– आर. जगन्नाथन – सरकार नेपिछले हफ्ते जीडीपी की गणना करने का तरीका बदल दिया। इससे बीते दो वर्ष 2012-13 और 2013-14 की विकास दर खासी बढ़ गई है। अर्थव्यवस्था को मापने के लिए अपनाई गई नई पद्धति ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) के मुताबिक 2012-13 की जीडीपी ग्रोथ रेट 4.5 से संशोधित कर 5.1 फीसदी की गई है और 2013-14 के लिए इसे 4.7 से बढ़ा कर 6.9 फीसदी कर दिया गया है। इस कदम से पिछले वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को यह कहने का मौका मिल गया कि ताजा आंकड़े बताते हैं कि यूपीए सरकार ने ही अर्थव्यवस्था को ग्रोथ के रास्ते पर लेकर आई थी। वित्तमंत्री के तौर पर उनके ही कार्यकाल में सरकार बजट घाटे पर अंकुश लगाने में सफल रही थी। आंकड़े दर्शा रहे हैं कि बीते दो साल में विकास दर 5 फीसदी से कम रहने के बजाय 5 फीसदी से अधिक हो गई है। तो “अच्छे दिन’ पिछले साल ही गए थे, यहां तक कि मोदी सरकार से भी पहले? आइए जानें, विकास दर को मापने का नया पैमाना जीवीए है क्या। दरअसल यह पुरानी जीडीपी सरकार को मिलने वाले नेट प्रोडक्ट टैक्स (एक्साइज, वैट, जीएसटी, सर्विस टैक्स) के जोड़ में से सरकार द्वारा दी जाने वाली नेट प्रोडक्ट सब्सिडी घटाने पर बचने वाला शेष है। हालांकि आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती अब खत्म हो चुकी है। ऐसे में नए आंकड़े अर्थव्यवस्था में ग्रोथ के पटरी पर लौटने की ज्यादा आशावादी तस्वीर पेश कर सकते हैं। इसके तीन प्रमुख कारण है: पहला,जबआप गणना का तरीका बदलते हैं, तो नई ग्रोथ रेट की पुरानी ग्रोथ रेट से तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि दोनों की गणना का तरीका अलग-अलग है। यह ठीक उसी तरह है जैसे हम एक सेब की तुलना संतरे से करें। हम तुलना वर्ष 2011-12 से आगे ही कर पाएंगे, क्योंकि गणना की नई पद्धति जीवीए के लिए आधार वर्ष नया होगा। नई पद्धति की गणना उत्पादन के बाजार मूल्य पर निर्भर करेगी, कि पुरानी पद्धति के मुताबिक लागत पर। दूसरा,वर्ष2013-14 की ग्रोथ लो बेस पर आधारित होगी। गणना की नई पद्धति के मुताबिक देश केे जीडीपी का कुल मूल्य वर्ष 2011-12 और 2012-13 दोनों साल में घट गया है। पुरानी पद्धति के मुताबिक 2011-12 में जीडीपी का आंकड़ा 90.1 लाख करोड़ रुपए था। यह नई पद्धति से यह इसी वर्ष में कम होकर 88.3 लाख करोड़ रुपए हो गई है। इसी तरह 2012-13 में जीडीपी का पुराना आंकड़ा 101.13 लाख करोड़ रुपए था। नई पद्धति के मुताबिक यह घटकर 99.88 लाख करोड़ रुपए हो गया है। वर्ष 2013-14 में नई पद्धति की गणना के अनुसार जीडीपी 113.5 लाख करोड़ रुपए और रियल ग्रोथ रेट 6.9 फीसदी रही है। यहां खास बात यह है कि दो साल तक जीडीपी के आंकड़े कम रहने के बाद वर्ष 2013-14 में 6.9% का आंकड़ा चकित करने वाला नहीं है।
तीसरा,वर्ष2011-12 और 2012-13 के राजकोषीय घाटे के आंकड़े पहले से ज्यादा खराब हैं। पुरानी गणना के मुताबिक इन दो साल में यूपीए के कार्यकाल के दौरान राजकोषीय घाटा वास्तव में बढ़ रहा था। नई गणना के मुताबिक वर्ष 2011-12 में यह 5.6% की दर से बढ़ा है जबकि पुरानी गणना के मुताबिक यह 5.8 फीसदी की दर से बढ़ रहा था। इसी तरह वर्ष 2012-13 में यह 4.9 की जगह 4.8% हो गया है। वर्ष 2013-14 में चौंकाने वाली बात यह है कि अधिक महंगाई और ग्रोथ रिवाइव होने के साथ राजकोषीय घाटा बदले बिना 4.5% पर बना हुआ है।
मतलब वर्ष 2013-14 में ऊंची ग्रोथ रेट सरकार द्वारा इस साल में अधिक खर्च किए जाने से हासिल हुई है। हालांकि इस ग्रोथ को नमक की चुटकी की तरह ही समझना चाहिए क्योंकि अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों में गिरावट का रुझान है। मसलन, ग्रॉस सेविंग रेट तीन साल में 33 से घटकर 2013-14 में 30 फीसदी रह गया है। वहीं, ग्रॉस इन्वेस्टमेंट रेट 38.2 से घटकर 32.3 फीसदी रह गया है। ये आंकड़े अलग-अलग कहानी कह रहे हैं। ये बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में बचत और निवेश पहले के मुकाबले कम हो रहा है। जब देश बचत कम करे और निवेश भी कम तो ग्रोथ रेट लगातार नहीं बढ़ सकती। ग्रोथ रेट लगातार बढ़ती रहे इसके लिए मोदी सरकार को इस रुझान को बदलने पर ध्यान देना होगा।
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-लेखक ‘फोर्ब्स इंडिया’के एडिटर-इन-चीफ हैं