आम चुनाव प्रचार के दौरान जब शर्मा जी के इंडिया टीवी ने पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू प्रसारित किया तो वही नकवी जी नाराज हो गये जिन्होंंने चैनल का नया रंग रोगन करके उसका चाल, चेहरा, चरित्र और चिंतन बदलने की कवायद की थी। इंटरव्यू की फिक्सिंग पर नकवी जी इतना नाराज हुए कि इस्तीफा ही दे दिया! इंटरव्यू की रात घर आये तो लौटकर दफ्तर ही नहीं गये। खूब हो हल्ला मचा। शर्मा जी के रजतपट पर भगवा रंग का असर साबित करने की कोशिश की गई। लेकिन शर्मा जी ऐसे भक्त हनुमान कि टस से मस न हुए। चुनाव हुए। सचमुच मोदी सरकार हो गये। खूब जश्न मना। देश में भी और इंडिया टीवी के दफ्तर में भी। लेकिन इस जश्नो गारद के बाद एक दिन भी आराम हराम था। मोदी सरकार के लिए भी और इंडिया टीवी के लिए भी। शपथ लेते ही मोदी सरकार भी काम पर लग गये और सरकार का काम काज बताने के लिए शर्मा जी भी ‘कमर’ को किनारे करते हुए कमर कसकर तैयार!
वैसे तो 26 मई से पहले ही इंडिया टीवी ने कोई कम गुणगान नहीं किया था, लेकिन 26 मई के बाद तो मानों शर्मा जी को मोदी सरकार में गुणों की खान ही नजर आ गई। ओहो! कैसा मंत्रिमंडल है। अहो धन्यभाग वाली शैली में शपथ ग्रहण समारोह को लाइव किया गया। अगर आपने मोदी सरकार का शपथ ग्रहण देखा हो और इंडिया टीवी पर देखा हो तो जरा पीछे लौटकर जाइये और याद करिए। कैसा नजारा था, उस वक्त इंडिया टीवी के पर्दे पर। हर शब्द के साथ इतिहास निर्मित हो रहा था जी। उधर मंत्री शपथ ले रहे थे, इधर इंडिया टीवी मंत्री का जीवन चरित्र बांच रहा था। मेहनत हुई होगी। पता रहा होगा कि कौन मंत्री बन रहा है। उसका प्रोफाइल पहले ही तैयार कर लिया गया होगा! तभी तो जो बात शपथ लेनेवाले मंत्रीगण को भी पता नहीं रही होगी, वह शर्मा जी को पता थी। नजदीकी रिश्तों का इतना लाभ तो मिलता ही है। शर्मा जी को भी मिल गया होगा। इसमें क्या बुरा है?
लेकिन सरकार बने पखवाड़ा नहीं बीता शर्मा जी ने पैरों में पखावज ही बांध लिये! किसी सरकार की तान पर किसी मीडिया घराने की ऐसी ताकधिनाधिन कभी किसी ने देखी हो तो देखी हो, अपनी इन आंखों को ऐसे दिन देखना पहली बार नसीब हो रहा है। अभी आज ही जेटली जी ने मंत्रियों की कोई बैठक ली है। उन्हें बजट पेश करना है। वित्त मंत्री के बतौर बैठकें करना उनका काम है। लेकिन जहां दूसरे सारे चैनल मंहगाई का गुणा गणित करने में व्यस्त थे, वहीं इंडिया टीवी मोदी सरकार के मेहनती मंत्रियों का हिसाब किताब कर रहा था। बहुत काम करते हैं जी। सारे मंत्री लोग। सब मोदी जी का असर है। इतिहास को पहली बार इतना मेहनती प्रधानमंत्री मिला है। अहो धन्यभाग इस देश का, कि मोदी जी जैसा मेहनती प्रधानमंत्री मिला और अहो धन्यभाग उस देश का जिसे इंडिया टीवी जैसा गैर सरकारी दूरदर्शन। हम बड़े बड़भागी हैं शर्मा जी जो आपके दर्शन होते हैं, रोज टीवी पर। गलती से। चैनल बदलते हुए।
राज्यपालों के अदला बदली पर जहां दूसरे मीडिया घराने आचार संहिता का रोना रो रहे हैं। कानूनी पहलुओं पर माथाफोड़ी कर रहे हैं, शर्मा जी बता रहे हैं कि कैसे कोई राज्यपाल बदला जाएगा तो क्यों बदला जाएगा और नहीं बदला जाएगा तो क्यों नहीं बदला जाएगा। जरा शर्मा जी का संभाषण सुनिए। “क्योंकि शीला दीक्षित अभी अभी राज्यपाल बनाई गई हैं। ठीक चुनाव से पहले। इसलिए उनका करीब करीब पांच साल का कार्यकाल बाकी है। वे इस्तीफा नहीं देंगी इसलिए उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बना दिया जाएगा क्योंकि दस दिनों बाद त्रिपुरा के राज्यपाल का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है।” गौर फरमाइयेगा जनाब। इस भाषा पर। शर्मा जी कोई आशंका नहीं जता रहे, सीधे सीधे बता रहे हैं कि क्या होने जा रहा है। सुनते सुनते लगा कि यह तो पत्रकारिता नहीं हो सकती? किसी सरकार के फैसले के बारे में हमें भले ही निश्चित तौर पर सबकुछ पता हो लेकिन हम प्रवक्ता की तरह तो बिल्कुल नहीं बता सकते कि क्या होने जा रहा है? शीला दीक्षित को त्रिपुरा का राज्यपाल ‘बनाया जा सकता है’, यह तो बताने का फर्ज बनता है, लेकिन ‘बना दी जाएंगी’ यह कोई टीवी चैनल वाला कैसे दावा कर सकता है? क्या इंडिया टीवी गैर-सरकारी दूरदर्शन या पीआईबी हो चला है कि मोदी सरकार के सारे आधिकारिक फैसलोंं की जानकारी इसी चैनल से मिलेगी?
पत्रकारिता की मर्यादा को छोड़िये यह तो किसी सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए कि उसके गुप्त और संवेदनशील निर्णयों के बारे में कोई चैनल इस तरह अति आत्मविश्वास के साथ जनता जनार्दन को बता देता है। रहा सवाल पत्रकारिता का तो शर्मा जी के लिए अब ऐसे सवालों का कोई मतलब नहीं। संघर्ष के अपने दिनों में उन्होंने न जाने ऐसी कितनी ही मर्यादाओं का पालन किया होगा लेकिन दिल्ली में दरियागंज से निकले तो शायद वे मर्यादाएं वहीं छोड़कर आगे बढ़े। टीवी पत्रकारिता, घाटा, संघर्ष और सतत अभाव ने जरूर उनके मन में मर्यादा शब्द के लिए इतना कुभाव तो भर ही दिया होगा कि अपने अच्छे दिनों से वे कोई समझौता बिल्कुल नहीं करेंगे। किसी पत्रकारीय मर्यादा के लिए कदापि नहीं। अगर गुणगान से ही टीआरपी और अच्छे दिन आते हैं तो शर्मा जी किसी की नहीं सुनेंगे। अपनी अंतरात्मा की भी नहीं। अगर वह कहीं बची हुई है तो।
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