sohanpal singh2014 के आम चुनाव के दौरान श्री नरेंद्र मोदी , पार्टी द्वारा प्रदान मंत्री पद के उम्मीदवार घोषित होने के बाद अपनी चुनावी सभाओं में , या तो अज्ञानता वश या फिर जान बूझ कर इतने वायदे कर चुके हैँ की उन सबको एक कार्यकाल में पूरा नहीं किया जा सकता ?वैसे भी सामान्य तौर पर भी पूरा करना असंभव ही है ! और यही कारन भी है कि उन्होंने केवल एक वर्ष के कार्यकाल में ही 55 दिनो में 18 देशों की यात्राये करके एक नए तरीके की राजनीती आरम्भ करके अलग वैदेशिक निति घड़ने की कोशिस की है जो की केवल सरकार बदलने पर पूर्ण रूप से नहीं बदली जाती । हमारे लोकप्रिय प्रधान मंत्री ! शायद इतनी जल्दी में हैं कि एक परिपक्व् नेत्री जिनको संसदीय कार्य और विपक्ष की नेता पद पर होते हुए विदेश निति का अच्छा अनुभव भी है उनको विदेशी मामलोँ से दूर रख कर समस्त नीतिगत फैसले स्वयं करते है। और इसी। कारण से चीन के साथ सीमा निर्धारण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के स्थान पर व्यापार संबंधों को अतिमहत्त्वपूर्ण बना दिया जबकि चीन की दगाबाज दोस्ती के हम भुक्तभोगी हैं उसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत ही नहीं है । उनकी विदेश निति की असफलता का एक नमूना तो चीन ने 23/6/2015 को दिखा ही दिया है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत द्वारा रेजुलेशन नंबर 1267 केअंतर्गत मुम्बई हमलों के गुनाहगार लखवी को पकिस्तान द्वारा छोड़े जाने के विरोध पर प्रस्ताव पेस किया था जिसका समर्थन रूस, फ्रांस , जर्मनी और अमेरिका ने किया लेकिन हमारे लोकप्रिय प्रधान मंत्री के मित्र शि जिन पिंग के देश चीन ने पकिस्तान के पक्ष में अपने वीटो का प्रयोग करते हुए भारत के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया ? इसलिए देश के नेतृत्त्व को यह समझना ही होगा की चीन एक ऐसा दोगला देश है जिससे वफादारी की उम्मीद करना तो दूर दोस्ती भी नहीं करनी चाहिए ?
चूँकि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात कहने और देश में हो रही गतिविधियों को जानने का पूरा हक़ है ? इसी लिए यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह देश इतिहास में वर्णित एक सनकी बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक की राह पर चलने वाले किसी भी आधुनिक बादशाह को आज बर्दास्त करने की स्थिति में नहीं है ? लोकतंत्र में प्रत्येक पाँच वर्ष में चुनाव होते हैं ।। वैसे भी वर्तमान सरकार एक वर्ष का।कार्यकाल पूरा करके अपने आप को पिछली सरकारो के कार्यकाल में हुए भरष्टाचारों का हवाला देकर अपने आप को बेदाग़ साबित करने की कोशिस कर ही रही थी कि बिन मौषम बारिस की तरह ही भ्रष्टाचारों की बौछार के। स्थान पर बारिस ही होने लगी हसि ?
जैसा की एक वरिष्ठतम रानीतिज्ञ श्री आडवाणी जी ने आशका भी जताई है की वर्तमान सरकार के अधिनायकवादी कार्यकलाप के कारण उन्हें देश में फिर से आपातकाल की। ओर जाता दिखाई देता है । सम्बंधित पार्टियां उनकी आलोचना कर सकती है परंतु उनकी आशंका निर्मूल नहीं है ? इस लिए हम यह तो नहीं कह सकते की नरेंद्र मोदी किसी स्वार्थवश ऐसा कर तहे है अपितु यह हम डंके की चोट पर ऐसा कह सकते हैं कि उनके सरे कार्य यह जरूर इंगित कर रहे है कि वह यह सब अपने अधिनायकवादी स्वभास्व और अपनी राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के प्रति प्रतिबद्धता के कारण करने पर मजबूर है । लेकिन यह एक लाख टके का सवाल है की एक गुजरात जैसे संपन्न प्रदेश का शासन चलाना जिसकी आबादी 5 करोड़ हो और एक पुरे देश की शासन व्यस्था को चलाना जिसकी आबादी 125 करोड़ दोनों बराबर नहीं हो सकते । इसलिए विदेश निति पर यह पहली असफलता है? क्योंकि यह तो होना ही था? S..P.Singh Meerut