आज जब विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी के निर्देश पर खादिम टूरिस्ट बैंग्लो का नाम अजयमेरू के नाम पर कर दिया गया है, फॉय सागर का नाम वरूण सागर किया जा रहा है, किंग एडवर्ड मेमोरियल का नाम ऋषि दयानंद के नाम पर करने की कवायद हो रही है तो ख्याल आता है, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी कई स्थानों के नाम बदले हैं।
आज जिसे हम तारागढ के रूप में जानते हैं, प्रारंभ में उसका नाम अजयमेरू दुर्ग था। सन् 1505 में मेवाड़ के राजकुमार पृथ्वीराज ने इस पर अधिकार किया तथा अपनी रानी ताराबाई के नाम से दुर्ग का नाम तारागढ़ रख दिया।
कुछ और उदाहरण लीजिए-
अजमेर के प्रबुद्ध नागरिक ऐतेजाद अहमद खान ने कुछ साल पहले फेसबुक पर एक फोटो शाया की थी, जो कि यह प्रमाणित करती है कि हम जिसे केसरगंज (Kesar) इलाके के नाम से जानते हैं, वह असल में (Qaiser) गंज है, जिसकी स्थापना 1883 में हुई थी। इसका अपभ्रंश होते हुए वह केसरगंज हो गया और ये ही आजकल प्रयोग में आ रहा है।
शहर के अन्य कई स्थान भी पहले किसी और नाम से थे, जो कि बाद में बदल गए। इनकी बानगी देखिए- जिसे हम आज रामगंज कहते हैं, वह कभी रसूल गंज हुआ करता था। इसका प्रमाण ये है कि पुलिस चौकी वाली गली में उसकी नामपट्टिका लगी हुई है। इसी प्रकार आज जिस पर्यटन स्थल को हम ढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं, वह कभी सरस्वती कंठाभरण संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। इसी प्रकार अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित अकबर के किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। बाद में इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाने लगा। अब नाम राजकीय संग्रहालय कर दिया गया है।
यह सब जानते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहा करते थे, उसे क्रिश्चियनगंज कहा जाता है, मगर आज कई लोग उसे कृष्णगंज के नाम से पुकारना पसंद करते हैं और कुछ संस्थाओं के नाम इसी नाम पर हैं। हालांकि क्षेत्र के पुलिस थाने का नाम क्रिश्चियनगंज गंज थाना है। इसी प्रकार अंदरकोट को आज कई लोग इंद्रकोट कहना पसंद करते हैं, जब कि इसका अर्थ था परकोटे के अंदर का हिस्सा। इसी प्रकार आपको ख्याल होगा कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को आज भी कई पुराने लोग विक्टोरिया अस्पताल के नाम से जानते हैं, जिसका नाम आजादी के बाद नेहरू जी के नाम से कर दिया गया। इसी प्रकार इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की रजत जयंती के मौके पर रेलवे स्टेशन के सामने विक्टोरिया क्लॉक टावर निर्माण करवाया गया, जिसे आज हम केवल क्लॉक टावर या घंटाघर के नाम से जानते हैं और उसी के नाम पर क्लॉक टावर पुलिस थाने का नाम है। लंबे समय तक राजकीय महाविद्यालय के नाम से जाना जाने वाले ब्रिटिशकालीन कॉलेज का नाम कुछ साल पहले की सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय कर दिया गया। उसके मुख्य द्वार को भगवा रंग से रंग दिया गया है। इसी प्रकार अजमेर विश्वविद्यालय का नाम महर्षि दयानंद सरस्वती के नाम कर दिया गया। ऐसे ही जयपुर रोड पर तत्कालीन यूआईटी चेयरमेन डॉ श्रीगोपाल बाहेती ने शायद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मिजाजपुर्सी में अशोक उद्यान बनाया, जिसे बाद में भाजपा सरकार में सम्राट अशोक उद्यान कर दिया गया।
आपको ख्याल में होगा कि कुछ साल पहले अजमेर रेलवे स्टेशन को अजमेर शरीफ किया जा रहा था, मगर विरोध के चलते उसे रोक दिया गया।
वस्तुतः कालचक्र में जब भी जो प्रभावशाली हुआ, उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नाम बदल दिए। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें उद्वेलित होने जैसी कोई बात नहीं है।