तीन दिन हुई बरसात से शहर हुआ गंदा पानी-पानी, सड़कें बनीं दरिया

प्रेम आनंदकर
*👉वाह रे मेरे अजमेर! फौलादी हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का अजमेर। अजयपाल जी का अजमेर। ख्वाजा साहब का अजमेर। तीर्थ नगरी पुष्कर राज का अजमेर। सोनीजी की नसियां का अजमेर। अब इतना ज्यादा मोहताज क्यों हो गया रे तू। मक्कारों के आगे क्यों ढेर हो गया रे तू। क्या तेरा जमीर मर गया है? जिस पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को ’’चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान’’ के साथ शब्दभेदी बाण चलाकर एक ही तीर में ढेर कर दिया था। उसी फौलादी हिन्दू सम्राट के अजमेर की क्या किस्मत फूटी है। मक्कार अधिकारी और सुस्त जनप्रतिनिधि। शहर की अवाम भी बेफिक्र और सोई रहती है। पड़ौसी का घर जल जाए, हमारा नहीं जलना चाहिए। ना मक्कार अफसरों के खिलाफ आवाज निकलती है, ना शासन के खिलाफ। ना सड़कें ढंग की हैं, ना नाले-नालियों की सफाई ढंग से होती है। जरा-सी बारिश क्या होती है, गंदा पानी नाले-नालियों से उफन कर बाहर आ जाता है। सीवरेज के ढक्कन उखड़ कर सड़क पर तन जाते हैं। निचली बस्तियों में चारों तरफ पानी भर जाता है। घरों में गंदा पानी घुस जाता है। सड़कें गंदे पानी का दरिया बन जाती हैं। थोड़ी-सी बरसात में ही गंदे पानी की नदी ख्वाजा साहब की दरगाह के मुख्य गेट के सामने से बहने लगती है। तीन दिन की बरसात ने अजमेर की असली शक्ल-ओ-सूरत सामने लाकर कर रख दी हैl स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में करोड़ों-अरबों रूपए खर्च होने के बाद भी अजमेर की सूरत नहीं बदली है, कहीं से भी स्मार्ट नजर नहीं आता है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर केवल अफसरों के चैम्बर स्मार्ट हुए हैंl बिना सोचे-समझे विकास कार्य कराए गए हैं। खामखा के सात ताबूत खड़े कर दिए गए हैं। मक्कार अफसरों ने स्मार्ट सिटी के धन से केवल अपनी जेबें भरने का काम किया है। आनासागर की दुर्दशा तो हम रोज देखते ही हैं। जलकुंभी साफ करने के लिए सवा छह करोड़ रूपए खर्च डाले, फिर भी गंदे नालों का आनासागर में गिरना बंद नहीं हुआ है। सोचो, नगर निगम और अन्य सभी संबंधित विभागों के अफसरों ने अपनी जेबें किस कदर भरी होंगी। सीवरेज का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। जहां-जहां सीवरेज लाइनें डाली गई हैं, वह बेतरतीब हैं। सड़कें खुदी पड़ी हुई हैं। सीवरेज का गंदा पानी अनेक स्थानों पर आए दिन सड़कों पर बहता हुआ दिखाई देता है। जगह-जगह ढक्कन उखड़े हुए हैं। तीन दिन हुई बरसात से शहर की अनेक सड़कें पानी से लबालब भर गईं। सड़कें बनाई जाती हैं, तो चंद दिनों-महीनों में उखड़ जाती हैं या कोई-ना-कोई लाइन डालने के नाम पर उखाड़ दी जाती हैं। जो सड़कें कुछ माह पहले ही बनाई गई थीं, वे बरसात में उखड़ कर दलदल में तब्दील हो गई हैंl सड़क बनाने से पहले उसके दोनों ओर पानी निकासी के लिए नालियां नहीं बनाई जाती हैं। ऐसी बानगी अनेक जगहों पर देखने को मिल जाती हैं। आखिर नगर निगम, अजमेर विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी के इंजीनियर और अफसर क्या खाते हैं, जो कुछ जरूरत से ज्यादा ही दिमाग चलाते हुए मनमर्जी से विकास कार्यों का खाका बनाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है, विकास कार्यों के नाम पर केवल घास काटी जाती है। शहर के नालों की सफाई का काम मानसून शुरू होने से पहले ही पूरा हो जाना चाहिए, जो शायद ही हुआ हो। यदि यह मान भी लिया जाए कि नालों की सफाई हुई है, तो तीन दिन की बारिश से सड़कों पर जगह-जगह बने दरिया को देखकर क्या कहा जाए। जनप्रतिनिधियों की सत्ता में भागीदारी से लबरेज अजमेर की यह दुर्दशा। अफसर बेलगाम। हाय रे, मेरे अजमेर। तू देखता रह, अभी तो मानसून शुरू ही हुआ है और असर दिखाया हैl ना जाने ऐसी कितनी पीड़ाएं भोगनी पड़ेंगी तुझे।*

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