बादशाह अकबर के बेटे का नाम खादिम के नाम पर था

सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के जाने-माने खादिम हजरत सैयद अब्दुल गनी गुर्देजी ने जानकारी दी है कि मुगल बादशाह अकबर ने अपने एक बेटे का नाम अपने खादिम दानियाल गुर्देजी के नाम पर रखा था। उन्होंने बताया कि इस जिक्र बीबीसी की एक न्यूज में भी आया है।
उन्होंने बताया कि अकबर बादशाह को 28 साल की उम्र तक जब कोई औलाद न हुई तो अपने पीर शेख सलीम चिश्ती र. अ. के हुक्म के मुताबिक हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती र. अ. के मजार पर आगरा से अजमेर पैदल चल कर हाजिर हुए। उस वक्त मेरे पूर्वज सैयद दानियाल गुर्देजी ने अकबर बादशाह को जियारत करा कर औलाद होने की दुआ की। ख्वाजा गरीब नवाज र.अ. की दुआ से अकबर बादशाह को पहला बेटा हुआ। जहांगीर बादशाह ने अपनी किताब तुके जहांगीरी पेज नं. 18, 38, 56, 154 में लिखा है कि मेरे वालिद बुजुर्गवार के यहां एक और शहजादा पैदा हुआ। चूंकि इसकी पैदाइश ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती र. अ. के रौजा-ए-मुबारक के एक मुजावर (खादिम) शेख दान्याल गुर्देजी के घर अजमेर शरीफ में हुई थी, इसलिए इस मुनासेबत से शहजादे का नाम दानियाल रखा।
उसी वक्त मेरे पूर्वज को रहने के लिए एक महल बना कर दिया, जो आज भी दरगाह के छतरी गेट पर मौजूद है। इसी वजह से हम लोगों को हमारी खुद्दाम हजरात की बिरादरी में महल शाही खानदान के नाम से जाना जाता है। हमारे महल शाही खानदान के बुजुर्ग 50 साल तक खुद्दाम कौम की अंजुमन के सदर रहे हैं। हमारे महल शाही खानदान के बुजुर्ग 50 साल तक दरगाह के मुतवल्ली भी रहें हैं। मेरा ननिहाल मौला मियां खानदान के मेरे नाना मामू 50 साल तक इस खुद्दाम कौम की अन्जुमन के सैक्रेट्री रहे। हमारे महल शाही खानदान के दो बुजुर्गों को अंग्रेजों ने खान बहादुर और खान साहब का खिताब दिया था।
उन्होंने बताया कि 1949 में भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू दरगाह शरीफ आए तो उनके दादा हजरत सैयद मोहम्मद हसन चिश्ती ने जियारत करवाई और उनकी दस्तारबंदी की। उनका परिवार गांधी परिवार, सिंधिया परिवार, गहलोत परिवार व पायलट परिवार का पारिवारिक खादिम रहा है।

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