‘आप’ के महिमामंडन में क्यों लगा है ‘आजतक’?

aaztakयह बात मेरी समझ से परे है कि आजतक न्यूज चैनल आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के चीफ मिनिस्टर केजरीवाल के महिमामंडन में क्यों जुटा हुआ है। आजकल आजतक पर पूरी तरह से मिस्टर केजरीवाल का रंग चढ़ गया है। इसके पीछे का राज क्या है, यह तो आजतक वाले अरूण पुरी बता सकते हैं या फिर मिस्टर केजरीवाल।

दिल्ली में जबसे ‘आप’ की सरकार बनी है तबसे वैसे हर कोई उनके गुणगान में जुटा है। चैनल वाले भी उन्हीं का राग अलाप रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा गीत आजतक गा रहा है। ऐसा लगता है कि फोर्ड फाउंडेशन का कुछ चंदा आजतक के हाथ भी लगा है। वैसे भाजपा वाले तो यही कह रहे हैं। ऐसा चर्चाएं चल पड़ी हैं कि अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन ने आजतक चैनल में निवेश किया है। इसी फाउंडेशन ने केजरीवाल के एनजीओ को करोड़ों की मदद की थी और इसी मदद पर सारा आंदोलन चला था।

सिर्फ भाजपा वाले यही बात कहते तो शायद विश्वास नहीं होता लेकिन आजतक चैनल को कोई दिन में एक बार देख ले तो आसानी से बदलाव का पता चल सकता है। मिस्टर केजरीवाल के गुणगान करती गाथा आपको सुनाई देगी। ऐसा लगता है कि जैसे कि केजरीवाल जैसा मिस्टर क्लीन पोलटिशियन इस देश में कोई न हो। पता नहीं एक माह में ही कितनी सीरिज बना डाली मिस्टर केजरीवाल पर।

आजतक चैनल ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार के बारे में कभी इसका एक फीसदी भी आज तक नहीं दिखाया। माणिक सरकार वाकई में गाथा के लायक है। चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। जो तनखा मिलती है बतौर मुख्यमंत्री, वह पार्टी को दे देते हैं और इसके बदले पार्टी उन्हें पांच हजार रूपए मासिक देती है, घर के खर्चे के लिए। बिना ताम झाम के रहते हैं। पैदल ही सचिवालय जाते हैं। साधारण से घर में रहते हैं। पर आजतक की दृष्टि शायद इतनी सुदूर तक नहीं जाती।

हरियाणा के युवा पत्रकार दीपक खोखर का विश्लेषण. संपर्क: 09991680040
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1 thought on “‘आप’ के महिमामंडन में क्यों लगा है ‘आजतक’?”

  1. लालबत्तियों से मुक्ति, सुरक्षा न लेना और छोटे मकानों में रहना जैसै प्रतीकात्मक कदम भी आज के राजनीतिक परिवेश में कम नहीं हैं। ऐसा करने वाले अरविंद केजरीवाल अकेले हैं। वर्तमान में मनोहर पारीकर(गोवा), ममता बनर्जी(प.बंगाल), माणिक सरकार(त्रिपुरा), एन. रंगास्वामी(पांडिचेरी) जैसे मुख्यमंत्री और एके एंटोनी, बुद्धदेव भट्टाचार्य, वी. अच्युतानंदन जैसे तमाम नेता इसी कोटि में आते हैं। गाँधीवादी, समाजवादी, वामपंथी, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की धाराओं में भी ऐसे तमाम राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता मिलेंगें, जिनकी त्याग की भावना असंदिग्ध है।

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