भ्रष्ट मोदी का अभावग्रस्त गुजरात

n modi 450-320-रोहिणी हेंसमेन-  सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा व मोदी के प्रचार अभियान का एक मुख्य मुद्दा यह है कि यूपीए ने भारतीय अर्थव्यवस्था का सत्यानाश कर दिया है और मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार, भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाईयों तक ले जाएगी। इन दावों में कितनी सच्चाई है?

पिछले 10 वर्षों में गुजरात के औसत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर, राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है। परंतु यह महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्यों से अधिक नहीं है। गुजरात ने यह वृद्धि दर थोक निजीकरण की कीमत पर हासिल की है। बंदरगाह, सड़कें, रेल व ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को पूंजीपतियों के हवाले करं दिया गया है। देश के किसी भी अन्य राज्य में कारपोरेट संस्थानों और निजी निवेशकों के हाथों में अर्थव्यवस्था का इतना बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं सौंपा गया है। कृषि क्षेत्र और व्यक्तिगत ग्राहकों की तुलना में, अधोसंरचना और पानी व बिजली तक पहुंच के मामले में उद्योगों को कहीं अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। पिछले पांच वर्षों में निर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि की दर नकारात्मक हो गई है। उसके पहले भी रोजगार के अवसरों में वृद्धि मुख्यतः असंगठित क्षेत्रों तक सीमित थी।

मोदी की सरकार निजी कंपनियों के प्रति कितनी उदार है, इसे दो उदाहरणों से समझा जा सकता है। पहला है टाटा को उसके नैनो कारखाने और अन्य  परियोजनाओं के लिए दिया गया भारी भरकम अनुदान। टाटा को 2,900 करोड़ रूपए के निवेश के विरूद्ध 9,570 करोड़ रूपये का ऋण, 0.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर दिया गया है। इसे बीस साल बाद, मासिक किश्तों में लौटाया जाना है। टाटा को बाजार दर से बहुत कम कीमत पर भूमि उपलब्ध करवाई गई है और स्टाम्प ड्यूटी, पंजीकरण और बिजली का खर्च सरकार ने उठाया है। टाटा को टैक्सों में इतनी छूट दी गई है कि गुजरात के लोगों को उनका पैसा निकट भविष्य में वापस मिलने की कोई संभावना नहीं है। अदानी समूह को 25 साल के लिए बिजली सप्लाई का ठेका दिया गया है। इससे गुजरात के सरकारी खजाने पर 23,625 करोड़ रूपयों का बोझ पड़ा है। रिलायन्स इंडस्ट्रीज, एस्सार स्टील व अन्य कंपनियों को भी इसी तरह के लाभ पहुंचाए गए हैं। आश्चर्य नहीं कि ये कंपनियां दिनरात मोदी का गुणगान कर रही हैं, उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं और इन कंपनियों के कब्जे वाले मीडिया संगठन, मोदी की प्रशंसा के गीत गा रहे हैं और उनकी आलोचना से सख्त परहेज कर रहे हैं। यही कारण है कि मोदी, अदानी समूह के हवाईजहाज से देशभर में घूम रहे हैं।

गुजरात में भ्रष्टाचार आसमान छू रहा है। जिन लोगों ने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया, उनकी दुर्गति हुई। गुजरात में भारत की कुल आबादी का पांच प्रतिशत हिस्सा रहता है परंतु हाल के वर्षों में सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं पर देशभर में हुए हमलों में से 20 प्रतिशत गुजरात में हुए। जिन आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं, उनमें से 22 प्रतिशत गुजरात के थे। सन 2003 से लेकर 10 सालों तक लोकायुक्त का पद खाली पड़ा रहा। जब सन 2011 में राज्य के राज्यपाल और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति आर.ए. मेहता को इस पद के लिए चुना तो मोदी ने इस नियुक्ति के खिलाफ उच्चतम न्यायालय तक कानूनी लड़ाई लड़ी। बताया जाता है कि इस पर 45 करोड़ रूपए खर्च किए गए। उच्चतम न्यायालय द्वारा इस निर्णय को उचित ठहराए जाने के बाद भी राज्य सरकार ने मेहता के साथ सहयोग नहीं किया और नतीजतन उन्होंने यह पद स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इसके पश्चात, राज्य सरकार ने लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन कर लोकायुक्त की शक्तियों को अत्यंत सीमित कर दिया और उसे उसी सरकार के अधीन कर दिया, जिसके भ्रष्टाचार की जांच उसे  करनी थी!

गुजरात के आम लोगों ने इस आर्थिक प्रगति की भारी कीमत चुकाई है। भारत के अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात में गरीबी का स्तर सबसे अधिक है। निजी कंपनियों को बड़े पैमाने पर जमीनें आवंटित की गईं, जिससे लाखों किसान, मछुआरे, चरवाहे, खेतिहर मजदूर, दलित व आदिवासी अपने घरों से बेघर हो गए। मोदी राज में सन 2011 तक आर्थिक बदहाली से परेशान होकर 16,000 श्रमिकों, किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या कर ली। गुजरात का मानव विकास सूचकांक, उसके समान प्रतिव्यक्ति आय वाले अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। बड़े राज्यों में नरेगा को लागू करने के मामले में गुजरात का रिकार्ड सबसे खराब है। गरीबी, भूख, शिक्षा और सुरक्षा के मामलों में मुसलमानों की हालत बहुत बुरी है। मोदी ने यह दावा किया है कि गुजरात में कुपोषण का स्तर इसलिए अधिक है क्योंकि वहां के अधिकांश लोग शाकाहारी हैं और दुबले-पतले व फिट बने रहना चाहते हैं। इसका खंडन करते हुए एक जानेमाने अध्येता ने कहा है कि इसका असली कारण है मजदूरी की कम दर, कुपोषण घटाने के उद्देश्य से शुरू की गई योजनाओं को ठीक से लागू न किया जाना, पीने योग्य पानी की कमी और साफ-सफाई का अभाव। शौचालयों के इस्तेमाल के मामले में गुजरात दसवंे नंबर पर है। यहां की आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा खुले में शौच करने को मजबूर है, जिसके कारण पीलिया, डायरिया, मलेरिया व अन्य रोगों के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। अनियंत्रित प्रदूषण के कारण किसानों और मछुआरों ने अपना रोजगार खो दिया है और भारी संख्या में लोग दमे, टीबी व कैंसर से ग्रस्त होकर मर रहे हैं। त्वचा संबंधी रोग भी व्यापक रूप से फैल रहे हैं।

तथ्य इस मिथक का खण्डन करते हैं कि विदेशी निवेशक गुजरात की ओर लपक रहे हैं। सन् 2012-13 में देश में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गुजरात का हिस्सा 2.38 प्रतिशत था और वह राज्यों में छठवें स्थान पर था। इसके मुकाबले, महाराष्ट्र का हिस्सा 39.4 प्रतिशत था। मोदी सरकार में आर्थिक अनुशासन के लिए कोई जगह नहीं है। गुजरात की आर्थिक उन्नति के पीछे उधारी है। सन् 2002 में राज्य पर कुल ऋण 45,301 करोड़ था जोकि 2013 में बढ़कर 1,38,978 करोड़ हो गया।

गुजरात में जो आर्थिक माडल अपनाया गया उसे नवउदारवाद कहते हैं। गुजरात का नवउदारवाद, यूपीए के उदारवाद से कहीं अधिक खतरनाक है। यूपीए के संस्करण में तो फिर भी निजी क्षेत्र के नियमन और समाज कल्याण के लिए कुछ जगह है। परंतु गुजरात में कारपोरेट घरानों को सरकार और जनता को लूटने की खुली छूट है। यही कारण है कि अधिकांश सीईओ चाहते हैं कि मोदी प्रधानमंत्री बनें। वे इस बात से दुःखी हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उन्हें उपलब्ध हुए बड़ी राशि के ऋणों की यूपीए सरकार जांच कर रही है। वे इससे भी दुःखी हैं कि सहारा प्रमुख सुब्रत राय जैसे धनकुबेर, छोटे निवेशकों के 20,000 करोड़ रूपये निगल जाने के आरोप में जेल की हवा खा रहे हैं। वे मोदी की सरकार बनने का रास्ता देख रहे हैं ताकि वे बिना किसी बंधन के सरकारी खजाने को लूट सकें और श्रमजीवियों के हित में बनाए गए नरेगा व खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कानूनों को लागू करने पर ‘बर्बाद‘ किया जा रहा धन बचाया जा सके। श्रमिकों के हितों की रक्षा करने वाले कानूनों को रद्द करना एनडीए के एजेन्डे में काफी पहले से है। सोना व ऐशोआराम की वस्तुएं आयात करने वाले मोदी के प्रधानमंत्री बनने का बैचेनी से इंतजार कर रहे हैं ताकि भारत को उतना ही ऋणग्रस्त बनाया जा सके जितना कि गुजरात है। इन धनकुबेरों को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि अनियंत्रित लूट के चलते भारत की अर्थव्यवस्था किसी दिन पूरी तरह ठप्प हो सकती है क्योंकि तब तक वे अपने मुनाफे की रकम को विदेशी बैंकों में जमा कर चुके होंगे।

मोदी की नीतियां वही हैं जिनके चलते हाल में अमेरिका की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है। अमेरिका दुनिया का सबसे धनी देश है परंतु बड़े पैमाने पर निजीकरण, नियमन की समाप्ति, संपत्ति के मामले में भारी असमानताएं और क्षमता से अधिक ऋणग्रस्तता के कारण उसकी अर्थव्यवस्था बर्बादी के कगार पर पहुंच गई। कोई कारण नहीं कि भारत में भी इन नीतियों का यही प्रभाव नहीं पड़ेगा। अमेरिकी डालर की कीमत इसलिए बनी रही क्योंकि वह वैश्विक रिजर्व मुद्रा है और अन्य देश अपने मुद्राकोष को बनाए रखने के लिए डालर खरीदते हैं। भारतीय रूपया वैश्विक रिजर्व मुद्रा नहीं है और अगर अर्थव्यवस्था का घाटा बढ़ता गया तो रूपये को गोता लगाने से कोई नहीं रोक सकेगा। इससे मुद्रास्फीति की दर तीन अंकों में पहुंच सकती है। विडंबना यह है कि जो मध्यम वर्ग मोदी को अपना उद्वारक मान रहा है, मोदी के सत्ता में आने पर इसी वर्ग को सबसे अधिक नुकसान होगा क्योंकि उसके पास गरीबों की तुलना में खोने के लिए बहुत कुछ है।

शायद मोदी अर्थव्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी भाजपा के किसी अन्य नेता को सौंप दें। परंतु भाजपा में किसी में यह क्षमता हो, ऐसा नजर नहीं आता। यशवंत सिन्हा पर अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता। सन् 1990 में यशंवत सिन्हा, चन्द्रशेखर सरकार में वित्तमंत्री थे। उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था का बंटाधार हो गया था। इसके बाद वे भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वित्तमंत्री बने। इस दौरान मार्च 2001 में शेयर बाजार में इतनी बड़ी गिरावट आई कि एक महीने से कम समय में शेयरधारकों के 32 अरब अमेरिकी डालर डूब गए। एनडीए के शासनकाल में औसतन 4 अरब डालर प्रतिवर्ष भारत में आया। यूपीए शासनकाल में यह आंकड़ा 25 अरब डालर था, अर्थात एनडीए के शासनकाल से लगभग छःह गुना अधिक। इंवेस्टमेंट ब्रोकर शंकर शर्मा के अनुसार, ‘‘ एकमात्र मुख्यधारा की पार्टी है जिसके उच्च नेतृत्व में कोई अर्थशास्त्री नहीं है। सन् 1999 से 2004 के भाजपा शासनकाल में जीडीपी की वृद्धि दर इतनी कम थी जितनी पिछले तीस सालों में कभी नहीं रही। भाजपा सरकार ने देश को ऋण के जाल में फंसा दिया। ऋण व जीडीपी का अनुपात 1999 में 78 प्रतिशत से बढ़कर 2004 में 91 प्रतिशत हो गया।‘‘

जिस समय पूरी दुनिया आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही हो उस समय देश की अर्थव्यवस्था को एक ऐसी पार्टी के हाथ में सौंपना, जिसमें एक भी सक्षम अर्थशास्त्री नहीं है, आर्थिक आत्महत्या करने जैसा है। कुएं के मेंढ़क की तरह मोदी और भाजपा कभी वैश्विक आर्थिक संकट की बात नहीं करते और ना ही उसके कारणों में जाना चाहते हैं। अगर कोई भी यह कष्ट उठाएगा तो उसे यह समझ में आ जाएगा कि नवउदारवाद के धीमे जहर से रूग्ण होती जा रही अर्थव्यवस्था के लिए जिस ‘‘दवाई‘‘ की वकालत भाजपा और एनडीए कर रहे हैं, दरअसल, वह इसी धीमे जहर की जानलेवा डोज है। http://visfot.com

3 thoughts on “भ्रष्ट मोदी का अभावग्रस्त गुजरात”

  1. Aur jor lagao rohini ji ……time kam hai kyoki 16 may ko to modi pm ban jayenge………taki aapke dil mai malal na rahe………ab to bukhari ji ne bhi appeal kar di……..ab aap America pakistan aur china se bhi appeal karva do….taki namo namo ho hi jaye……….

  2. rohiniji abki bar aapki patrakarita fail hone vali hai….aap jo chaho likho lekin modi PM jarur banenge.

  3. Whatever factes have been put up by Shri Rohiniji should be countered by estabelished factes. Mere comments will not serve any purpose.

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