
भाजपा देश में इतनी सीटें जीत कर आयी जिसकी कल्पना खुद भाजपा को भी नहीं थी , भाजपा की इस अप्रत्याशित जीत के कारणों को गहराई में जा कर समझा जाए तो पता चलेगा कि नरेंद्र मोदी की लहर ने नहीं बल्कि राहुल गांधी के कमज़ोर,निष्क्रिय और कन्फ्यूज़ नेतृत्व ने कांग्रेस को उस मुकाम पर ला कर खड़ा कर दिया जिसका गुमान शायद ही किसी राजनैतिक समीक्षक ने किया हो !
१० साल सत्ता सुख भोगने के पश्चात कांग्रेस जिस प्रकार के भ्रष्टाचारी और महंगाई से लबरेज़ पर्वत पर ब्राजमान थी वहां से वोह जब भी गिरती तब यही हश्र होता जो आज हुआ है ! राहुल सहित तमाम कांग्रेसी नेताओं के भ्रष्टाचारी,दिगभ्रमित और घमंडी व्यक्तित्व को दिल्ली विधानसभा चुनाव के पश्चात तमाम हिन्दुस्तान समझ गया था कि अब कांग्रेस के विरुद्ध गुस्से का जो लावा जनता के भीतर उझालें मार रहा था उसका धुआं तो दिल्ली सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों के साथ-साथ दिखने लगा था ! और लोकसभा चुनाव में तो यह गुस्सा ज्वालामुखी के रूप में फूट पड़ा जिसका परिणाम आज सम्पूर्ण भारत वर्ष देख रहा है ! यहां यह स्पष्ट करना भी बहुत ज़रूरी हो जाता है कि जनता के भीतर यह गुस्सा कांग्रेस के खिलाफ तो था ही लेकिन इस गुस्से से वह दल भी नहीं बच सके जो पिछले दस सालों से अपने कांधों पर एक भ्रष्टाचारी सरकार को लेकर चल रहे थे, लेकिन इस सब के बावजूद भाजपा इतना बड़ा विकल्प नहीं थी जितना बड़ा नतीजा उसके हाथ लग गया है !
भाजपा की इस अप्रत्याशित जीत के कारणों की समीक्षा करें तो लगता है यह जीत नरेंद्र मोदी की नहीं बल्कि उस प्रचार तंत्र की है जो घटिया साबुन का विज्ञापन कर उसे उसे देश का बेहतरीन साबुन साबित कर देता है ! एक तरफ यही प्रचार तंत्र तम्बाकू से बने पदार्थों का विज्ञापन करता है और दूसरी तरफ यह चेतावनी भी साथ में प्रदर्शित करता है कि तम्बाकू का इस्तेमाल सेहत के लिए हानिकारक है लेकिन इस विज्ञापन का परिणाम यह होता है कि हिन्दुस्तान की भोली जनता चेतावनी को नज़र अंदाज़ करते हुए तम्बाकू का सेवन शुरू कर देती है ! और देश की एक बड़ी आबादी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हो जाती है ,उसी प्रचारतंत्र ने जब मोदी को एक बाज़ार वास्तु के रूप में पेश किया तब देश की भोली जनता ने उसके दूरगामी परिणामों को नज़र अंदाज़ करते हुए अन्य धर्मनिरपेक्ष नेताओं की चेतावनियों को सिरे से ख़ारिज करते हुए मोदी को इसी तरह चुन लिया जिस तरह कैंसर की बीमारी की चेतावनी के बावजूद तम्बाकू उत्पादकों का सेवन प्रचारतंत्र के कारण आम जन शुरू कर देता है !
प्रचारतंत्र के बाद किसी दुसरे तंत्र ने मोदी के सर पर जीत का ताज सजाया है वह देश का चुनाव आयोग है, चूंकि चुनाव आयोग ने पूरे चुनाव में सिर्फ और सिर्फ मो.आज़म खान की ज़ुबान पर पाबंदी लगा कर उस चेतावनी को बताने से रोका है जिस चेतावनी को सुनकर शायद मुल्क की एक बड़ी आबादी काम से कम यह तो जान सकती कि जिस वास्तु को वह अपने स्वयं के सेवन के लिए चुन रहे है उसके साइड इफेक्ट्स देश के लिए बहुत खतरनाक साबित होने वाले हैं !
प्रचारतंत्र और चुनाव आयोग के इस महहत्त्वपूर्ण योगदान के पश्चात उस सबसे अहम कड़ी को भी हम अनछुआ नहीं छोड़ सकते जिस कढ़ी का नाम देश का कार्पोरेट जगत है ! जिस प्रकार उध्योगजगत प्रचारतंत्र के सहारे अपने घटिया प्रोडक्ट्स को देश का सबसे बहतरीन प्रोडक्ट बताने के साथ-साथ पूरे मुल्क में उसे बेचने का कार्य करते है उन्हें सिर्फ स्वयं के लाभ-हानी की चिंता होती है न ही उन्हें देश की और न ही देश की जनता की कोई परवाह होती है ! इसी प्रकार देश के उध्योग जगत ने तमाम मीडिया को प्रचारतंत्र बना कर और चुनाव आयोग ने पक्षपात पूर्ण रवैया अपना कर मोदी को उस पद पर पहुंचा दिया जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो , चूंकि स्वयं भाजपा नेता मीडिया द्वारा आयोजित चर्चाओं में यह स्वीकार कर रहे हैं कि इतनी बड़ी जीत की उम्मीद पार्टी को भी नहीं थी खुद आर.एस.एस. भी अपने आंकलन में भाजपा को मात्र १८०-२२५ सीटें दे रही थी ! शायद इन्हीं सब बातों और तजुर्बों की बुनियाद पर वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी यह कह रहे हैं कि इस जीत में मोदी की क्या भूमिका इसकी समीक्षा की जानी चाहिए ? भाजपा की वरिष्ठ वक्ता सुषमा स्वराज कह रही है कि यह जीत सिर्फ और सिर्फ भाजपा की है ! इस समीक्षा में यदि उप्र का ज़िक्र नहीं किया गया तो यह समीक्षा अधूरी रह जाएगी उप्र में भाजपा ने इतनी सीटें जीती जितनी सीटें कांग्रेस पूरे देश से नहीं जीत पाई और वह बसपा भी उप्र की राजनीत के सबसे आख़री पायदान से भी नीचे उतर कर खड़ी हो गयी जिसने उप्र पर तीन बार राज किया था ! और वह समाजवादी पार्टी भी अपनी साख अपने परिवार के सदस्यों की दम पर बचा पाई
जो उप्र पर वर्तमान में हुकूमत कर रही है ! सपा की इस दुर्गती और भाजपा की इस जीत में सबसे बड़ी भूमिका बसपा की रही जिन सीटों पर भाजपा और सपा की सीधी लड़ाई थी इस तरह की १९ सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर बसपा ने भाजपा की जीत की राह को आसान कर दिया ! बसपा अपने पारम्परिक वोट बैंक को तो खिसकने से नहीं रोक पाई लेकिन उसने वोट काटू राजनीत के तहत भाजपा की जीत के लिए संभवतः ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतार दिए जो धर्मनिरपेक्ष दलों को नुक्सान पहुंचा सके मायावती की मुस्लिम विरोधी सोच तो तब ही मुल्क के सामने आ गई जब मुज़फ्फरनगर दंगों के पश्चात हर राजनैतिक दल ने वहां जा कर पीड़ितों के दर्द को जानने-समझने की कोशिश की थी लेकिन कोई नहीं पहुंचा था तो उसका नाम मायावती था ! संभवतः इसी सोच के चलते मायावती पूरे चुनावी अभियान में मोदी के बजाए मुलायम पर ही निशाना साधती रही !
इस पूरी समीक्षा के बाद यह कहा जा सकता है कि राहुल के दिगभ्रमित नेतृत्व ने , मायावती की साम्प्रदायक ज़हनियत ने ,प्रचारतंत्र की अफवाहों ने , चुनाव आयोग की पक्षपात पूर्ण कार्यवाहियों ने और उद्योग जगत की अकूत दौलत ने मिलकर ३० साल की भारतीय राजनीत का वह तिलिस्म तोड़ दिया जिसका तसव्वुर शायद ही किसी ने किया हो , देखें जनता के इस फैसले के असल परिणाम क्या निकल कर आते है ………!
M. Aamir Ansari, Managing Editor
Weekly Vidisha Dinkar
Choudhry House, Bada Bazar, Vidisha M.P (India)
+91-9013181979
07592-235449, Fax:. No:. 011-23738333.
www.awamehind.com
ansariaamir@in.com
M. Aamir Ansari, Managing Editor
Weekly Vidisha Dinkar
Choudhry House, Bada Bazar, Vidisha M.P (India)
+91-9013181979
07592-235449, Fax:. No:. 011-23738333.
www.awamehind.com
ansariaamir@in.com
माननीय लेखक महोदय को भा ज पा की जीत अभी भी पच नहीं रही है जब वे घटिया साबुन बेचने की बात कहते है उससे उनका अपना घटिया पण भी ज़ाहिर होता है वे भूल जाते हैं की उनके इस लेख का मुल्यांकन उनको भी एक घटिया व ठेठ कांग्रेसी विचारधारा का लेखक सिद्ध करता है अब तक कांग्रेस भी सदैव इसी प्रकार जनता को बेवकूफ बना राज करती रही है कभी गरीबी हटाओ कभी बीस सूत्री कभी अंत्योदय और न जाने कितने नारे दे इसने राज किया है शायद श्रीमान यह भूल गए हैं कि इस मुल्क को धर्म जाति व सम्प्रदाय के आधार पर विभाजित करने का काम कांग्रेस ने जितना किया है , उस से ज्यादा किसी ने नहीं सच तो यह है कि खुद को सेक्युलर होने का प्रमाणपत्र दे वह समाज को बाँट चुकी है और इस चुनाव में भी पीछे नहीं रही अब की बार पैसा उल्टा पदपड़ गया और सब तिलमिला रहे हैं