वाराणसी में है केवल कमल व झाडू में मुकाबला

varanasiलोकसभा चुनाव की राजधानी बन चुकी काशी में भले ही 42 उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं, लेकिन यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल के बीच ही होता दिख रहा है। यह कोई अनुमान नहीं, बल्कि राजनीतिक पंडितों से लेकर शहर की सड़कों पर चलने वाले रिक्शा-ऑटोरिक्शा चालकों, फुटपाथ पर छोटा-मोटा व्यवसाय करने वालों व शोरूम में बैठे कारोबारियों की बेबाक टिप्पणी है। इनकी बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इनका हर रोज सैकड़ों लोगों से सामना होता है।

सिगरा इलाके में समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार कैलाश चौरसिया के केंद्रीय कार्यालय के बगल में नारियल पानी बेच रहे संजय डाभ वाले से जब इस संवाददाता ने वाराणसी की चुनावी स्थिति पर टिप्पणी मांगी, तो उसने तपाक से कहा, “बाबूजी, यहां झाड़ू (आप) और फूल (भाजपा) की ही लड़ाई है, बाकी तो सब हवा-हवाई हैं।”  संजय की यह त्वरित टिप्पणी किसी राजनीतिक विश्लेषण का निष्कर्ष नहीं, बल्कि उसके ठेले पर आने वाले उन तमाम प्यासों की जुबानी है, जिनके गले वह दिनभर नारियल पानी से तर करता है। संजय की इस टिप्पणी पर मुहर लगाते हैं ऑटोरिक्शा चालक मनोज कुमार।
चुनावी चर्चा से गुलजार मनोज के ऑटो पर सवार होते ही समझ में आ जाता है कि मोदी और केजरीवाल समर्थकों के बीच बहस चल रही है। यात्रियों के उतरने के बाद मनोज कहते हैं, “दिनभर की यही स्थिति है। कभी-कभी तो बहस काफी गरमा-गरम हो जाती है।” मनोज ने आगे कहा, “वैसे यहां लड़ाई तो इन्हीं दोनों (मोदी और केजरीवाल) में है, बाकी सब बेकार हैं। कमल वाले का शोर थोड़ा ज्यादा है, वे पैसे भी खूब झोंक रहे हैं, लेकिन झाड़ू वालों का असर भी कम नहीं है।”
ऑटो से उतर कर महमूरगंज इलाके में 10 कदम आगे बढ़ा तो एक मोची एक जूते पर ब्रश रगड़ रहा था। बगल में एक चौकी पर आप की टोपी बैनर की तरह टांगे हुए था। टोपी प्रदर्शित कर रहे मोची ने कहा, “बाबूजी, बात मान लो, झाड़ू कमाल करने जा रही है।” संजय, मनोज और सोमारू मोची की ही नहीं, वाराणसी में ‘मिनी पाकिस्तान’ के नाम से लोकप्रिय मदनपुरा इलाके में कारोबारी राजेश और कल्लू भाई की नजर भी इन्हीं दो उम्मीदवारों पर है।
राजेश कहते हैं, “धीरे-धीरे यहां चुनाव दो उम्मीदवारों (मोदी-केजरीवाल) के इर्द-गिर्द सिमटता जा रहा है। इस स्थिति को बाकी उम्मीदवार भी समझ रहे हैं।” राजेश ने कहा कि कई उम्मीदवारों ने तो प्रचार भी करना बंद कर दिया है।
वाराणसी संसदीय क्षेत्र की फिजा भी इस बात को बयान करती है कि मुख्य मुकाबला राजनीति के क्षितिज पर उभरे इन्हीं दो सितारों के बीच है। भाजपा समर्थक राम बाबू भी सहमति जताते हैं कि मोदी का मुकाबला केजरीवाल से ही है, बाकी सब उम्मीदवार लड़ाई से बाहर हैं। वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, “प्रारंभ में स्थिति अलग थी। लेकिन मोदी और केजरीवाल के कारण यहां चुनाव द्विध्रुवीय होने की संभावना प्रबल हो गई है। मतदान की तिथि जैसे-जैसे करीब आ रही है, वाराणसी के मतदाता दो खेमों में बंटते जा रहे हैं। मोदी समर्थक और मोदी विरोधी। तीसरे खेमे की गुंजाइश कम दिख रही है।”
राजनीतिक विश्लेषक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आनंद दीपायन कहते हैं, “मोदी की हिंदूवादी छवि और वाराणसी की गंगा-जमुनी संस्कृति के कारण ऐसा तो होना ही था। मोदी की यहां से उम्मीदवारी की घोषणा होते ही इसकी पूरी संभावना बन गई थी। ध्रुवीकरण का अच्छा पहलू यह है जातीय समीकरण टूट रहे हैं, जिस पर उत्तर प्रदेश की अब तक की पूरी राजनीति निर्भर रही है।”
बहरहाल, दो ध्रुवों में बंट रही काशी किस तरफ करवट लेगी, इसका निर्णय 12 मई को होगा और निर्णय की घोषणा 16 मई को। वाराणसी की रणभूमि में उतरे 42 उम्मीदवारों में कांग्रेस के अजय राय, सपा के कैलाश चौरसिया, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विजय जायसवाल, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के हीरालाल यादव और तृणमूल कांग्रेस की इंदिरा तिवारी भी शामिल हैं।

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