गुजरात में दौड़ती है दुनिया की सबसे सुस्त ट्रेन

gujrat_trainदुनिया की सबसे तेज ट्रेन कहां चलती है? चीन के शंघाई शहर में। लेकिन दुनिया की सबसे सुस्त ट्रेन कहां चलती है? कहीं और नहीं बल्कि उस गुजरात में जहां एक दशक तक मुख्यमंत्री रहनेवाले नरेन्द्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री हैं और देश को बुलेट ट्रेन का ख्वाब दिखा रहे हैं। मोदी की छोड़ी गई लोकसभा सीट बड़ोदरा में प्रतापनगर और जंबूसर के बीच चलनेवाली यह पैसेन्जर ट्रेन पचास किलोमीटर की दूरी करीब साढ़े तीन घण्टे में पूरी करती है। यानी औसत 16 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार। उस रफ्तार से सीधे दस गुना कम जिसका परीक्षण अभी अभी दिल्ली से आगरा के बीच किया गया है।

नवंबर 2012 में इस ट्रेन से यात्रा करने के बाद एक ट्रेवेलॉगर लिपिका हैदर ने विस्तार से इस ट्रेन के बारे में जानकारी दी थी। अपने यात्रा संस्मरण में लिपिका लिखती हैं उनके दोस्त ने इस ट्रेन से यात्रा की सलाह देते हुए कहा था, “इस ट्रेन पर यात्रा करने के बाद आप शर्म से डूब मरेंगे। जाओ और एक बार इस ट्रेन से यात्रा करके देखो।”

बड़ोदरा में प्रतापनगर और जंबूसर के बीच चलनेवाली इस पैसेन्जर ट्रेन में रेलयार्ड में इस्तेमाल होनेवाला इंजन लगाया जाता है। और इसी इंजन के भरोसे यह पैसेन्जर ट्रेन आज एक सौ पचास साल बाद भी अपनी यात्रा जारी रखे हुए है। लिपिका लिखती हैं कि “1862 में पहली बार नैरोगेज की इस लाइन पर ट्रेन का परिचालन शुरू किया गया था। शुरूआत में बैलों के जरिए इस ट्रेन को खींचा जाात था लेकिन जल्द ही इस ट्रेन को कोयले का एक इंजन मिल गया।” बाद में कब डीजल इंजन का इस्तेमाल शुरू हुआ पता नहीं लेकिन जिस इंजन के जरिए इस पैसेन्जर ट्रेन को चलाया जाता है उसकी अधिकतम गति सीमा 20 किलोमीटर होती है।

बड़ोदरा वह शहर है जहां मुंबई के बाद सबसे पहले रेलवे पहुंची थी। इसी वक्त में यहां दो नैरोगेज ट्रेन भी चलाई गई थी। एक प्रतापनगर जंबूसर पैसेन्जर और दूसरा मियांगांव से दभोई पैसेन्जर। लेकिन इनमें प्रतापनगर जंबूसर पैसेन्जर ट्रेन का रूट सबसे लंबा है। पचास किलोमीटर। अंग्रेजों के जमाने तो इस रूट पर नैरोगेज की ट्रेन चलती ही रही आाजादी के बाद भी इस रूट को नहीं बदला गया। और शंटिंग इंजन के जरिेेए आज भी एकमात्र पैसेन्जर ट्रेन चलाई जा रही है।

लिपिका लिखती हैं कि इस ट्रेन से यात्रा करने पर आपको पता चलता है कि हम दुनिया में कितने पीछे रह गये हैं। वे बताती हैं कि यह कोई ट्वाय ट्रेन नहीं है कि इसे हैरिटेज के दर्जे में शामिल मान लिया जाए। रेलवे के रिकार्ड में यह एक सामान्य पैसेन्जर ट्रेन है लेकिन इस वक्त शायद इसे दुनिया की सबसे सुस्त और धीमी ट्रेन होने का दर्जा हासिल है। इस ट्रेन में यात्रा करने के बाद लिपिका लिखती हैं कि पचास किलोमीटर की यात्रा के दौरान स्टेशन के नाम पर सिर्फ बोर्ड दिखाई दिये और ट्रेन का टिकटघर भी ट्रेन के साथ ही चलता है। इस ट्रेन का परिलाचन करनेवाले कर्मचारी इस बात से खासे नाराज हैं कि इस ट्रेन को उनके भरोसे छोड़ दिया गया है जिसे चलाये रखना उनकी मजबूरी हो गई है।

भारत में बुलेट ट्रेन का ख्वाब देखनेवाले हुक्मरानों के लिए यह ट्रेन एक सबक है जहां आम पैसेन्जर ट्रेनों की ही नहीं मेल एक्सप्रेस ट्रेनों की भी दुर्दशा है। अगर ट्रेनों के जरिए देश का समाजशास्त्र को ठीक रखना है तो जरूरी यह है कि बुलेट ट्रेन से पहले देश की सामान्य ट्रेनों को ‘बुलक ट्रेन’ के दौर से बाहर किया जाए। अगर मुंबई से अहमदाबाद भविष्य में बुलेट ट्रेन के जरिए जुड़ने की संभावना रखता है कि इतनी गुंजाइश इन उपेक्षित ट्रेनों के लिए होना जरूरी है कि वे अपनी अधिकतम सीमा चालीस से पचास किलोमीटर तक तो पहुंचा ही दें। आखिर इन ट्रेनों से भी देश के नागरिक ही सफर करते हैं। और ऐसा वे किसी ट्वाय ट्रेन में मजे लेने के लिए नहीं बल्कि रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए करते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि इस रेल बजट में कहीं न कहीं इस ट्रेन के लिए भी अच्छे दिन जरूर आयेंगे।

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