जब तारागढ के किलेदार ने जहर खाया

शिव शर्मा

सन 1756 _ 1818  तक अजमेर पर मराठों का अधिकार था। अंग्रेज इस पर अपना अधिकार चाहते थे। इसलिए बापूगढ वाली पहाङ़ी पर दो तोप चढाई गयी। फिर गोले फरसा कर दिल्ली गेट की बाईं दीवार तोङ़ी गयी। अंग्रेजी सेना ने  धान मंडी और दरगाह बाजार में प्रवेश किया। विवश मराठों ने संधि की और यह शहर  अंग्रेजों को सौंप दिया। अब सवाल था तारागढ का। वहां का किलेदार धनराज सिंघी था। उसने तारागढ अंग्रेजों को सौंपने से मना कर दिया। उसने कहा कि यह हिंदुस्तान की विरासत है इसे अंग्रेजों को नहीं दूंगा । तब सैनिकों ने तारागढ को घेर लिया।  किलेदार ने जहर खा लिया। बाद में अंग्रेजों ने यहां बहुत तोड़फोड़ की।

   मराठा काल के दौरान यहां बापूगढ बनाया गया। बादशाही बिल्डिंग का नाम मराठों की कचहरी रखा गया। पांच मंदिर बनवाये गे _ शिवबाग,शिवसागर, अर्ध चंदेश्वर, शांति ईश्वर और जनेश्वर। दक्षिणी बाङ्रा भी इस समय विकसित हुआ।
   अंग्रेजों ने यहां 1876 में मेयो कॉलेज शुरू किया। अलवर का राजा मंगलसिंह हाथी पर बैठ के प्रथम विद्यार्थी के रूप में आया। फिर स्टेशन रोङ़ पन क्लाक टावर बनवाया और केसरबाग में विक्टोरिया अस्पताल छोटे स्तर पर शुरू किया।

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