-कृष्ण मोहन- आम आदमी पार्टी अब अपने विज्ञापनों में केजरीवाल की खराब सेहत का हवाला देने लगी है। इस तरह वे लोगों के मन में अपराधबोध पैदा करना चाहते हैं- हाय हम कितने स्वार्थी हैं कि कूलर और एसी में हैं जबकि एक बेचारा डाईबिटिक आदमी बंद कोठरी में पड़ा है। कब छूटेगा पता नहीं। सचमुच काफी दयनीय हालत है। ऐसे ही लोगों के लिए कहा जाता है कि ये उंगली कटा कर शहीदों में नाम लिखाते हैं। क्या शहादत है। जज बेचारा आग्रह कर रहा है कि मुचलके पर साइन कर दें लेकिन साहब है कि जेल जाने पर अड़े हुए हैं क्योंकि उसके बिना दिल्ली के आगामी चुनाव में जनता की सहानुभूति नहीं मिलेगी। बुनियादी तौर पर यह मोदी के उसी हथकंडे का जोड़ीदार है जिसमें नीच राजनीति को नीच जाति बताकर हमदर्दी जुटाई जाती है। यानी जनता की आँख में धूल झोंकने वाली नागवार हरकत। जहाँ तक इनके मकसद का सवाल है वह भी असंदिग्ध रूप से गलत है। गडकरी के भ्रष्टाचार का अगर कोई उदाहरण उनके पास है तो उसे कोर्ट के सामने रखना चाहिए और अदालती प्रक्रिया में सहयोग करना चाहिए। नहीं है तो चुपचाप माफ़ी मांग लेना चाहिए। इस देश के हर नागरिक को अपने सम्मान की रक्षा करने का हक है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि केजरीवाल उसके बारे में क्या सोचते है। भ्रष्टाचार के नाम पर उन्हें विचहन्टिंग की इजाज़त नहीं दी जा सकती। इसीलिये बड़े से बड़े अपराधी को क़ानून के सामने खुद को निर्दोष प्रमाणित करने का पूरा मौक़ा दिया जाता है। सभ्यता के सारे मानकों को तोड़कर की जाने वाली केजरीवाल की इस तथाकथित अराजकता को शह देने वाले जान लें कि ये संविधान और क़ानून के शासन के खात्मे की ओर ले जाने वाली फासिस्ट प्रवृत्ति है कोई अराजकता नहीं। यह कारपोरेट का प्लान बी है। मोदी के मुकाबले केजरीवाल को समर्थन देना वैसा ही है जैसे हिटलर के मुकाबले के लिए मुसोलिनी का समर्थन करना। याद रखिये फासिज्म साम्प्रदायिक हो यह अनिवार्य नहीं है वो धर्मनिरपेक्ष भी हो सकता है बस उसे जनता को आवेग देने वाला एक मुद्दा चाहिए। भ्रष्टाचार विरोध में भी ऐसी संभावना है। इसीलिये भ्रष्टाचार को भावनाओं को भड़काने वाला मुद्दा बनाने की हर कोशिश का विरोध होना चाहिए और उस पर अंकुश लगाने वाले कारगर संस्थागत प्रयास करना चाहिए।http://www.hastakshep.com