कांग्रेस ये 10 बातें और कर लेती तो…

congress logoदिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जो हाल हुआ उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. उसके बाद कांग्रेस का मुहूर्त ऐसा बिगड़ा कि पार्टी जीत के लिए तरस गई. लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस की कमर तोड़ दी. अब कांग्रेस एक बार फिर उठने की कोशिश कर रही है. लोग कह रहे हैं कि दिल्ली में मुकाबला केवल भाजपा और आप के बीच है. लेकिन कांग्रेस को दोनों ही दलों का सामना करना है. वैसे भी राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं होता. कई डार्क हॉर्स को सत्ता तक पहुंचते इस देश में देखा गया है. आइए नजर डालते हैं कि कांग्रेस के लिहाज से उन 10 बातों पर, जिनके होने का फायदा पार्टी को मिलता-

01. 2013 के चुनाव में दिल्ली से कांग्रेस का सफाया हो गया. हार की वजह बना भ्रष्टाचार का मुद्दा. लोकसभा चुनाव में भी मोदी लहर ने कांग्रेस का सफाया कर दिया. लेकिन इस विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस को दोबारा उठने का मौका दिया है. दिल्ली में कांग्रेस को तीसरे नम्बर पर आंका जा रहा है. पार्टी नेताओं को जनता से पहले कार्यकर्ताओं से मजबूत संवाद करना था. उन्हे विश्वास में लेना चाहिए था. चुनाव लड़ने से पहले ही हार मानने वाला भाव खत्म करना चाहिए था.

02. दिल्ली में चुनाव की तारीख का ऐलान होने के साथ ही AAP और बीजेपी ने तेजी के साथ काम करना शुरू किया. लेकिन कांग्रेस उत्साह ही नहीं था. दिल्ली की कई सीटों पर वरिष्ठ नेताओं को टिकट देने की बात चली तो उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. बात बाहर आई तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौंसला टूटा. ये फैसले बंद कमरे में होते तो बात और होती.

03. अपनी खोई जमीन वापस पाने की चुनौती के साथ कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की 101 सदस्यों वाली चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया. लेकिन अजय माकन कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में बैठे ही नहीं. इसका भी गलत संदेश पार्टीजनों के बीच गया. अजय को हर दिन दिल्ली पार्टी कार्यालय में बैठकर ही चुनावी रणनीति बनानी चाहिए थी.

04. चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में कांग्रेस के बड़े नेता दिखने शुरू हुए. अगर इन नेताओं का पहले दिन से ही विधानसभा वार या बूथ स्तर तक काम पर लगाया जाता तो बेहतर होता.

05. 2013 में कांग्रेस को दिल्ली में मिली हार का विश्लेषण पार्टी पहले ही कर चुकी थी. दिल्ली प्रभारी पीसी चाको और अजय माकन को साथ बैठकर उस पर रणनीति बनानी थी ताकि विपक्ष को जवाब दिया जा सके. रणनीति तो बनी नहीं, या बनी तो कार्यकर्ताओं तक पहुंची नहीं.

06. दिल्ली में कांग्रेस युवाओं को आगे लाने की बाते करती रही लेकिन संगठन और महत्वपूर्ण पदों पर हमेशा पुराने नेताओं का ही दबदबा रहा. युवाओं को दिल्ली संगठन में शामिल कर राजनीतिक योग्यता के आधार सही स्थान दिया जाता. उन्हे विश्वास में लेकर विधानसभा और बूथों की जिम्मेदारी दी जाती, तो बेहतर था.

07. दिल्ली में टिकटों का बंटवारा करने से पहले विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ताओं की राय ली जाती. अच्छी और साफ छवि के उम्मीदवारों को ही टिकट देने के प्रयास किए जाते. पिछली दिल्ली सरकारों में मंत्री रहे नेताओं को पीछे रखा होता तो संगठन के लिए अच्छा था.

08. वरिष्ठ नेताओं पर चुनाव के दौरान कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने के आरोप लगे. आलाकमान को दिल्ली के ऐसे नेताओं की टीम बनानी चाहिए थी जिन पर यहां की जनता भरोसा करती हो. अगर पीसी चाको ने खुद इन सब बातों पर ध्यान दिया होता तो पार्टीजनों का भरोसा और मजबूत होता.

09. दिल्ली में 1998 से 2013 के बीच तीन बार सरकार बन जाने से कांग्रेस नेताओं का उत्साह, अति-आत्मविश्वास बन चुका था. इस चुनाव में ऐसे पार्टी नेताओं को दूर रखने की जरूरत थी जो अति-आत्मविश्वास थे. दिल्ली में रहने वाले ऐसे स्थानीय नेताओं को उम्मीदवारो के साथ लगाना चाहिए थे, जो विधानसभा क्षेत्र की जमीनी हकीकत से वाकिफ हों.

10. दिल्ली चुनाव में भ्रष्टाचार ही सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा. ऐसे में कांग्रेस को हर रैली, हर सभा में अपनी पिछली सरकारों की उपल्बधियों का बखान जोर-शोर से करना चाहिए था. पुराने अनुभव के आधार पर कांग्रेस उम्मीदवारों को बयान देने और सभाओं में विपक्षियों की काट करने के गुर भी बताने चाहिए थे.

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