नतीजा- वही ढाक के तीन पात
–अमित टण्डन
अजमेर।
पानी को कोई रोक नहीं सकता। प्राकृतिक घटनाएं जैसे बारिश, बाढ़ आदि होंगी तो पानी तो भरेगा ही। पूरे शहर को लिफ्ट करके ऊंचा उठाया नहीं जा सकता। धरती अपने प्राकृतिक आकार में है। जहां ऊंचाई व पहाड़ी क्षेत्र थे वहां ऊंची बस्तियां डेवलप हुईं। जो ज़मीनी हिस्सा ढलान या निचला था वो डूब क्षेत्र बन गए। अब कहें कि सरकार व प्रशासन क्या कर रहे हैं, पानी भरने से रोकते क्यों नहीं..!! तो बड़ी बेमानी व बचकानी बात होगी। क्योंकि 50 साल पहले 75 की बाढ़ में भी ऊंचे नीचे इलाके अपनी जगह थे औऱ यही समस्या थी, आज भी है और कल भी रहेगी।
अब सवाल यह है कि पानी कि निकासी जल्दी हो, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि बरसात का पानी एक ही जगह कई कई दिन तक रुका न रहे, जैसे की आज ब्रह्मपुरी, स्वामी स्वामी कॉम्प्लेक्स/mango masala के सामने या हाथी bhata पावर हाउस वाली रोड (जयपुर रोड) पर है।
ये कुछ कुछ सौ-सौ मीटर वाला हिस्सा ऐसे गड्ढे में है जहां तक आसपास के नालों की नजदीकी तो है, मगर कनेक्टिविटी नहीं है।
कचहरी रोड पर तो दो नाले हैं, एक ब्रह्मपुरी वाला और दूसरा क्षेत्रपाल eye हॉस्पिटल के आगे वाला, मगर फिर भी पानी उन तक ना पहुंच कर वहीं सड़क पर रुका है। हाथी bhata पॉवर हाउस के पास ही ब्रह्मपुरी नाले का दूसरा छोर है, मगर फिर भी TB अस्पताल से हाथी bhata की गली तक पानी भरा है, नालों में नहीं जा रहा। यानी वह सड़क कहीं न कहीं नाले के लेवल से नीची है, जिससे पानी को नाले में उतरने के लिए ढलान नहीं मिल रही। जब इंडिया मोटर सर्किल शहर का चौपाटी hub बन रहा था, जब वहां स्वामी कॉम्प्लेक्स से लेकर ICICI बैंक वाली इमारत, उसके आगे जिसमें ज्वेलरी शोरूम तो कभी रेमण्ड शो रूम हुए- वो इमारत, या स्वामी कॉम्प्लेक्स से आगे की तमाम इमारतें, सामने mango masala और इस लाइन में सूचना केंद्र तक अनेक गुमटियां व दुकानें आदि स्थापित हो गईं, मगर इतने बरसों से चल रहे चरणबद्ध डेवलोपमेन्ट के दौरान इन इमारतों के मालिकों तक ने नहीं सोचा कि हम पानी निकासी के प्रबंध करें।
एक आदमी मकान भी बनाता है तो अपने घर की रसोई और बाथरूम के पानी के ड्रेनेज पाइप बाहर गली की नाली पर प्रॉपर छोड़ता है। इन सबके आगे कोई नाली नहीं थी, मगर पास में नाले बड़े बड़े थे। जिन जिन विभागों से अलग अलग तरह की जरूरी परमिशन इन लोगों ने ली होगी, उसी समय उन विभागों से “इस मुख्य पानी भराव और उसकी निकासी” की समस्या के इंतज़ाम भी तय करने चाहिए थे। मगर तब चूंकि उधर किसी को काम पड़ते नहीं थे, आवागमन कम था, तो किसी को कभी दिक्कतें हुई नहीं थीं, इस वजह से उस दौर के लोगों ने वहां भरे पानी को यह सोच जर नज़रअंदाज़ कर दिया होगा कि अपने क्या करना, अपने कौन से वहां जाना है। अब पिछले बीस तीस बरसों में वही भूतहा इंडिया मोटर सर्किल सबसे बड़ा व व्यस्त रौनकदार इलाका है। मगर अब उस गड्ढे में दबे 100 मीटर के सड़क के टुकड़े को गड्ढे से ऊंचा कैसे उठाएं?
इन तमाम भवनों को सीवर से भी जोड़ें तो भी सत्यानाश ही है। शायद जोड़ भी दिया हो। शहर के सीवरेज सिस्टम का हाल तो यह है कि शहर के कुछ इलाकों वाले लोग सीवर लाइन के ज़रिए घरों में लौट लौट कर आने वाले कीचड़/गंदे पानी के साथ साथ कीड़े मकोड़ों और केंचुओं से तंग हैं।
अभी पिछले हफ्ते की तीन दिन की बारिश में अलवर गेट क्षेत्र में जब निचली बस्तियों व कॉलोनियों में पानी भरा तो दो तरफा मार हुई। मुख्य दरवाजे से सड़क पर भरा बारिश का गंदा पानी घर मे घुसा, वहीं ओवर फ्लो हुई सीवरेज लाइनों का पानी रिवर्स होकर लैट्रिन-बाथरूम के ड्रेनेज पाइपों से गंदगी लिए हुए अंदर आ गया। बेचारे दिन में तीन तीन बार लैट्रिन-बाथरूम साफ कर कर के परेशान हो गए।
ऐसे में ऐसा भी नहीं कर सकते कि शहर में एक पैरेलल नाला और बनवा दें। जैसे ट्रैफिक बढ़ने पर fly over road रामसेतु बना वैसे ही पानी व बाढ़ बढ़ने पर अब ब्रह्मपुरी नाले जैसा एक नाला और शहर में फोय सागर से होते हुए आनासागर व आगे खानपुरा दौराई तक बन जाये। सवाल ही नहीं उठता। फिर क्या हो? एक ही हल लगता है। जिन जिन क्षेत्रों में पानी भरता है वहीं इंजीनियरिंग व टेक्नोलॉजी ऐसी लगे कि निकासी प्रॉपर हो जाये। मगर सागर विहार, वन विहार जैसी कॉलोनी का क्या हो, जो बनी ही आनासागर के डूब क्षेत्र में हैं। कितना भी कर लें, वहाँ न पानी भरने से रोका जा सकता है और ना ही भरे हुए पानी को तुरंत वहां से निकालने का कोई इलाज है। पानी को यदि अनासगर में डाइवर्ट भी करेंगे तो भी सम्भव नहीं क्योंकि वहां पानी अनासगर के ओवरफ्लो वाला ही भरता है। जो अनासगर खुद अपना पानी बाहर फेक रहा है, वह इन कॉलोनियों के पानी को कैसे स्वीकार करेगा।
लब्बोलुआब यह है कि समस्या ऐसे ही रहेगी।
एक कहावत है-
*ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी*
अभी दस बीस दिन में मानसून चला जायेगा, जनजीवन नार्मल हो जाएगा, फिर वही डूब क्षेत्र के तक़लीफ़ज़दा लोग कम-धंधों और मौजमस्ती में डूब जाएंगे। और हम अगले साल के मानसून पर यहां ऐसे ही अपने माथे खपा रहे होंगे।
😀😀😀
क्योंकि जनता के शांत होते ही नेता मंत्री सरकार प्रशासन भी सोचेंगे कि चलो एक साल तक की शांति हुई, अब अगले साल पानी भरने पर फिर दौरा कर आएंगे और अफसोस जता देंगे।
ढाक के तीन पात
😉😜😀
