मैं अजमेरीलाल हूं

यूं तो अजमेर में रहने वाला हर आदमी अजमेरीलाल है। अजमेर का लाल है, मगर असल में अजमेरीलाल एक व्यक्तित्व है। एक करेक्टर है। एक चरित्र है। अनूठा, विलक्षण। मेरे जैसा अजमेर के अलावा दुनिया में कहीं नहीं। मैं समझदार भी हूं, झक्की भी हूं। सहनशीलता की पराकाश्ठा में जीता हूं। प्रषासनिक असफलताओं को सहन करने की आदत सी पड गई है। षांतिप्रिय हूं। फालतू का पंगा नहीं करता। पंगे में पडता ही नहीं। जाहि विधि राखिए, ताहि विधि रहिये महामंत्र को मानता हूं। पानी पांच पांच दिन में मिले तो भी चुप रहता हूं। स्मार्ट सिटी बनाने की घोशणा होने पर ताली बजाता हूं, खुष होता हूं, मगर लूट मचे तो आंख मूंद लेता हूं। अपने हक को जानता हूं, मगर उसे छीन कर नहीं, बल्कि औपचारिक मांग कर इतिश्री करने की प्रवृत्ति है। यही मेरी तकलीफ का असल कारण है। परेषानी का सबब। समझता सब हूं, मगर थका हुआ हूं। तभी तो अजमेर को टायर्ड व रिटायर्ड लोगों का षहर कहा जाता है। गनीमत है कि मुझे अन्याय होता दिखाई तो देता है, मगर उसके खिलाफ मुट्ठी तक नहीं तानता। तनिक डरपोक भी हूं। अफसरों और नेताओं को मस्का लगाने में माहिर। जैसे ही किसी थाने में कोई नया सीआई तैनात होता है, या उसका जन्मदिन होता है तो पहुंच जाता हूं माल्यार्पण करने। फिर उसे फेसबुक पर साझा करता हूं। छपास भी हूं। मुझे पता है कि किस जगह पर खडे होने पर अखबार में फोटो छपेगी। बेषक बुद्धिजीवी हूं, बुद्धु नहीं, मुखर दिखता हूं, मगर हूं दब्बू। सच जानता हूं, समझता हूं, मगर स्वार्थ की खातिर झूठी तारीफ में भी पीछे नहीं रहता। सक्षम हूं, कुछ कर सकता हूं, मगर कोई टास्क सामने आ जाए तो पडोसी की ओर ताकता हूं। ऐसी अनुर्वरा जमीन पर कभी कभी वीर कुमार पैदा होता है, मगर उसे देख कर भी मेरे खून में रवानी नहीं आती।
कभी भोला नजर आता हूं तो कभी चतुर। षाबाषी दीजिए कि चंट-चालाक-कुटिल नहीं हूं। सज्जन हूं। सदाषयी हूं। दयालु हूं। सहृदय हूं। मदद को तत्पर। कोराना काल में यह साबित कर चुका हूं। कुल जमा बहुत प्यारा हूं। मुझे अपने आप से बहुत प्यार है। जरा गौर करेंगे तो मेरे जैसे अजमेरी लालों के चेहरे आपकी दिमागदानी में घूमने लग जाएंगे। काष मुझे चंबल का पानी पीने को मिल जाए।

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