पत्रकारिता का एक दीप और बुझा

अजमेर में पत्रकारिता के कुछ पुराने दिग्गजों में शुमार रहे, लेखनी के धनी, मृदुभाषी, हँसमुख, मिलनसार श्री सुनील शर्मा “शिवानंद” जी का 14.06.24 को आकस्मिक निधन हो गया है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।
नौकरी छोड़नी होती थी तो पेन डेस्क पर छोड़ कर बिना बताए ऑफिस से उठ के चल देने के लिए मशहूर ( या बदनाम) सुनील शर्मा जी सदा पत्रकार जगत में याद किये जायेंगे। पत्रकार जमात की पुरानी व मध्यकालीन पीढ़ी में वह एक चर्चित नाम हैं। आज के न्यूज़ चैनल अथवा you tube पत्रकारिता की युवा पीढ़ी शायद उन्हें नहीं जानती हो, मगर उनमें कार्यरत वे लोग जो कभी 2 दशक पहले अखबारों में काम किया करते होंगे, वे सब सुनील शर्मा जी के नाम से जरूर वाकिफ़ होंगे। दरअसल पत्रकारिता जगत में जो लोग सिर्फ और सिर्फ लेखन, समाचार, कन्टेन्ट आदि पत्रकारिता के मूल को लेकर फील्ड पर युद्ध करते रहे और योद्धा की तरह लड़े, वे अपनी वाइट कॉलर पर्सनाल्टी नहीं बना सके और उनका फोकस्ड जर्नलिज़्म उन्हें गुमनामी में ले गया।
ऐसे मनमौजी कलम के खिलंदड़ों को कभी ऊंचे पद या बड़े मीडिया हाउस में संपादक बन कर AC चेम्बर में ऐश करने की ख्वाहिश नहीं रही। मगर इनका फकीराना अंदाज़ इन्हें सबसे जुदा तो भले करता हो, मगर पटल से गायब भी कर देता है। शायद कुछ समय पश्चात से पुराने लोग भी अब अपने जीवन मे इनका चर्चा करना बंद कर दें। ऐसे और भी कई हैं, जो कलम के जादूगर हैं, मगर वक़्त की गर्दिश में कहीं खो कर गुमनाम जीवन जी रहे हैं। मगर जब कभी भी श्रेष्ठ पत्रकारिता और खबरों की समझ पर कहीं ज़िक्र चलेगा तो लोग इन्हें गाहे बगाहे याद कर लिया करेंगे। इसी कामना के साथ सुनील जी को नमन।

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