*रमेश टेहलानी ब्लॉग*
अजय और उसकी पत्नी काव्या ने अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण की नीलामी में एक प्लॉट खरीदा। बाजार भाव से अधिक कीमत पर प्लॉट खरीदते समय उन्हें उम्मीद थी कि यह निवेश उनके सपनों का घर बनाने में मदद करेगा। प्राधिकरण ने वादा किया था कि क्षेत्र का विकास जल्द ही पूरा होगा—सड़कें, बिजली, पानी, और अन्य बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध होंगी।
लेकिन 15 साल बीत गए, और प्लॉट वैसा ही पड़ा रहा—खाली और बंजर। न सड़क बनी, न पानी का इंतजाम हुआ। अजय ने प्राधिकरण के चक्कर लगाए, लेकिन हर बार उसे केवल आश्वासन ही मिला। इस बीच, उनके बच्चों की पढ़ाई और परिवार की जरूरतें बढ़ती गईं। किराये के घर में रहते हुए अजय और काव्या का सपना धुंधला होने लगा।
आखिरकार, अजय ने सोचा कि अब इस प्लॉट को बेचकर किसी और स्थान पर घर खरीद लिया जाए। लेकिन जब उसने इस प्लॉट को बेचने का प्रयास किया, तो एक नई समस्या सामने आई। प्राधिकरण की “अवधि विस्तार” नीति के कारण वह प्लॉट बेचने के लिए पात्र ही नहीं था।
अजय ने हताश होकर कहा, “हमने अपनी मेहनत की कमाई से यह प्लॉट खरीदा था, लेकिन अब न तो इसे बेच सकते हैं, न ही यहाँ घर बना सकते हैं। यह जमीन हमारे लिए केवल बोझ बनकर रह गई है।”
काव्या ने चुपचाप उसका हाथ थामा और कहा, “शायद हमें यह सपना भूलकर आगे बढ़ना होगा।” लेकिन अजय के मन में सवाल गूंजता रहा—क्या उनका सपना और उनकी मेहनत की कमाई का यही अंजाम होना था?
यह कहानी सिर्फ अजय की नहीं, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की है, जो अजमेर विकास प्राधिकरण पर भरोसा करके अपना भविष्य सुरक्षित करना चाहते थे। लेकिन पूर्व विकास के अभाव और नीतियों की जटिलता ने उनके सपनों को अधूरा छोड़ दिया।
*अजय का संदेश : निवेश के लिए एडीए से नीलामी में भूखंड नही लेना चाहिए और रहने के लिए पूर्व विकसित और पूर्व अनुमोदित योजना में ही भूखंड खरीदना चाहिए।*