तो एक बार पुष्कर से विधायक रह चुके हैं, जबकि उन्हें कांग्रेस ने अजमेर उत्तर से दो बार अपना प्रत्याशी बनाया था, किंतु दोनों ही बार उनके गले ’’हार’’ पड़ी। इस बार उन्होंने वापस पुष्कर से दावेदारी की थी, लेकिन कांग्रेस ने पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री व पुष्कर की पूर्व विधायक नसीम अख्तर इंसाफ को लगातार तीसरी बार मैदान में उतारा। नसीम दूसरी बार पुष्कर में भाजपा के सुरेश सिंह रावत से पराजित हुई हैं। रावत अब राजस्थान के जल संसाधन मंत्री हैं। डॉ. बाहेती को लगा था कि वे इस बार पुष्कर से चुनाव जीत जाएंगे, लेकिन वे अपने पीछे चलने वाली भीड़ को जीत का आधार मानकर मुगालते में रहे। नतीजतन, ना वे खुद जीते और ना ही कांग्रेस की श्रीमती अख्तर जीत पाईं। पार्टी से बगावत करने के कारण कांग्रेस ने डॉ. बाहेती को निष्कासित कर दिया था। लेकिन महज तीन महीने बाद ही आए लोकसभा चुनाव को देखते हुए उन्हें फिर से कांग्रेस में शामिल कर लिया गया। यही स्थिति मसूदा से बतौर निर्दलीय ताल ठोकने वाले कांग्रेस के युवा नेता वाजिद चीता के साथ हुआ और उन्हें भी फिर से पार्टी में ले लिया गया। अजमेर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी के मुख्य चुनाव कार्यालय के उद्घाटन मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्रीमती अख्तर ने तो कटाक्ष भी कर दिया था कि जिन लोगों ने कांग्रेस को हराया है, उनसे सभी कार्यकर्ताओं को सावधान रहने की जरूरत है। उनका सीधा इशारा डॉ. बाहेती की तरफ ही था, जो श्रीमती अख्तर के भाषण देते वक्त ठीक उनके पीछे बैठे हुए थे। उधर, किशनगढ़ के पूर्व विधायक सुरेश टांक भाजपा में शामिल होने के बाद मौजूदा सांसद भागीरथ चौधरी को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध कर रहे थे, लेकिन अजमेर उत्तर के विधायक व राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की मध्यस्थता में हुई बातचीत में टांक और भागीरथ चौधरी के बीच राजीनामा हो गया था और अब वे भागीरथ के लिए जुट गए थे। आप खुद अंतर देखिए, जहां कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की बाट लगाने वालों को गर्मजोशी के साथ फिर से अपने पाले में बुलाया, वहीं भाजपा ने अजमेर में विधानसभा चुनाव में बगावत करने वाले अपने एक भी सदस्य को फिर से अभी तक पार्टी में शामिल नहीं किया। इनमें देवनानी के सामने निर्दलीय ताल ठोकने वाले मौजूदा पार्षद ज्ञान चंद सारस्वत भी शामिल हैं। यही नहीं, जिन भाजपाइयों को सारस्वत का खुले रूप से साथ देने के कारण भाजपा से बाहर किया गया था, उन्हें भी अभी तक वापस नहीं लिया गया है और ना ही निकट भविष्य में भाजपा में शामिल किए जाने की संभावना नजर आ रही है। जबकि यह लोग अब फिर से भाजपा में आने के लिए छटपटा रहे हैं। और तो और, अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल की नाराजगी के बाद शहर भाजपा के उपाध्यक्ष घीसूलाल गढ़वाल को लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले सस्पेंड कर दिया गया। श्रीमती भदेल की शिकायत थी कि गढ़वाल ने विधानसभा चुनाव में भीतरघात की थी। भाजपा भी चाहती, तो लोकसभा चुनाव को देखते हुए इन लोगों को फिर से गले लगा सकती थी, लेकिन कांग्रेस की तरह ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया। अब एक सवाल यह उठता है कि एक बार घर छोड़कर जाने और घर फूंक कर तमाशा देखने वालों को फिर से घर में क्यों बुलाया जाए। पहले कांग्रेस से बगावत कर उसकी बाट लगाने वाले जब लोकसभा चुनाव के वक्त फिर से कांग्रेस में शामिल कर लिए गए थे, तो यह पता करना भी जरूरी है कि उन्होंने दोबारा लौटकर कौनसा निहाल किया। जिस उत्तर विधानसभा क्षेत्र में डॉ. बाहेती रहते हैं और दो बार चुनाव लड़ चुके थे, उसी क्षेत्र से कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में बुरी तरह मात खाई है। जबकि उत्तर से मौजूदा भाजपा विधायक व विधानसभा अध्यक्ष देवनानी के प्रयासों से भाजपा को अच्छी-खासी लीड मिली है। अब भी क्या गारंटी है कि कांग्रेस के जिन लोगों ने पहले अपने घर को जलते हुए देखा, वे अब उसी घर में आकर घरवालों की बहबूदी या तरक्की के लिए काम करेंगे या घर को संवार लेंगे। लेकिन कहते हैं ना, यह राजनीति है ही ऐसी, इसमें सब-कुछ संभव है।
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