अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
ई-शक्ति के माध्यम से प्रदेश की पांच लाख नारियां होगी लाभांवित
सरकार की योजनाओं के सकारात्मक परिणामों से बदल रही तस्वीर
-डॉ.लक्ष्मीनारायण वैष्णव- भोपाल / मध्यप्रदेश में महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ लिंगानुपात के अंतर को पाटने में लगातार सकारात्मक परिणामों सामने आ रहे है। यह सब होता दिखलाई दे रहा है प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चल रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार की उन अति महत्वपूर्ण योजना के चलते जिनमें से तो कुछ प्रदेश,देश ही नहीं अपितु विश्व की भी अकेली योजनायें हैं। हम बात करें लाडली लक्ष्मी की या फिर मुख्य मंत्री कन्यादान योजना की जिसका लाभ लाखों पात्रों को आज प्राप्त हो चुका है। झुठी शान और मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर जिस शक्ति रूपरूपा के कारण मनुष्य का अवतरण पृथ्वी पर हुआ उसके ही अंश को नष्ट करने एवं काल के गाल में जन्म के पूर्व पहुंचाने का कुचक्र पिछले लम्बे समय से चलने का परिणाम अब सामने है। लिंगानुपात के अंतर को लेकर आज चर्चा का विषय बना हुआ है। बड़ी अजीब बिडम्बना है कि पुरूष की चाहत में मां,बहिन और पत्नि तो है परन्तु बेटी की बात जैसे ही आती है एक बहुत बड़े वर्ग की यही चाहत होती है कि बेटी नहीं बेटा चाहिये। वर्तमान समय में यह पुत्र मोह पांव की बेड़ी बनते अधिकांश मामलों में देखने आ रहा है। सामान्यत: बेटा अपना रहता है तब जब तक कि विवाह नहीं हो जाता और इसके पश्चात ममता और मोह के बंधनों को शिथिल होने के अनेक उदाहरण सामने आते ही रहते हैं। परंतु बेटी के मामले में कुछ अलग ही मामला सामने आता है। परंतु सामाजिक रू ढिय़ां और बेटे की चाहत ने पिछले वर्षो में जो कुछ हुआ वह भविष्य की भयावह तस्वीर को सामने लाता हुआ दिखलाई देता है। एनसीआर के एक अध्ययन के परिणामों को देखा जाये तो प्रति वर्ष होने वाली मौतों में सर्वाधिक संख्या लड़कियों की ही बतलाई जाती है। वहीं अगर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर नजर डालें तो देश में दस लाख से अधिक भ्रूण हत्या के मामले सामने आये। प्रति 25 लड़कियों मेंं से एक को जन्म के पूर्व ही काल के गाल में पहुंचा दिया जाता है। रिपोर्ट के ही अनुसार देश में प्रतिवर्ष 1 करोड़ 20 लाख जन्म लेने वाली बच्चियों में से 25 प्रतिशत अपना पद्रहवां जन्म मनाने के लिये जिंदा नहीं रह पातीं। लिंगानुपात का अन्तर निश्चित रूप से इस समय चिंता का विषय बना हुआ है। यह पिछले 50 वर्षो में कितना आया इस पर नजर डालें तो जहां 1961 में प्रति हजार पर 976 था तो वहीं 2011 की जनगणना के अनुसार यह घटकर 914 पर पहुंच गया। जानकारों के अनुसार सामान्यत: जन्म के समय लिंगानुपात 952 या उससे अधिक होना चाहिये। प्रदेश में 952 के आंकड़ों वाले जिलों की संख्या 9 बतलाई जाती है जबकि 926 से 951 के बीच की संख्या वाले 11 जिले तथा 900 से 925 वाले 8, 976 से 900 वाले 12, 851 से लेकर 875 वाले 5 एवं 850 से नीचे वाले भी 5 जिले बतलाये जाते है। देश के अंदर उक्त आंकड़ों के परिणामों को लेकर इस समय एक चिंतन का वातावरण बना हुआ है। जानकारों की मानें तो अगर इस असंतुलन को समान नहीं किया गया तो भविष्य में किसी बड़ी अराजकता फैलने से इंकार नहीं किया जा सकता। देश में हो रही नारी जातियों के विरूद्ध हिंसा, यौन एवं घरेलू हिंसा के साथ ही कन्य भ्रूण हत्याओं में इजाफा होना जहां समाज शास्त्रीयों के लिये चिंता का विषय बना हुआ है तो वहीं दूसरी ओर जनसंख्या के संबंध में ज्ञान और अध्ययन करने वाले लोगों के लिये भी विचारणीय प्रश्र बनकर उभरा है। चूंकि अगर देश के अन्य राज्यों पर नजर डालें तो 27 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में लिंगानुपात में भारी गिरावट दर्ज की गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 50 प्रतिशत जिलों में औसत की तुलना में अधिक गिरावट है। यहां यह बात का उल्लेख कर देना भी आवश्यक हो जाता है कि हरियाणा और पंजाब वह राज्य हैं जहां प्रारंभ से ही लिंगानुपात कम रहा है।
अंतर को पाटने प्रदेश सरकार के उठते कदम-
आज जहां उक्त परिणामों को लेकर सारा समाज भयाक्रांत है एवं चिंतन में जुटा हुआ है तो वहीं दूसरी ओर देश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में एक नया कीर्तिमान स्थापित मध्यप्रदेश सरकार इस अंतर को पाटने के लिये चला रही योजनाओं के द्वारा पूरी सशक्तता से कदम बढ़ा चुकी है। प्रदेश की यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उक्त विषय की गंभीरता को लेते हुये विभिन्न प्रकार की योजनाओं का संचालन प्रारंभ कर दिया। योजनाओं पर नजर डालें तो लाड़ली लक्ष्मी, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना,राष्टीय किशोरी शक्ति योजना, निशुल्क गणवेश व साईकिल योजना, बालिका शिक्षा, आंगनबाड़ी केन्द्रों में किशोरी बालिका दिवस, गांव की बेटी योजना, प्रतिभा किरण, बालिका भ्रूण हत्या को रोकने के लिये कानून का कढ़ाई से पालन जैसे अनेक योजनाओं के साथ प्रयास जारी है। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो अभी तक 1 लाख 50 हजार बेटियों के हाथ उक्त योजना में पीले हो चुके है। वहीं महिलाओं की तकनीकि शिक्षा को बढावा देने के लिये पालीटेक्निक महाविद्यालयों में 50 सीटर महिला छात्रावास की स्थापना किये गये हैं। गर्भवती माताओं एवं बीमार बच्चों के लिये 24 घंटे आपातकालीन परिवहन के तहत प्रदेश के समस्त जिलों में लगभग 900 वाहनों के साथ 50 कालसेंटर कार्य कर रहे हैं। देखा जाये तो मातृ शिशु दर प्रतिलाख जन्म से घटकर 379 से घटकर 277 हो गयी है। मुख्यमंत्री शहरी घरेलू कामकाजी महिलाओं की कल्याणकारी योजना में अभी तक 2 लाख 28 हजार परिचय पत्रों को वितरित किया जा चुका है। वहीं महिलाओं के लिये स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत आरक्षण एवं शासकीय सेवा में एक तिहाई संविदा शिक्षकों की भर्ती में 50 प्रतिशत एवं उपनिरिक्षकों की भर्ती में 30 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था सरकार द्वारा की गयी है। इसी क्रम में प्रदेश में नारी अत्याचार के मामलों को लेकर उनकी सुरक्षा के मामले में प्रदेश की सरकार सजग दिखलायी देती है। इनको सशक्त बनाने के लिये विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों के साथ ही आरोपियों को दण्डित कराने की दिशा में भी आगे दिखलायी देती है। गत 2012 में 806 प्रकरणों में एवं 2013 में 544 आरोपियों को सजा दिलायी गयी है। वर्ष 2007 से प्रारंभ हुई एक और महत्वपूर्ण योजना जिसे लाड़ली लक्ष्मी के नाम से जाना जाता है । इस योजना के परिणामों के आंकड़ों पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि अभी तक लगभग 15 लाख से अधिक बालिकायें इससे लाभान्वित हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर 185 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में 18 हजार 258 बेटियां लाभांवित हो रही है। इसी क्रम में अगर ऊषा किरण योजना के बारे में बात करें तो प्राप्त जानकारी के अनुसार दर्ज निराकरण हो चुका है एवं जो चल रहे हैं उनका निराकरण करने कार्य निरंतर चल रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त विश्व की अनोखी योजनाओं के परिणाम सामने आने लगे हैं जहां बेटियों को बोझ समझ लोग उनके पैदा होने पर चिंतित होने लगते थे या पैदा होने में व्यवधान उत्पन्न करते थे। वहीं अब श्री चौहान द्वारा चलाई गई योजनाओं के कारण बेटी होने पर अपने आपको गौरान्वित भी महसूस कर रहे है। हाल ही में एक और दो बेटी वाले माता पिता को जिस प्रकार प्रदेश के प्रत्येक जिले में सार्वजनिक मंचों के माध्यम से सम्मानित करने का क्रम जारी है वह निश्चित ही समाज को एक नई प्रेरणा और दिशा देने का कार्य निश्चित रूप से करेगा ऐसा लोगों का मानना है।
चौका-चूल्हा के साथ अब माउस से भी खेलेंगी-
मध्यप्रदेश सरकार ने नारी शक्ति को सशक्त करने की दिशा में एक कदम ओर आगे बढाते हुये नारियों को आधुनिक बनाने का निर्णय लिया है जिसका प्रशिक्षण प्राप्त कर प्रदेश की महिलायें अब कम्पूटर के माउस के साथ खेलते हुये जहां एक ओर अपना ज्ञान बढायेंगी तो वहीं वह प्रदेश एवं देश के विकास में अपना योगदान ओर अधिक दे सकेंगी। जी हां राज्य के मुखिया शिवराज सिंह की पहल से प्रदेश में इन्टरनेट एवं कम्प्यूटर के उपयोग को बढ़ावा देने एवं उनमें इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मध्यप्रदेश की 5 लाख महिलाओं को इन्टरनेट प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से विशेष अभियान की शुरूआत की गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रारंभ किये कार्यक्रम को ई-शक्ति अभियान नाम दिया गया है। जिसमें प्रदेश की लगभग पांच लाख नारियों को डिजिटल, इन्टरनेट एवं कम्प्यूटर के उपयोग से होने वाले फायदों से अवगत करवाया जा रहा है । जानकारी के अनुसार ई-शक्ति अभियान के पहले चरण में प्रदेश में एक लाख 59 हजार से अधिक महिलाओं को कम्प्यूटर का बेसिक प्रशिक्षण दिया जा चुका है । प्रशिक्षण का काम निरंतर जारी है ।
महिला सशक्तिकरण-
बात करें महिला सशक्तिकरण के मामले के परिणामों की तो मध्यप्रदेश सरकार की उन महत्वपूर्ण योजनाओं का उल्लेख और उनके परिणामों का उल्लेख करना अतिआवश्यक हो जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत साढ़े तेरह लाख से अधिक बालिकाएँ लखपति बनीं। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत 2 लाख 29 हजार गरीब कन्याओं का विवाह। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की हितलाभ राशि 7,500 से बढ़ाकर 10,000 रुपये। बालिकाओं को नि:शुल्क सायकिल, अब तक साढ़े सोलह लाख से अधिक लाभान्वित। लिंगानुपात के अंतर को समाप्त करने के लिए बेटी बचाओ अभियान। बेटियों को एक जोड़ी के स्थान पर दो जोड़ी शाला गणवेश के लिए 400 रुपये की राशि। 200 कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय। गाँव की बेटी योजना से लाभान्वित हुई 88,153 बालिकाएँ। प्रतिभा किरण योजना से बीपीएल परिवार की 6,718 बालिकाएँ लाभान्वित। महिला नीति का हुआ ठोस क्रियान्वयन। आँगनवाड़ी केन्द्र में मनाये जाने वाले मंगल दिवसों में चौथा मंगलवार बालिकाओं के नाम। उषा किरण योजना में दर्ज 22,141 शिकायतों में से 11,000 शिकायतों का निराकरण। जेंडर आधारित बजट का निर्धारण और क्रियान्वयन पिछले पाँच वर्ष से।

”सबलाÓÓ योजना से 17 लाख से अधिक बालिकाएँ लाभान्वित। वर्ष 2003-04 की तुलना में महिला-बाल विकास का बजट 13 गुना अधिक। महिलाओं के प्रति हिंसा-अपराधों की रोकथाम के लिए प्रभावी पहल। स्थानीय निकायों के निर्वाचन में 50 प्रतिशत आरक्षण। रोजगार एवं आय के अवसर बढ़े। वन, जल, स्वच्छता एवं पर्यावरण क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी। कृषि, पशुपालन, सूचना-संचार तकनीकी के क्षेत्र में भी अव्वल। जन-सुनवाई, परिवार परामर्श केन्द्र और महिला डेस्क द्वारा से समस्याओं का निराकरण। महिलाओं, बेटिसरें की मदद के लिए 1090, 1091 हेल्पलाइन सेवा। तेजस्विनी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम में गठित 12 हजार 500 स्व-सहायता समूह में पौने दो लाख महिला सदस्य बतलाये जाते हैं।