अजमेर के पत्रकार साथियों के कृतिव एवं व्यक्तित्व के बारे एक सीरीज लिखी तो मेरे पत्रकार साथी श्री अमित टंडन ने आग्रह किया कि अपने बारे में भी तो कुछ लिखिए। भला मैं अपने बारे में कैसे लिख सकता था? इस पर उन्होंने कहा कि वे यह जिम्मेदारी निभाना चाहते हैं। उनके आग्रह को मैं टाल नहीं सका। उन्होंने जो कुछ लिखा, हूबहू पेश हैः-
अजमेर में पत्रकारिता के स्वर्णिम युग का आकलन यूं तो पुराने पत्रकार उस दौर के फ़्लैश बैक में जाकर करते हैं, जब बड़े अखबार के नाम पर दैनिक नवज्योति एक मात्र अखबार था, जो अजमेर से प्रकाशित होकर पूरे राज्य में वितरित होता था। मगर तब छोटे अखबारों, अर्थात राष्ट्रदूत, न्याय, रोज़मेल या आधुनिक राजस्थान जैसे मझोले (या शायद लघु) अखबार भी उतना ही दम रखते थे, जितनी ताकत राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के अखबारों की मानी जाती थी।
इस वजह से तब अजमेर में हर छोटे बड़े अखबार के पत्रकार का अपना एक कद और पहचान होती थी।
आप और हम जिस अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल पर अजमेर के पत्रकार व साहित्यकारों की सीरीज़ में जिन-जिन महानुभावों की जीवनी और कृतित्व के बारे में पढ़ रहे हैं, वो तो यकीनन अपनी छाप और पहचान के साथ एक इतिहास लिख रहे हैं। मगर, इस न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से आपको ये तमाम जानकारियां देने वाले इस पोर्टल के मुख्य संपादक श्री गिरधर तेजवानी स्वयं अजमेर की पत्रकारिता की तीसरी पीढ़ी के दिग्गज कलमकारों में से एक हैं।
तीसरी पीढ़ी के इसलिए, क्योंकि प्रथम पीढ़ी में नवज्योति के संस्थापक कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी और उनके समकालीन पत्रकार रहे, दूसरी पीढ़ी में श्री नरेन्द्र चौहान व श्याम जी आदि रहे। श्री तेजवानी की पीढी ने तीसरे नंबर पर वो मशाल सम्भाली, और उस हिसाब से मैं चौथी पीढ़ी में शुमार हो गया।
रिपोर्टिंग, संपादन लेखन आदि तो श्री तेजवानी का एक महत्वपूर्ण और अनेक उपलब्धि वाला क्षेत्र है ही, मगर श्री तेजवानी की सबसे बड़ी खासियत जो निजी तौर पर मुझे लगी, वो थी राजनीतिक टिपणियां और विश्लेषण।
6 अप्रैल, 1997 को अजमेर में दैनिक भास्कर का पदार्पण हुआ और हम सब एक-एक करके उसमें जुड़ते चले गए और वहीं मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई और साथ काम करने का अवसर मिला। आज उस बात को 28 साल हो गए।
इस 28 साला सफर में मैंने निजी तौर पर एक धीर गंभीर समाचार विश्लेषक और राजनीतिक विचारक के रूप में श्री तेजवानी के ज्ञान की कई ऊंचाइयां देखीं। कोई भी चुनाव हो, स्थानीय निकाय से लेकर विधानसभा, लोकसभा या फिर किसी भी सहकारी समिति, जिला परिषद या छात्र संघ के चुनाव में उनके कयास, उनके आकलन, उनकी विशेष टिप्पणियां आज भी नज़ीर हैं।
डेस्क पर एक प्रभारी के रूप में उनके अधीन क्योंकि मैंने काम किया, तो समाचार की कसावट, सम्पादन की बारीकियां, शब्दों का चयन और हेडलाइंस लगाने का हुनर देख कर बहुत कुछ सीखा।
आज भी वे पत्रकारिता की सेवा कर रहे हैं। आज भी पत्रकारिता को एक पेशे या महज़ काम न समझ कर एक मिशन और एक क्रांति मानते हैं और उसी जोश से लिखते हैं जैसा मैंने उन्हें 28 साल पहले देखा था।
मगर, एक बात जरूर कहना चाहूंगा, कि ईमानदार कलम अक्सर असल मुकाम पाने से पहले तोड़ दी जाती है। हालांकि इस कलम को तोडऩे के भी प्रयास हुए, मगर इस कलम की नोक इतनी तीखी और मजबूत है कि न ये टूटी औऱ न रुकी। आज भी शब्दों के बाण इस कलम से असत्य, अनाचार और अत्याचार पर वार कर रहे हैं, आज भी लेखनी जवान है। मगर अफसोस है तो इस बात का कि श्री गिरधर तेजवानी को किसी उच्च पद का जो हक़ किसी बड़े मीडिया हाउस में मिलना चाहिए था, वो न मिला। शायद पेशेवर पत्रकारिता के दौर में जवान हुई श्री तेजवानी की कलम की कद्र बड़े अखबारों ने नहीं जानी। खरी खरी और सच कह देने की उनकी आदत और मेरी आदत एक सी है।
मुझे याद आता है हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार व आला गज़लगो भ्राता श्री सुरेंद्र चतुर्वेदी ने एक बार मुझसे ये कहा था- अमित तुम और तेजवानी कड़वे लोग हो। अर्थात तुम लोग सच को सच कह कर खरी खरी सुना देते हो और अपने सेठ, बॉस या कंपनी को कहीं न कहीं नाराज़ कर देते हो, और आज के ज़माने में सच्चाई को तरक्की नहीं मिलती। श्री चतुर्वेदी हमारी इस साफगोई से खुश भी थे और गर्वित भी, मगर हमारी तरक्की के अवरोधों से दुखी भी थे।
मगर, एक शेर याद आता है जो तेजवानी जी पर एकदम सटीक है-
मेरी फितरत में जीहुज़ूर ना था
वरना साहब मेरा कुछ कसूर ना था