नेताओं को अफसरों पर गुस्सा क्यों आता है?

राजनीति व अफसरषाही के बीच बिगडी केमेस्टी की वजह से षासन-प्रषासन की पेषानी पर चिंता की रेखाएं उभर आई हैं। ताजा कुछ घटनाओं ने इस बहस को जन्म दिया है कि अफसरषाही से त्रस्त नेता क्यों मर्यादा लांघने को आमादा हैं? पहले विधायक श्रीमती अनिता भदेल का आक्रोश सामने आया तो फिर विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याषी नरेष मीणा ने एक अफसर को थप्पड ही जड दिया। जाहिर तौर पर नेताओं के इस रवैये की कडी मजम्मत हुई। होना स्वाभाविक भी है। नेताओं का आक्रोश जायज हो सकता है, मगर उसकी अभिव्यक्ति जिस रूप में फूट रही है, वह सिस्टम पर सवाल खडे कर रही है। इसी कडी में हाल ही अजमेर में गांधी भवन पर कांग्रेस पार्शदों के धरने के दौरान कांग्रेस के बिंदास नेता कैलाष झालीवाल बयान चर्चा में आ गया है। वे यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि जो नरेष मीणा ने किया, वह हाल करेंगे। बेषक, नेताओं के जहरीले षब्द बाणों की आलोचना होनी ही है, हो भी रही है, मगर असल मुद्दा यह है सरकार को चलाने वाले दो अहम पहियों नेता व अफसरों के बीच तालमेल क्यों बिगड रहा है? प्रषासन के षीर्श तंत्र के लिए यह चिंता का विशय है। तंत्र यदि ठीक से काम करे तो नेता को इस तरह बिफरने का मौका ही नहीं मिले। इस मामले में मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को जल्द विचार करना होगा कि इस तरह का टकराव कैसे रोका जाए। अगर लापरवाही बरती गई तो न केवल हम अराजकता की ओर बढ जाएंगे, अपितु विकास भी बाधित होगा। विकास के लिए नेता व अफसरों के बीच बेहतर तालमेल, बेहतर सामंजस्य जरूरी है। बेहतर यह रहेगा कि ऐसी घटनाओं पर कानूनी कार्यवाही मात्र करने की बजाय उनकी पुनरावृत्ति न होने को सुनिष्चित किया जाए। उन कारणों को भी तलाषा जाए, साथ ही उनका निराकरण भी हो, जिनकी वजह से नेता बेकाबू हो जाते हैं।

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