काले धन की कोहरे में सरकार

विकास कुमार गुप्ता
विकास कुमार गुप्ता

काले धन के कोहरे फिर से लोकतांत्रिक वातावरण को अपने आगोश में लेने लगी हैं। भारत जैसे देश में जहां अदने से मामलें में न्यायालयों में दशकों उठक पटक लगती हो वहां लाखों करोड़ के कालेधन छुपाने वाले देश के ताकतवर और सत्ता के बेल से लिपटे लोगों पर त्वरित कार्रवाई होना इतना आसान प्रतीत नहीं हो रहा। एक कहावत है अंधा बाटे रेवड़ी घूम फिरकर अपने को दे। ठीक यही स्थिति काले धन मामले को लेकर सभी सरकारों की रही है। समूचा देश जानता है कि देश का काला धन विदेशों में जमा है। इसको लेकर 2012 में बाबा रामदेव आन्दोलन भी कर चुके है तीसपर काले धन पर ढुलमुल रवैये को लेकर देशभर के तमाम नेता, समाजसेवी समेत अन्य भी समय-समय पर अपना विरोध जताते रहे है। इधर अन्ना भी काले धन को लेकर आन्दोलन की बात कर रहे हैं। समेकित रूप में काला धन का कुहरा छटता देखने के लिए समूचा देश टकटकी लगाये है।
अभी चुनाव के ठीक बाद बहुमत में आयी एनडीए ने जिस तेजी से काले धन पर एसआइटी का गठन किया उससे जनता के बीच काले धन आने को लेकर आशायें जगने लगी थी। इन आशाओं के मध्य यह भी उत्सुकता बनती रही कि आखिर वो कौन लोग है जिनके नाम से काले धन को विदेशों में जमा कराया गया है? जनता के मध्य नाम और रकम को लेकर अबतक तो कुहरे वाली ही स्थिति है। कुछ समय पहले सरकार ने कहा था कि वह 136 लोगों के नाम बतायेगी लेकिन समूचे देशवासियों को उस समय गहरी निराशा हुई जब एनडीए ने मात्र तीन नामों को उजागर किया जिनमें प्रदीप बर्मन, राधा टिम्बलू और पंकज चमनलाल लोढि़या के नाम शामिल हैं। किस्तों में नामों को उजागर करने के पीछे सरकार के चाहे जो तर्क हो लेकिन नाम न उजागर करना कभी से भी देशहित में नहीं। हालांकी सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद केंद्र सरकार ने कहा है कि वह बुधवार को कोर्ट को ब्लैक मनी खाताधारकों की पूरी लिस्ट सौंप देगी। साथ ही कोर्ट का यह कहना कि ”हम काले धन को वापस लाने का मुद्दा सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते।“ एक तरह से सरकार के कमजोरी पर कोर्ट की नकेल ही है।
कुछ सालों पहले काले धन मामले को लेकर राम जेठमलानी ने जनहीत याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी उसमें सिर्फ एक नाम पूणे के हसन अली का था। फिर उसके बारे में सुप्रीम कोर्ट को लिचेस्टाइन की एक बैंक के सोलह नाम भी दिये गये थे इसपर सुप्रीम कोर्ट ने इसको ”राष्ट्रीय संपत्ति की चोरी“ कहा था। और इसके नामों को जल्द से जल्द उजागर करने की बात कही थी। इसमें किसके नाम है इसपर अभी भी संशय बना हुआ है लेकिन अगर लालू यादव के लोकसभा में दिये गये वक्तव्य पर गौर करें तो यूपीए काल में शामिल उस समय के जितने भी एमपी थे उनके नाम इस पूरे लिस्ट में नहीे है। लालू ने कहा था ”मैडम, प्रणब बाबू को मैं धन्यवाद देता हूं कि जो लोग सड़कों पर फालतू बातें करते थे, आदरणीय मैम्बरों के खिलाफ काले धन के मामलों की मांग करते थे, आपने संसद में क्लीयर कर दिया कि किसी भी एमपी का वहां पैसा नहीं है। मैं प्रणब बाबू को धन्यवाद देता हूं।“
आजादी पश्चात काले धन को हमारे पूंजीपतियों द्वारा बाहर भेजने का जो सिलसिला लगातार चलता रहा उसके पीछे सबसे पहला कारण हमारे देश मंे 97.5 फीसदी इंकम टैक्स होना था। दुनिया के बहुत कम देशों में इतना अधिक टैक्स था। टैक्स बचाने की खातिर विदेशों में अनधिकृत खाते खोलें गये। इसके इतर रिश्वत सहित अनेकों प्रकार के गैरकानूनी तरीकों से जमा किये गये धन को विश्व के अनेक देशों विशेषकर स्वीटजरलैण्ड मंे छिपाया गया। विदेशों में कितना काला धन जमा है इसके बारे में अभी सटीक जानकारी नहीं है। कोई कह रहा है 20 लाख करोड़, कोई कह रहा है 11 लाख करोड़। लेकिन ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी संस्था के अनुसार यह रकम तकरीबन 25 लाख करोड़ है। और इसी सस्था का यह भी कहना है कि सबसे ज्यादा पैसा भारत का है। काले धन की जानकारी को लेकर 2003 में कांग्रेस ने एक वैश्विक सम्मेलन में 140 देशों द्वारा इस सम्बन्ध में एक समझौता साइन किया जिसकी पुष्टि कांग्रेस के लेटलतीफी के चलते 2011 तक हो पायी। 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लालकृष्ण को बताया था कि जानकारी की पुष्टि हो गई है। उस समय काले धन के मामले में तेजी लाने के लिए एक मंत्रीमंडलीय कमेटी बनाई जानी थी लेकिन उसे भी बनाने में देरी की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर उस समय कहा था ”सरकार इस मामले में जितनी प्रो-एक्टिव होनी चाहिए, वह नहीं है।“
लोकसभा में स्वयं यूपीए के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि भारत के लोगों का विदेशों में जो काला धन है, उसकी जो लिस्ट आई, जर्मनी से, फ्रांस से, स्विट्जरलैन्ड से और बाहर के देशों से जो आई, उसमें 700 लोगों के नाम हैं। अलग अलग आयोगों का गठन किया गया काले धन के विषय में, विदेशों के साथ भी बात किया गया, साउथ एशियन और ईस्ट एशियन कंट्रीज – बंग्लादेश, थाइलैन्ड, श्रीलंका, इंडोनेशिया में काला धन पकड़ने के बारे में समझौता भी हुआ कि हमारे जांच दल जर्मनी, स्विट्जरलैन्ड, अरब, अमेरिका में जाएंगे, ऐसा लोकसभा में बताया गया था। सीबीआई वाले, सीमाशुल्क वाले जो अधिकारी हैं, उनके द्वारा कभी कभी अखबारों में आया था कि हमारे देश में 7600 केस काले धन के विषय में चल रहे हैं, लेकिन अभी तक इसका फैसला नहीं हुआ। 2011 के कागज में आया कि किसानों के बीज में काला धन घुस रहा है। 23 जनवरी, 2012 के राष्ट्रीय सहारा पेपर में लिखा था कि- 7600 केस मनी लॉन्ड्रिंग के हमारे देश में चल रहे हैं। अभी तक इनमें से कितने केसेज में फैसला हुआ इसपर भी सरकारी कुहरे छाये हुये हैं?
काला धन विदेशी बैंकों के इतर भारत में भी है। आजादी पश्चात् देश में उपलब्ध काले धन के बारे में वांग्चू कमीशन ने बताया था कि हमारे देश में पांच हजार करोड़ रूपये का काला धन है। यह लगभग चार दशक पहले कहा था। तब आज की स्थिति का स्वतः आंकलन किया जा सकता है।

लेखक विकास कुमार गुप्ता, पीन्यूजडाटइन के सम्पादक है इनसे 9451135000, 9451135555 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

error: Content is protected !!