बेमिसाल सहजता की प्रतिमूर्ति थे स्वर्गीय श्री रासासिंह रावत

चार साल पहले अजमेर ने एक ऐसी शख्सियत को खो दिया था, जो अपने विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण लोकप्रिय थे। वे थे भाजपा भाजपा नेता व भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय प्रो रासासिंह रावत। वे पांच बार अजमेर के लोकसभा सदस्य थे। वे सहज सुलभता और अपनी विशेष भाषण शैली और धाराप्रवाह उद्बोधन के कारण अजमेर वासियों के चहते थे। उनका जन्म सन् 1 अक्टूबर 1940 को श्री भूरसिंह रावत के घर हुआ। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. और हिंदी व संस्कृत में एम.ए. की शिक्षा अर्जित की और अध्यापन कार्य से अपनी आजीविका शुरू की। उन्हें 25 साल तक अध्यापन का अनुभव था। उल्लेखनीय सेवाओं के कारण उन्हें शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर 1989 को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य के दौरान स्काउटिंग में विषेश सेवाएं देने के कारण उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा गया। सामाजिक संगठन आर्य समाज अजमेर से उनका गहरा नाता रहा और पूर्व में इसके अध्यक्ष रहे व बाद में संरक्षक रहे। समाजसेवा से उनका कितना गहरा रिश्ता है, इसका अनुमान उनके दयानंद बाल सदन के प्रधान, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के प्रधान व राजस्थान रावत राजपूत महासभा के पूर्व प्रधान व हाल तक संरक्षक का दायित्व निभाने से हो जाता है। वे सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में विशेष रुचि रखते थे। भाजपा की नई चुनावी रणनीति के चलते उन्हें राजसमंद से लड़ाया गया, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। बाद में उन्हें अजमेर शहर भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया।
भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज के प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।
सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 10 मई 2021 को उनका देहावसान हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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