वैश्वीकरण और प्रौद्योगिकी की आंधी में जब राष्ट्रीय सीमा टूट रही हो, मूल्य अप्रांसंगिक बनते जा रहे हो और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है।
अविश्वास अनास्था और मूल्य निरपेक्षता के इस संकट काल में पत्रकारिता से क्या अपेक्षा है और क्या उन उम्मीदों को पूरा करने का सामथ्र्य हिंदी पत्रकारिता में है? ऐसे ही अनेक प्रश्नों के उत्तर खोजने के प्रयास में एक नाम उभर कर आता है – सुनील शर्मा ‘‘शिवानन्द’’।
श्री शर्मा अजमेर के जाने-माने पत्रकार रहे है। पिछले 50 वर्षों से अनवरत अपनी लेखनी के प्रति समर्पित रहे हैं। गांधी एक्सप्रेस ‘‘साप्ताहिक’’ पत्र के माध्यम से अपनी पत्रकारिता की यात्रा प्रारंभ की जो जीवन के अंतिम क्षणों तक अण्क्षुण रही। इस बीच दैनिक रोजमेल, दलित पुकार, आधुनिक राजस्थान, न्याय, मरू प्रहार, भास्कर में समाचार संपादक का निर्वहन करते हुए अनेक पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक लेख प्रकाशित होते रहे हैं। फिल्म पटकथा, अंक ज्योतिष, पंचांग निर्माण में भी सिद्धहस्त थे। उनके समीक्षात्मक आॅडियो-वीडियो भी बाजार में आते रहे हैं। अंतिम समय में भी पत्रकारिता में रहते हुए राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पाठक वर्ग को रूबरू कराते रहे हैं। उनकी रुचि-अभिरुचि की कोई सीमा नहीं थी यानि यूं कहा जाए कि वे अपने आप में एक संस्थान थे।
सफलताओं की सीढ़ियों पर वे निरंतर चढ़ते रहे। निष्पक्षता, ईमानदारी, साहस, धैर्य, सावधानी, बुद्धिमत्ता, विद्धता, भरोसा, जिज्ञासु, निरीक्षक, समीक्षक, कल्पना शक्ति, आलोचक दृष्टि, मुस्तैदी, प्रसन्नता, आशावादिता, विनोदीवृति, आदि गुणो से लबरेज थे। इतना ही नहीं सामाजिक दर्द भी उनके जहन में सदैव झलकता था। हमेशा तथ्यों को शुद्धता के साथ पेश करना उनकी आदत का हिस्सा था। समयबद्धता, परिणामगर्भिता, अनोखापन आदि विशेषताओं के चलते उनकी अपनी अलग ही पहचान थी।
श्री शर्मा ने पत्रकारिता में कई नए प्रयोग किये साथ ही सम्पादकीय विभाग के अलावा नई तकनीक की गहरी समझ सहित मार्केटिंग विभाग पर भी खासी पकड़ थी। स्पष्ट है कि पत्रकारिता में बुद्धि – कौशल, विवेक चिंतन, आचार – व्यवहार तथा संस्कृति का संगम है, यह उन्होंने हमेशा हमें समझाया और रूबरू कराया। खास बात रही कि पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय होते हुए भी इसे व्यवसाय नहीं बल्कि अपनी रुचि का हिस्सा बनाया।
आज श्रद्धेय सुनील शर्मा जी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका विराट व्यक्तित्व समन्वय सूत्र है, अनमोल स्वर है जिसकी गूंज सदैव हमारे मध्य सुनाई देती रहेगी। परिवार ने भले उन्हें ‘‘सुनील’’ का संबोधन दिया परंतु वे ‘‘शिवानन्द’’ बन जीवन पटल से ओझल हो गए।
दिनांक: 16 जून 2024
श्रद्धान्वत
गजेन्द्र बोहरा
वरिष्ठ पत्रकार