किसान आज भी आजाद नही है

sohanpal singh
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बहुत संघर्ष   एवम लाखो देशभक्त शहीदों  के बलिदान  का फल अंत में भारत वासियो  को मिल ही गया और हम १५अगस्त १९४७की आधी रात को जब अंग्रेजों की गुलामी से  आजाद होकर बाहर  निकले   तो हरकोई प्रफुल्ल और  उल़्हासित था !होना भी चाहिए था । आजादी की बलिवेदी  पर  बहुत लोगों ने  बलिदान दिया था   साथ ही अधिसंख्य लोगो ने  यथा संमभ्व  अपना अपना योगदान भी अपनी हैसियत के अनुसार दिया था । फिर भी कुछ ऐसै लोग आजादी के आन्दोलन  में जाने अनजाने अपना योगदान नही दे सके वे आज भी उस आजादी की महक को अनुभव करने से वंचित है । लेकिन कुछ ऐसे भी भारत माता के रत्न थे जो १९४२ के आन्दोलन मे  पुलिस द्वारा पकडे जाने पर माफी नामा लिख कर बच ग ए थे और ऐसे  लोगो ने स्वतंत्रता की मिठाई  को चखा ही नही बल्कि पूर्ण स्वाद से  पेटभर कर खाया । हम बात कर रहे थे आजादी की और जब हम आजद हुए तो हमें अपने आपको सभ्य और स्वतंत्र कहलाने के लिए एकमात्र संविधान की जरूरत भी हुई और ईसके लिए एक विद्वान व्यक्ति की खोज की गयी और उसके लिए दलितवर्ग  से अति सूझबूझ के अर्थशास्त्र के ज्ञाता डा०भीमराव रामजी  अम्बेडकर के अतिरिक्त कोई था ही नही और फिर उनको ही संविधान सभा की ड्राफ्टिगं समिति का अध्यक्ष बनाया गया  जिनकी अध्यक्षता मैं २६नवम्बर १९४९  को संविधान सभा के द्वारा भारतीय संविधान पारित कियागया और फिर २६ जनवरी १९५० को  लागू किया गया और तभी से भारत एक गणराज्य बन गया और हम प्रत्येक वर्ष २६जनवरी  को गणतंत्र दिवस मनाते है ।लेकन सौ टके का सवाल हमेंसा हवा में तैरता ही रहने वाला है और वह है क्या हम वास्तविक रूप में स्वतंत्र है उत्तर में हम मान सकते है कि  हाँ  टैक्निकल रूप से हम सौ प्रतिशत स्वतंत्र हैं लेकिन वास्तविक रूप में आज भी गुलाम हैं । ले किन वह गुलामी हमें दिखती नही है उसे हमने अपने आप में अंगिकार /आत्मसात कर लिया है । एक ओर जहाँ संविधान हमें समानता का अधिकार प्रदान करता क्या सभी अधिकार हमें हमारे घर के द्वार  पर मिलते है या  उन अधिकारो को पाने के लिए हमें अधिकारियों  के दफ्तरो मे अपना माथा रगडना पडता है  और उपर से पुष्प पत्र के रूप मे रिश्वत भी दे नी पडती है । अब इसमे किस सरकार को दोष दे और किसे निर्दोष कहें  अब तक सभी पार्टियों की सरकारों का एक सा ही ईतिहास । अक्सर देखने आता है कि जब नितांत गाँव का कोई गवंई व्यक्ति जब चुनाव जीत कर विधान सभा या लोकसभा का सदस्य बनता है तो कुछ ही दिनों मे उसका काया कल्प कल्पनाओं से भी परे हो जाता है और  वह साधारण व्यक्ति अगर मन्त्री बन गया तो फिर तो एसा लगता है जैसे किसी कुबेर से ही दो स्ती हो गयीं हो और चमत्कार ऐसा होता कि गरीब तो अमीर और अमीर धनकुबेर बन जाता है ।
लेकिन देस का किसान आज भी आजाद नही है ।  दे श की कुल आबादी का  ६०से७०  प्रतिशत व्यक्ति आज भी खेती किसानी पर ही निर्भर है  लेकिन उसे अपनी ऊपज अपनी  सुविधा से बेचने की आजादी नही है ।कारण एक नही अनेक है। यही कारण है कि  किसान अपनी ऊपज पर ही जीवन यापन करता है और फसल के बर्बाद होने पर या तो गम में मर जाता है या फिर आत्महत्या करने को अग्रसर हो जाता है । उसपर भी सरकारें उनका उत्पीडन करने  से बाज नही आती और विकास के नाम पर छ्द्म तरीके से किसानो की  भूमि हडपने के  लिए कानून का सहारा  लेतीं है। जिन अग्रेजों  की गुलामी से हमने संघर्ष के बाद आजादी पाई थी किसानो और खेती के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक था नहरो द्वारा सिंचाई और राजवाहों का  सुदृढ जाल  सिचाईं के लिए जितना प्रतन्त्र भारत में हुआ था  ?  उतना कार्य स्वतनत्र भारत में हुआ है क्या ? भारत मे पूँजी वाद का कोई स्थान नही है भारत के संविधान  प्रिएम्बल  अर्थात प्रस्तावना इन शब्दों से आरम्भ होती है ।। हम भारत के नागरिक सपथ पूर्वक भारत संविधान की रचना स्वमभू समाजवादी जनतान्तत्रिक जनतन्त्र के रूप में करते है जिसमें सभी नागरिकों  की सुरक्षा निहित है ।।   वैसे भी संविधान में न तो कही “हिन्दुस्तान” शब्द उल्लेख है  और  न  ही किसी हिन्दु ,हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग हुआ है । ले किन हमारे नेता लोग है कि जब तब  टाईय बेटाईम  किसी भी समय हिन्दू हिन्दुस्तानी या हिन्दु हित का राग!!!!!अलाप ही देते है ं ।

इसलिए अगर केवल संसदीय बहुमत के आधार पर केवल कुल ३१% के आधार चुनी ग ई पार्टी के बहुमत की सरकार का न तो संविधान के साथ खिलवाड करने का अधिकार है आ और न ही पूँजी वाद की वकालत का अधिकार है ।
sohanpal singh

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