मरहूम सूफी संत भी करते हैं दरगाह जियारत?

दोस्तो, नमस्कार। तकरीबन बीस पहले की बात है। एक सज्जन उर्स के दौरान यूपी से अजमेर में दरगाह जियारत को आए थे। वे यहां कुछ माह ठहरे। मेरी उनसे कई बार मुलाकात हुई। षहर जिला कांग्रेस के प्रवक्ता मुजफ्फर भारती और मरहूम जनाब जुल्फिकार चिष्ती के साथ। वे विद्वान थे। कई विधाओं के जानकार। बहुत संजीदा। निहायत सज्जन। उनके चेहरे से नूर टपकता था। मुझे उनका नाम अब याद नहीं। उनसे अनेक आध्यात्मिक विशयों पर चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि उर्स के दौरान दुनिया भर के मरहूम सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत करने को आते हैं। वे यहां अकीदत के साथ हाजिरी देते हैं। जैसे मजार षरीफ के चारों ओर जायरीन का हुजूम होता है, वैसे ही मरहूम सूफी संतों का भी जमावडा होता है। जाहिर तौर पर वे अदृष्य होते हैं। आम आदमी को उन्हें देखना संभव नहीं होता। मगर आत्म ज्ञानियों को वे नजर आते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें भी उनके दर्षन होते हैं। स्वाभाविक रूप से इस रहस्यपूर्ण तथ्य को मानना वैज्ञानिक दृश्टि से ठीक नहीं है। मगर जितने यकीन के साथ उन्होंने यह जानकारी दी तो लगा कि षायद वे सही कह रहे होंगे। उन्होंने बताया कि ख्वाजा साहब को सुल्तानुल हिंद इसीलिए कहा जाता है कि वे भारत भर के सूफी संतों के सरताज हैं। उनकी अलग ही दुनिया है, जिसके वे बादषाह हैं। कदाचित आप इस पर यकीन नहीं करें। मुझे मिली जानकारी को आपसे साझा करने मात्र की मंषा है।

 

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