हिंदुस्तान के विभाजन होने के दौरान अपनी सभ्यता व संस्कृति की रक्षा के लिए जमीन-जायदाद सब कुछ का त्याग कर सिंध प्रांत से अजमेर आए परिवारों ने अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने आपको स्थापित किया। इन परिवारों की कई शख्सियतों ने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से सिंधी समाज का नाम रोशन किया। श्रीमती कमला चंद्र गाकलानी उन में शुमार हैं, जिन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से देश-विदेश में सिंधी साहित्य जगत में परचम फहराया है। वे युवा साहित्यकारों की प्रेरणा स्रोत हैं।
उनका जन्म 16 जून 1950 को अजमेर में हुआ। उन्होंने एमए-एमएड तक शिक्षा अर्जित की। बाद में राजकीय महाविद्यालय से जून 2010 में पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया। मात्र 18 वर्ष की आयु से अध्यापिका का जीवन आरंभ किया और राजकीय महाविद्यालय में सिंधी विभाग के हैड ऑफ दि डिपार्टमेंट के रूप में 2010 सेवानिवृत्त हुईं। वे मुंबई यूनिवर्सिटी से 1994 में पीएचडी करके भारत की प्रथम सिन्धी लिटिरेचर महिला कहलायीं। सिंधी भाषा के विकास व विस्तार में उनका योगदान हमेशा याद किया जाता रहेगा। उनकी अब तक पचास से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी मूल पुस्तकों का तेलुगू, उर्दू, पंजाबी और हिन्दी में भी अनुवाद हो चुका है। उनके लेख, कहानियां, कविताएं समाचार पत्रों व पत्रिकाओं और साहित्य की पुस्तकों में प्रकाशित होती रहती हैं। भाषा पर अच्छी पकड़ के साथ सुमधुर वाणी से संपन्न श्रीमती गोकलानी अनेकानेक बड़े आयोजनों में मंच संचालन की भूमिका निभाती रही हैं। टीवी व आकाशवाणी में अनेक कार्यक्रम दे चुकी हैं। आपको अनेक बार भारत सरकार द्वारा साहित्य पर पुरस्कार दिए गए हैं, जिनमें एनसीपीएसएल की ओर से दो बार दिए गए राष्ट्रीय अलंकरण शामिल हैं। उनको एनसीपीएसएल की फाउण्डर मेम्बर होने का भी गौरव हासिल है। उनको राष्ट्रीय स्तर का अखिल भारतीय सिंधी बोली अई साहित्य सभा का उच्च पुरस्कार दिया गया है। वे राजस्थान सिंधी अकादमी की पांच बार सदस्य रही हैं। उनको राज्य स्तर पर अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें प्रतिष्ठित सामी पुरस्कार शामिल है।