सवाल यह है कि कल कोई एफआइआर शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी पर डिग्री (यों) वाले उनके फर्जी हलफनामों के लिए दर्ज होती है तो क्या पुलिस इसी जोशोखरोश में पेश आएगी? संशय तो इसमें भी है कि एफआइआर दर्ज भी हो पाएगी कि नहीं। दिल्ली पुलिस – जो केंद्र और उसके बंदे एलजी के प्रति ज्यादा वफादार है – का अतिउत्साह साफ जाहिर है और उसे अपनी घटती विश्वसनीयता की फिक्र करनी चाहिए। लेकिन वह भी क्या करे जब संविधान की गलियां उलटे-सीधे कामों के लिए केन्द्र सरकार से लेकर उपराज्यपाल खुद ढूंढ़ते फिरते हैं। मजा देखिए कि दिल्ली सरकार को भ्रष्टाचार से लड़ना है, पर नजीब जंग ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में अपना बंदा छोड़ दिया है – चुनी हुई सरकार की मंशा की परवाह किए बगैर। भाजपा के लिए कहना आसान होगा कि उनकी इन घटनाओं में कोई भूमिका नहीं है। पर उनका भरोसा कितने लोग करेंगे? पिछले महीने यह अधिसूचना जारी कर केंद्र सरकार ने आग में घी डाला था कि दिल्ली का प्रशासन और सेवाएं जनता के हाथ अर्थात चुनी हुई सरकार के पास नहीं हैं, केंद्र द्वारा मनोनीत उपराज्यपाल के पास हैं।
कुल मिलाकर राजनीति का बड़ा गंदा खेल खेला जा रहा है, इसमें किसने खोया किसने पाया इसका हिसाब वक्त ही देगा।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की फेसबुक वॉल से साभार
