कभी फिल्मी पोस्टर लगा करते थे यहां

अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार जनाब मुजफ्फर अली ने फिल्मी पोस्टर्स पर एक बहुत दिलचस्प स्टोरी लिखी है। इसे सुन कर आपको बहुत अच्छा लगेगा। पेश है वह स्टोरी
कभी कभी बचपन में देखी- सुनी जगह या बातें हमेशा के लिए ज़ेहन में बैठ जाती हैं और फिर वक्त बदलने पर भी उस जगह का पुराना स्वरुप दिमाग में रहता है। ऐसी ही कुछ जगह अजमेर में बचपन से किशोर अवस्था तक आते आते देखी, वो थी अजमेर के सिनेमाघरों के फिल्मी पोस्टरों के चिपकने की जगह। अजमेर में छह सिनेमाघर हुआ करते थे और सभी सिनेमाघरों के पोस्टरों के लिए जगह तय थी कि किस जगह पर लगने वाला पोस्टर कौन से सिनेमाघर में चलने वाली फिल्म का है। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार पर कभी अजंता सिनेमा हॉल में लगी या लगने वाली फिल्मों के बड़े पोस्टर लगा करते थे। सत्तर के दशक की बात है। उन दिनों दो तरह के पोस्टर दीवारों पर लगा करते थे। एक विद्युत पोल पर लगने वाले क्यिोस्क साईज में और दूसरे बड़े चौड़े होर्डिंग साइज़ में। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार बड़ी और लंबी थी इसलिए वहां बड़े साइज के पोस्टर ही लगा करते थे। फिर देखने में आया कि फिल्मी पोस्टर के साइज में सीमेंट का प्लास्टर कर जगह मुकर्रर कर दी गई। उस प्लास्टर की मोटी परत पर पोस्टर चिपकाए जाने लगे।
बड़े साइज के पोस्टर मदार गेट पर फल बेचने वालों की दुकानों के पीछे, कबाडी बाजार की दीवार पर मृदंग सिनेमा में लगी या लगने वाली फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। पड़ाव में पुराने कपड़े बेचने वालों के पीछे की दीवार पर एक कोने में अंजता फिर मैजिस्टिक, प्रभात, श्री और दूसरे कोने में मृदंग सिनेमा के बड़े पोस्टर लाइन से लगा करते थे। फव्वारा चौराहे पर भी अंजता और प्रभात सिनेमा की फिल्मों के पोस्टर लोहे के फ्रेम बना कर उस पर चिपकाया करते थे। सोनी जी की नसियां के सामने प्रभात की ओर जाने वाले रास्ते के कोने में प्रभात सिनेमा के बड़े पोस्टर लोहे के फ्रेम में लगते थे जो आगरा गेट से आने वालों को दूर से दिख जाते थे। आगरा गेट चौराहे पर चर्च की दीवार के सहारे भी लोहे के फ्रेम सडक़ पर लगे थे, जिन पर प्रभात और अंजता के फिल्मी पोस्टर लगते थे। मदार गेट पर फूल बेचने वालों के पीछे की कस्तूरबा अस्पताल की दीवार पर सिर्फ मैजिस्टिक सिनेमा में लगी फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। उसरी गेट के बाहर की दीवार पर प्रभात और मृदंग सिनेमा के पोस्टर लगते थे। तब शहरी आबादी का अधिक विस्तार नहीं था, और फिल्मी पोस्टर शहर के अंदरूनी इलाकों में ही लगते थे।

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